सादर निवेदन है ।
……मैं दुखी हूँ । दुख का कारण क्या कहूँ ? कोई अपने आपसे दुखी अनुभव करता है । उसका कारण है । इस हेतु वह हार कर अपनी व्यथा किसी से व्यक्त करता है । कोई परिवार से कोई पड़ोसी से , कोई समाज से कोई देश से तो कोई संसार से भी दुखी होता है ।
व्यक्ति विशेष से दुखी होना कोई अर्थ नहीं रखता । दुख विषयगत होता है जो हमें चोट पहुँचाता है । कारण और कारक में भेद होता है । कारक की भी अपनी परिस्थिति होती है । व्यक्ति और समाज में जो अन्तर है वही अन्तर निजी समस्या और पारिवारिक , सामाजिक , राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्या में है । अब विषय उठता है कि अपने हित में विघ्र दुख का कारण बना या उसके परे जो भी क्षेत्र आ सकते हैं उनके हितों पर विघ्र उपस्थित होना ।
अब निजी हित को लेकर दुखी होना जीवन को भी दुखी बना सकता है किन्तु जो दूसरों के दुख से दुखी रहा करते हैं , उनके लिए समस्याएँ प्रेरक बनती है । ण्ये उ.स से जुझने में खुशी होती है । हमने सुना है , पढ़ा भी है । :-
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य बचनं दूयम ।
परोपकाराय पुण्याय , पापाय पर पीडनम ।।
निजी हित में कही लोभ हो तो पाप का कारण बनता है । कल्याण का लक्ष्य हो तो पुण्य का प्रतिफलन होगा । सन्त दूसरों के दुख से दुखी एवं दूसरों के सुख मे ही अपनी खुशी मानते हैं । अतः दुनियों को दुखी देख उससे कहीं अधिक दुख अनुभव कर संत पुरुष उनके कल्याण में जुट जाते है । आज अर्थात वर्तमान समय में सर्वप्रथम वैश्विक विपदा के रुप में हम सबों के सामने कोरोना का आगमन संसार को कष्ट में डाला यहाँ पर अपना बचाव तो आवश्यक है ही , दूसरों के बचाव का लक्ष्य ही हमें भी सुरक्षित रख सकेगा । इस विषय पर भी ध्यान देना आवश्यक है ।
ध्यान देने की बात है कि जब कोरोना की आग में विश्व के शक्तिशाली देश जलकर विनाश की ओर बढ़ रहे थे , यह विषय खुलकर आया कि कोरोना के लिए न बचवा का कोई वैक्सिन है और न इलाज के लिए कारगर औषधि ही । व्यवहार में भारत जिस दवा का प्रयोग कर रहा था , जिसकी माँग अन्य राष्ट्रों ने की , प्रयोग में लाया , लाभ या हानि जो कुछ हो रहा उसी से । फिर यह भी बात आयी कि यह दवा विवादित रही है । अब तक वही चल रही । वैक्सिन की प्रतीक्षा है । दुनियाँ आशा निराशा के बीच घुट रही है । आज भारत इस विनाशकारी रोग से भयभीत और चिन्तित है । मात्र इतना सुनकर कि हमारे यहाँ मरने वालों की संख्या बहुत कम है । उसी पर संतोष किया जा रहा है । क्या भारत में इससे मरने वाले परिवार को कम तकलीफ हो रही है ? उन्हें कम कष्ट है ?
उस विषय पर भी सोचा जाय कि सरकार के द्वारा ही इसकी चिकित्सा क्यों हो , इस देश में मान्यता प्राप्त चिकित्सा की अन्य पद्धतियों के रजिष्टर्ड चिकित्सक क्यों नही करें ? उनको उसके संबंध में विचारने , प्रयोग करने , राम लेने , भार सौपने का कार्य भी प्रारंभ किया जाना चाहिए । इस देश की जन संख्या को देखते हुए आज तक चिकित्सा सुविधा जितनी अपेक्षित थी , हो नही पायी । इस वैश्विक संक्रमण का जिम्मा कैसे आपने सिर पर उठाया । तुरंत आपकी अर्थव्यवस्था डग मगाने लगी । दुकानदारी शुरु हो गयी । स्वास्थ्य के नियमो , बचाव के तरीकों का पालन नहीं हो सका । इसके लिए कठोर कदम उठाना तक पड़ा , जिसका आज तक नियत्रण संभव न हो पाया । अपने निजी क्लिनिक को अनुमति दी । उनके यहाँ जो चिकित्सा की कीमत होगी , वह जनता चुका पायेगी ? वैकल्पिक रुप से आयुर्वेद और होमियोपैथी की मर्यादा को विश्व जानता है । एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति की वैज्ञानिकता और तकनीक की क्षमता भी दुनियाँ स्वीकारती ही है तथापि उसके दूरगामी दुष्परिणाम एवं आजीवन दवा का गुलाम
बनाना भी ये समझते ही है । उनके स्थान पर होमियोपैथी गरीबी के समक्ष सस्ती समक्ष , और निरापद के साथ आरोग्यकारी है ।
इतना मैं जो देश के सामने अपना विचार प्रस्तुत किया मेरी निजी बात नही , महान चिकित्सक विदेशी होमियोपैथ की आविष्कृत ” हिप्पोजेनियम ” नामक दवा है । उसे पुनः कोरोना केन्द्र के रोगियों पर परीक्षण करना जरूरी था । उसके लिए समक्ष अधिकारी CCRH के डायरेक्टर एवं देश के विभिन्न भागों में बिखरे उनके अंग जो वेतन पाते हैं उनका प्रयोग प्रिवेन्शन में करके सत्यापित कर सकते थे । यह कहना किसी के द्वारा आज के सन्दर्भ में कि इसके लिए मुझ पर दबाव न डालें , आप जो करते है , कीजिए । ऐसा तो मिडिया पर बहुतेरे लोग सुझाव देते रहते है किसकी मानी जाय ? मेरा कहना है कि पदाधिकारी आप बने है तो देश पूछे किससे ? मैं रजिष्टर्ड होमियोपैथ हूँ । चिकित्सा भर के लिए । न मुझे निर्देश देने का अधिकार बनता है न कुछ आगे स्वयं शुरु करने का । सब कुछ पारदर्शी रुप में आवेदित कर ही किया जाता है । मैं यहाँ पुनः देश – दुनियाँ के जो जैसे लोग है , उन्हीं से सादर निवेदन करता हूँ कि सभी अपने क्षेत्राधिकार में अपने कर्तव्य का पालन करते हुए इस कल्याणकारी कार्य में जुटें व चाहे जनता , अधिकारी , सरकार या सेवक जो हों , उनसे मेरी यही प्रार्थना है । उल्लेखनीय है कि चिकित्सक समुदाय जो सरकारी सेवा में हैं , वे सबसे ज्यादा जानकार है सारी जानकारी और व्यवस्था के धनी है और वे अगर असुरक्षित संक्रमित हो रहे और रोगी को अपने हाथ से नही छू रहे तो उनकी सेवा सराहनीय कैसे ?
कहाँ गयी सेवा की सत्यता और कहाँ गया अहिंसा का निहितार्थ । सोचना चाहिए उनको जो भारतीय संस्कृति का उदाहरण पेश करने का वक्तव्य देते हैं ।
दुख यही है कि हम आज दुनियाँ को अपनी सेवा नहीं दे पा रहे । इस हेतु समष्टि जगत से इसके लिए निवेदन कर रहा हूँ ।
आशा के साथ कोरोना के निवारणार्थ , मानव के कल्याणार्थ एवं मानवता के रक्षार्थ । गलत हो तो क्षमा करेंगे ।
डा ० जी ० भक्त