सम्भावनाओं की आहट में हम अचेत पड़े हैं , अवसर भागा चला जा रहा है ।
ऐसा हो रहा है होमियोपैथी के साथ । कोरोना काल में हमने अपनी भूमिका निभाने में भूल की । हमारी सम्भावनाएँ अनन्त है । होमियोपैथी विज्ञान भी है और कला भी । होमियोपैथिक औषधि निर्माण एक पूर्ण विज्ञान है । चिकित्सा शास्त्र कला है । एलोपैथी भी विज्ञान है किन्तु उसके सिद्धान्त अलग हैं । विज्ञान में दो बातें आवश्यक है- ( 1 ) कार्य कारण सम्बन्ध और सापेक्षता । एलोपैथी कारण के विपरीत कार्य करता है जबकि कारण के सदृश – विषस्य विषमोषध का सिद्धान्त होमियोपेथी का है । विपरीत चिकित्सा पद्धति रोग को दबाती है । सदृश पैथी उसे आरोग्य करती है । ये दोनों ही सिद्धान्त आदि काल से प्रचलन में आ रहे हैं । एलोपैथी , होमियोपैथी और आयुर्वेद भी सिद्धान्तों का पालन करते है किन्तु प्रक्रिया भिन्न है । कारण विपरीत होने से होमियोपैथी से एलोपैथी मिन्नता रखती है । दोनों दो पकार से अपने प्रभाव दर्शा पाती है । होमियोपैथी को नेचर क्योर तथा हिलिंग आर्ट की संज्ञा मिल चूकी है ।
विज्ञान सिद्ध करता है कि कोई क्रिया प्राथमिक अवस्था और परवर्ती अवस्था में समान शक्ति किन्तु विपरीत दिशा देती है । जब हम रोगी पर एलोपैथिक दवा चलाते है तो प्राथमिक क्रिया में रोग के लक्षण रुक जाते हैं जिससे आराम मिलता है किन्तु आगे चलकर उसकी विपरीत प्रतिक्रिया होने से रोग पुनः प्रकट हो जाता है , समाप्त नहीं होता ।
होमियोपैथी में जिस औषधीय पदार्थ में स्वस्थ शरीर पर रोग के लक्षण उत्पन्न होते हैं , वैसे ही लक्षण से युक्त रोग पर उससे बनी दवा का प्रयोग सूक्ष्म मात्रा में किये जाने पर रोग को सम्पूर्णता के साथ मिटाता है । इस कारण से रोग का पुनराक्रमण होने की गुंजाइश नही पड़ती । औषधीय शक्ति रोग शक्ति से कुछ अधिक होने से वह रोग को शरीर से बाहर करती है और स्वयं शक्ति रुप जीवनी शक्ति को पूर्णता देकर स्वतः पूर्ववत स्वास्थ्य बहाल कर देती है । होमियोपैथी में दवा को शक्तिकृत की जाती है जिससे मात्रात्मक स्वरुप में यह सदम होती जाती है और परमाणु रुप में बढ़ने पर शक्तिशाली होती जाती है । उसी शक्ति का चयन , मात्रा का निर्धारण , दवा का क्रिया काल , रोगी के समस्त रोग लक्षणों का पता कर , दवा के परीक्षित लक्षणों से तुलना कर , उसका प्रयोग करना आरोग्य कला है तथा पूर्ण स्वास्थता दिलने वाली प्रणाली के रुप में स्वीकार की जाती है । दिव्य दृष्टि , कुशाग्र बुद्धि और प्रखर अनुभूति के धनी डा ० हनिमैन जो स्वयं एलोपैथ ( एम ० डी ० ) थे , अपनी चिकित्सा पद्धति में रोगों के पुनराक्रमण को कोई अन्य रोग नहीं माना और उसके मूल कारणों की खोज में 15 वर्षों तक पुस्तकों का अनुवाद तैयार कर आजीविका चलायी । इसी बीच उन्हें इसका रहस्य मिल गया । एक प्रसंग आया सिंकन की राजकुमारी की बीमी का । एक वृक्ष की छाल उबालकर उसका अर्क पिलाने पर राजकुमारी स्वस्थता पायी थी जो स्वस्थ्य आदमी पीता तो उसमें वही लक्षण उत्पन्न होते , जो राजकुमारी में पाये गये थे । उस वृक्ष का नाम था सिंकोना जिससे बनती है क्वीनीन ।
हैनिमैन के पिता कहा करते थे- ‘ प्रूव ऑल , होल्ड फास्ट हिच इन गुड । ” आज्ञा पालक हनिमैन ने स्वयं उसको अपने शरीर पर प्रयोग में लाया और तद्रूप घटना घटी । इस प्रकार उन्होंने ” सिमिलिया सिमिलिबस क्योरेंटर ” का सिद्धान्त ( लाइक क्योर्स लाइक ) निरुपित किया एवं उसे ‘ होमियोपैथिक सिस्टम ऑफ मेडिसीन ” बताया । उन्होंने 92 दवाओं का स्वतः पूविंग किया तथा 1812 से लगातार 1843 तक होमियोपैथी का प्रसार एवं जनकल्याण का नया मार्ग तैयार किया । उस युग के एलोपैथगण बड़ी संख्या में उनके अनुयामी बने । उन युगान्तकारी पुरुषों ने होमियोपैथी को विस्तृत क्षेत्र दिया । उसे ऊँचे लक्ष्य की ओर बढ़ाने में सफल रहे । जर्मनी में जन्मी यह पद्धति पेरिस में सफलता पायी , अमेरिका में विकास की . भारत में आकर सम्मानित हुयी । प्रथम भारतीय व्यक्ति पजाब केशरी राजा रंजित सिंह ने जर्मनी के ही पुलिस अफसर डा ० होनिंगवर्गर के हाथों दवा का प्रयोग कर अपना पैर का घाव छुड़ाया । फ्रॉसीसी पादरी पादर मूलर ने आंध्र प्रदेश के मंगलूर में बैठकर होमियोपैथिक सेवा देनी शुरु की एवं पुअर होमियो डिस्पेन्सरी ( काकनाडी ) नामक दवा कम्पनी स्थापित कर इसका प्रसार किया । भारत के बंगाल प्रान्त के दो एलोपैथिक चिकित्सक महेन्द्र लाल सरकार और राजेन्द्र नाथ दत्त ने होमियोपैथी स्वीकार कर इस समृद्ध पद्धति को समाद्रित किया ।
भले ही हम इस विकट समय में कोरोना के जग में अपना संग न निमा पाये किन्तु हम ज्यादा हतोत्साह इस लिए भी नही है कि विश्व भर में जिस पेथी का साम्राज्य है वह भी तो घुटने टेक दी है । जिन दवाओं द्वारा जग जीतने की कवायद हो रही . वही उन्हीं के द्वारा विवादित घोषित रही है । वैक्सिन अब तक न आ पायी संक्रमण का क्रम पुन दुहरा रहा है । भारत भी संक्रमण में आकाश छू रहा ।
ऐसी बात नहीं कि हमारे होमियोपैथ साथी आगे नही आये । यह भी उल्लेखनीय है कि उन्हें ऐसा कोई निर्देश भी तो प्राप्त नहीं हुआ । अगर हमारे आयुष के अधिकारी अपने चिकित्सकों को अपने स्तर से देश में सेवा देने में किसी भी प्रकार से खड़े न हो पाये तो अभी भी मौका है । आशा है कि आयुष ( होमियो ) अवश्य इस दिशा में सोचेगा और अपने संसाधनों के साथ यथाशीघ्र पटल पर तैयार पाये जायेंगे तथा चाहें तो 16 अक्टूबर से योजनावद्ध रुप में अपेक्षित सेवा देने एवं सरकार एवं देश की सेवा सहित जनकल्याण कर पायेंगे ।
HMAI से भी अनुरोध है कि वे आगे आकर सहयोग करें । चिकित्सकगण , कॉलेज , एवं अन्य संगठन भी सक्रिय होकर इस विपति में सहायक बने । सरकार जो अबतक होमियोपैथी को यथा सम्भव बढ़ावा देती आई है इसमें भी हमें उपर उठाने में मदद देकर कृतार्थ करें ।
होमियोपैथिक दवा उत्पादक एवं विक्रेता भी हर प्रकार से होमियोपैथी को उस अवसर पर साथ देकर अपना श्रेय प्राप्त करें । देश के नागरिक भी होमियोपैथी को विश्वास और सम्मान के साथ अपनाएँ ।
आशा की जा रही है कि शीघ्रातिशीघ्र देश होमियोपैथिक जागृति ला पायेगी एवं सरकार इस समृद्ध पैथी को प्रथम वार अपेक्षित मार्गदर्शन एवं सहायता से सेवा का मार्ग प्रशस्त कर इस जंग में हमे साथ देगी । मेरे विचार से ” जिप्पोजेनियम ” की 200 शक्ति इस पैण्डेमिक में प्रीवेन्टिव एवं क्योरेटिव की भूमिका निभा पायेगी ।
CCRH से हमें उम्मीद है कि अपनी सूझ – बूझ एवं शोघ में जो निर्धारित कर पाये होंगे अथवा देश की ओर से जो आगे आये होंगे उन पर गहन चिंतन और परीक्षण के पश्चात् मागदर्शन दें और होमियोपैथी की सेवा एवं सम्भावना को पटल पर सिद्ध करें ताकि देश के साथ विश्व को नयी उर्जा और उत्साह बढ़ा पाये ।
होमियोपैथिक चिकित्सा की उत्कृष्ट सेवा , और सम्भावना के प्रति आशावादी रहकर भारत के महाप्राण मानवता के हितैषीगणों में महात्मा गाँधी , रविन्द्र नाथ टैगोर श्री अरविन्द , देशरत्न डा ० राजेन्द्र प्रसाद आदि ने अपने – अपने बहुमूल्य मत व्यक्त कर पाये है । सम्प्रति 2 अक्टूबर 2020 को पूज्य राष्ट्र पिता बापू की जयन्ती पर श्रद्धांजलि स्वरुप हम होमियोपैथी द्वारा कोरोना के जंग में जुड़ पायें इसके लिए सरकार से विनीत प्रार्थी है ।
यह सेवा अर्पित करने का समय है । सेवा करना हमारा कर्त्तव्य है । जो करना था , वह कार्य , अबतक शेष ही है ।