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सकारात्मक शिक्षा के आधारभूत तत्त्व

सकारात्मक शिक्षा के आधारभूत तत्त्व (Basic Elements of Positive Education) dr. G. Bhakta article

  1.  भारत हमारा देश है जिसकी धरती पर हम पल रहे है ।
  2.  हम सब भारत माता की संतान है ।
  3.  हम सभी छात्र देश के भविष्य है ।
  4.  देश हम से आशा का अरमान पूरा करेगा ।
  5.  हम सब देश का अरमान पूरा करेंगे ।
  6.  हमारा भारत महान है ।
  7.  हम महान देश के बच्चे हैं ।
  8.  भारत माता के गर्भ से महान से महान पुरुष पैदा हुए ।
  9.  उन महापुरुषों ने देश को महान बनाया ।
  10.  हम सब भी महान बनकर देश की सेवा करेंगे ।
  11.  हम आपस में प्रेम भाव अपनायेंगे ।
  12.  हम एकता का पाठ पढ़ेगे ।
  13.  परस्पर सहयोग और सद्भाव बढ़ायेंगे ।
  14.  किसी से द्वेषता नही रखेंगे ।
  15.  एक दूसरे के सुख – दुखः में साथ निभायेंगे ।
  16.  हम अपने से बड़ों को सम्मान देंगे ।
  17.  उनकी आज्ञा का पालन करेंगे ।
  18.  उनकी सेवा में तत्पर रहेंगे ।
  19.  हम नित्य उनको प्रणाम करेंगे ।
  20.  उनके आशीष शिरोद्धार्य करेंगे ।
  21.  विद्यालय में हम सभी भाई हैं ।
  22.  छात्राएँ मेरी बहनें है ।
  23.  माता – पिता और गुरु पूजनीय है ।
  24.  हम मन लगाकर पढ़ेंगे । विद्यालय के नियमों का पालन करेंगे ।
  25.  बुरी आदतें नही अपनायेंगे । भेद – भाव के नियमों का पालन करेंगे ।
  26.  हम जीवन में समय को मूल्यवान मानेंगे ।
  27.  समय को व्यर्थ नहीं गवायेंगे ।
  28.  स्वच्छता , सुअभ्यास और दिनचर्या पर ध्यान देंगे ।
  29.  समय से जगना , सोना , खेलना , भोजन और पाठचर्या हमारा कर्त्तव्य होगा ।
  30.  प्रार्थना , शिष्टाचार , स्वाध्याय और माहपुरुषों के आदर्शों पर चलना ही हमारा मार्ग होगा ।
  31.  हम सदा सत्य बोलेंगे ।
  32.  क्रोध नहीं करेंगे ।
  33.  चोरी नहीं करेंगे ।
  34.  अपनी भूल स्वीकार करेंगे ।
  35.  व्यर्थ खर्च नहीं करेंगे ।
  36.  हम सादगी अपनायेंगे ।
  37.  सदाचरण पर ध्यान देंगे ।
  38.  स्वास्थ्यकर भोजन करेंगे ।
  39.  शालीन व्यवहार वरतेंगे ।
  40.  बचन का ख्याल रखेंगे ।
  41.  धरती हमारा निवास स्थल है ।
  42.  जल , स्थल और नभमंडल ( आकाश ) हमारा कर्म क्षेत्र है ।
  43.  जैविक सृष्टि संस्कृति के बीज हैं ।
  44.  मानव जाति सृष्टि की उत्तम उपज है ।
  45.  मानव से ही संस्कृति की पहचान बनी । अतः हम संस्कृति को नहीं भूलें ।
  46.  बच्चों में उत्तम जीवन की सम्भावनाओं का सिंचन और पोषण होता है ।
  47.  पाठशालाओं में उन सम्भावनाओं का सिंचन और पोषण होता है ।
  48.  विद्या से विनम्रता और विनम्रता से पात्रता आती है ।
  49.  सत्पात्र छात्र पर गुरुकृपा रुपी बादल की वृष्टि होती है जिससे छात्र ज्ञान निधि ( धन ) प्राप्त करते है ।
  50.  पात्रता में पिछड़कर कोई गुरु का कृपा पात्र नहीं बन सकता । अर्थात ज्ञान नहीं पा सकता ।
  51.  स्वस्थता , सच्चरित्रता , सद्विवेक , सकारात्मकता और जीवन की सार्थकता का लक्ष्य ही मानव को पूर्णकाम बना सकता है ।
  52.  मानवीय मूल्यों पर खड़ा उतरना मनुष्य को सम्मान दिलाता है । ऐसे पुरुष लोक नायक होते है ।
  53.  परिवार में शान्ति , समाज में आदर एवं राष्ट्र में अपने कीर्तिमान के लिए चर्चित पुरुष ही महानता का गौरव पाते हैं ।
  54.  जाति , धर्म , रंग , भाषा और क्षेत्र के नाम पर मानव , मानव को न बाँटे तो जनतंत्र मजबूत होगा और स्वतंत्रता बहुत अंशों में साकार होगी ।
  55.  ‘ स्वावलंबी एवं प्रेम प्लावित पुरुष हो या स्त्री , धरती पर वही सुखी है ।
  56.  ” जन – गण मंगल ” की सार्थकता देश की एकता , अखण्डता और समरसता में है ।
  57.  राष्ट्र की मर्यादा जन आकांक्षओं के आदर पर निर्भर है । आर्थिक विकास दर पर नही ।
  58.  शिक्षा वह जिससे हमारी संस्कृति का पोषण हो और शिक्षा विदों को सम्मान मिले ।
  59.  भारत के शिक्षा शास्त्री जब तक अपने आदर्शों में भारतीयों की धमनियों में प्रवाहित होते न पाये जायेंगे तब तक हमारा देश शिक्षा की अधोगति से ऊपर नही उठ पायेंगा ।
  60.  शिक्षा की सकरात्मकता पर जनमानस को एकीकृत करने हेतु देश के सभी स्नातक एवं स्नोकोत्तर शैक्षिक समूह की जागरुकता अपेक्षित है ।
           इसके लिए नई पीढ़ी को प्राथमिक स्तर से उपर उठाना होगा ।……………इसी हेतु हमारी कार्य योजना ” सकरात्मक शिक्षा पुनर्स्थापना एवं प्रसार कार्यक्रम ” की शुरुआत आज महर्षि रवीन्द्र नाथ टैगोर महोदय की जयन्ती के अवसर पर की जा रही है ।

 डा ० जी ० भक्त

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