Thu. Dec 26th, 2024

शैक्षिक संदेश

डा० जी० भक्त

शिक्षा ज्ञानात्मक निधि है, मानसिक दक्षता है, सृष्टि का रहस्य है, जीवन की अनुभूति हैं, विचारों की श्रृंखला है, विकसित वैभव का इतिहास है आध्यात्म का दर्शन है. आदर्शो की पथ निर्देशिका है। कर्मों की निर्णायिका तथा मुक्ति की प्रदातृ है।

इसकी जननी हम भारत की आर्ष परम्परा को माने तो शायद विश्व इसे अस्वीकार नहीं करेगा। मन, बुद्धि, विवेक और अन्तःकरण (हृदयस्थल) सहित इन्द्रियों का व्यापार रूपी कर्ता मानव ही इसका संचालक रहा और प्रकृति इसका उपादान इसी ज्ञान के प्रकाश से हम अखिल ब्रह्माण्ड का निदर्शन पाकर गौरवान्वित्र और लाभान्वित होते तथा दुनियाँ को सजा-धजा स्वरूप में प्रत्यक्ष पा रहे है।

मानव धन्य है कि वह इस अनन्त वैभव का अधिगमन कर ग्रह नक्षत्रों सहित धरती और सागर तक को अपने कब्जे में पाकर गर्व से इतरा रहा है किन्तु यह देखते हुए कि एक सूक्ष्मातिसूक्ष्म कोविड-19 या अन्य समकक्ष वायरस से तंग आकर किंकत्तव्य विभूढ़ होते हुए भी अपने गर्व से नीचे नहीं झांक रहा, न अन्दर को ही ।

आज गौर करने की बात है कि हम शिक्षित विचारक, ज्ञानी, सबकुछ होते हुए भी दीन, हीन, असहाय, रोगी, पीड़ित, अनाथ और अपाहिजो की श्रेणी में भटक रहे हैं। यह दीनता हमारी सोच और निर्णय क्षमता के अभाव का फल है। अपनी बाधाओं की पहचान हमें आवश्यक है जो शिक्षा से ही सम्भव है।

लेकिन बिडम्बना है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था को वायरस लग चुका है।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *