सकारात्मक शिक्षा के आधारभूत तत्त्व
- भारत हमारा देश है जिसकी धरती पर हम पल रहे है ।
- हम सब भारत माता की संतान है ।
- हम सभी छात्र देश के भविष्य है ।
- देश हम से आशा का अरमान पूरा करेगा ।
- हम सब देश का अरमान पूरा करेंगे ।
- हमारा भारत महान है ।
- हम महान देश के बच्चे हैं ।
- भारत माता के गर्भ से महान से महान पुरुष पैदा हुए ।
- उन महापुरुषों ने देश को महान बनाया ।
- हम सब भी महान बनकर देश की सेवा करेंगे ।
- हम आपस में प्रेम भाव अपनायेंगे ।
- हम एकता का पाठ पढ़ेगे ।
- परस्पर सहयोग और सद्भाव बढ़ायेंगे ।
- किसी से द्वेषता नही रखेंगे ।
- एक दूसरे के सुख – दुखः में साथ निभायेंगे ।
- हम अपने से बड़ों को सम्मान देंगे ।
- उनकी आज्ञा का पालन करेंगे ।
- उनकी सेवा में तत्पर रहेंगे ।
- हम नित्य उनको प्रणाम करेंगे ।
- उनके आशीष शिरोद्धार्य करेंगे ।
- विद्यालय में हम सभी भाई हैं ।
- छात्राएँ मेरी बहनें है ।
- माता – पिता और गुरु पूजनीय है ।
- हम मन लगाकर पढ़ेंगे । विद्यालय के नियमों का पालन करेंगे ।
- बुरी आदतें नही अपनायेंगे । भेद – भाव के नियमों का पालन करेंगे ।
- हम जीवन में समय को मूल्यवान मानेंगे ।
- समय को व्यर्थ नहीं गवायेंगे ।
- स्वच्छता , सुअभ्यास और दिनचर्या पर ध्यान देंगे ।
- समय से जगना , सोना , खेलना , भोजन और पाठचर्या हमारा कर्त्तव्य होगा ।
- प्रार्थना , शिष्टाचार , स्वाध्याय और माहपुरुषों के आदर्शों पर चलना ही हमारा मार्ग होगा ।
- हम सदा सत्य बोलेंगे ।
- क्रोध नहीं करेंगे ।
- चोरी नहीं करेंगे ।
- अपनी भूल स्वीकार करेंगे ।
- व्यर्थ खर्च नहीं करेंगे ।
- हम सादगी अपनायेंगे ।
- सदाचरण पर ध्यान देंगे ।
- स्वास्थ्यकर भोजन करेंगे ।
- शालीन व्यवहार वरतेंगे ।
- बचन का ख्याल रखेंगे ।
- धरती हमारा निवास स्थल है ।
- जल , स्थल और नभमंडल ( आकाश ) हमारा कर्म क्षेत्र है ।
- जैविक सृष्टि संस्कृति के बीज हैं ।
- मानव जाति सृष्टि की उत्तम उपज है ।
- मानव से ही संस्कृति की पहचान बनी । अतः हम संस्कृति को नहीं भूलें ।
- बच्चों में उत्तम जीवन की सम्भावनाओं का सिंचन और पोषण होता है ।
- पाठशालाओं में उन सम्भावनाओं का सिंचन और पोषण होता है ।
- विद्या से विनम्रता और विनम्रता से पात्रता आती है ।
- सत्पात्र छात्र पर गुरुकृपा रुपी बादल की वृष्टि होती है जिससे छात्र ज्ञान निधि ( धन ) प्राप्त करते है ।
- पात्रता में पिछड़कर कोई गुरु का कृपा पात्र नहीं बन सकता । अर्थात ज्ञान नहीं पा सकता ।
- स्वस्थता , सच्चरित्रता , सद्विवेक , सकारात्मकता और जीवन की सार्थकता का लक्ष्य ही मानव को पूर्णकाम बना सकता है ।
- मानवीय मूल्यों पर खड़ा उतरना मनुष्य को सम्मान दिलाता है । ऐसे पुरुष लोक नायक होते है ।
- परिवार में शान्ति , समाज में आदर एवं राष्ट्र में अपने कीर्तिमान के लिए चर्चित पुरुष ही महानता का गौरव पाते हैं ।
- जाति , धर्म , रंग , भाषा और क्षेत्र के नाम पर मानव , मानव को न बाँटे तो जनतंत्र मजबूत होगा और स्वतंत्रता बहुत अंशों में साकार होगी ।
- ‘ स्वावलंबी एवं प्रेम प्लावित पुरुष हो या स्त्री , धरती पर वही सुखी है ।
- ” जन – गण मंगल ” की सार्थकता देश की एकता , अखण्डता और समरसता में है ।
- राष्ट्र की मर्यादा जन आकांक्षओं के आदर पर निर्भर है । आर्थिक विकास दर पर नही ।
- शिक्षा वह जिससे हमारी संस्कृति का पोषण हो और शिक्षा विदों को सम्मान मिले ।
- भारत के शिक्षा शास्त्री जब तक अपने आदर्शों में भारतीयों की धमनियों में प्रवाहित होते न पाये जायेंगे तब तक हमारा देश शिक्षा की अधोगति से ऊपर नही उठ पायेंगा ।
- शिक्षा की सकरात्मकता पर जनमानस को एकीकृत करने हेतु देश के सभी स्नातक एवं स्नोकोत्तर शैक्षिक समूह की जागरुकता अपेक्षित है ।
इसके लिए नई पीढ़ी को प्राथमिक स्तर से उपर उठाना होगा ।……………इसी हेतु हमारी कार्य योजना ” सकरात्मक शिक्षा पुनर्स्थापना एवं प्रसार कार्यक्रम ” की शुरुआत आज महर्षि रवीन्द्र नाथ टैगोर महोदय की जयन्ती के अवसर पर की जा रही है ।