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स्वतंत्र या गुलाम

डा० जी० भक्त

शीर्षक प्रथमतया विषय वस्तु से सम्बन्ध रखता है। हम स्वतंत्र भारतीय है या गुलाम इसका उत्तर जटिल है और सामान्य भी अगर हम अपने को स्वतंत्र भारतीय स्वीकार लें तो सिद्ध कर पाना जटिल होगा अगर गुलाम माने जो जबाव सीधा माना जायेगा।

स्वतंत्रता और परतंत्रता (गुलामी) का समाजशास्त्र और गणित का आकलन भारी चुनौती है जो कोई राजनीतिज्ञ व्यावहारिक कसौटी पर नहीं उतार सके। स्वतंत्रता का पौधा स्वावलंबन की धरती पर पोषित होता है। महात्मा गाँधी के शब्दों में मैं अंग्रेजों का गुलाम नही भारत गुलाम है। उन्होने यह भी कहा अंग्रेजो में बहतेरे मेरे मित्र है। अंग्रेजो से मेरी दुश्मनी नहीं, अंग्रेजी सरकार से मेरा विरोध है। वस्तुतः अनेको अंग्रेज अधिकारी अंग्रेजी सरकार की भारत के प्रति दमनकारी नीति का विरोध करते थे। बहुत से अंग्रेज भारत में बस ही गये। उन्हें भारत आकर्षित किया।

स्वतंत्र देश का नागरिक भय रहित जीवन जीता है। उसके मौलिक अधिकारों पर कोई हस्तक्षेप नहीं निर्मय जीवन विकास का अवसर अभिव्यक्ति की आजादी और अधिकारों की पूर्ति ही स्वतंत्रता की सार्थकता सिद्ध करती है। जहाँ जन भावनाओं को समुचित सम्मान मिले। शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, आपूर्ति रोजगार और न्याय समान रूप से उपलब्ध हो, वहाँ की जनता को स्वतंत्रता का सहज एहसास हो सकता है।

साम्वैधानिक अधिकार की घोषणा एक मुलावा मात्र है जबतक व्यावहारिक धरातल पर न उत्तर पाये। यह वैसा ही है जैसा पुस्तक में ज्ञान हो और बैंक में पैसा आज बैंकों में जमा धन की सीमित निकासी से जनता को कठिनाई हो रही हैं अदूरदर्शी नीति और अपर्याप्त व्यवस्था से जन हित का पिछड़ना स्वाभविक है।

जनतंत्रता में केन्द्रित पूँजी और विकेन्द्रित सत्ता का कोई अर्थ नहीं। सत्ता की स्वायत्तता जनतंत्र पर खतरा है जबकि स्वायत्त शासन (सत्ता) सफल जनतंत्र का एक सपना है जब शोषण या सत्ता का हस्तक्षेप न हो। किसी देश की स्वतंत्रता से सत्ता का ही हस्तान्तण मात्र होता है तंत्र बदलता है अब स्वतंत्र हुआ या जनतंत्र हुआ यह नहीं कहा जा सकता। यहाँ निहितार्थ भले ही जनता का तंत्र हो किन्तु होता कुछ और है। पाँच वर्षों का यह तंत्र अपने शैशव में नहीं पहचाना जा सकता कि वह बहरा होगा या गूंगा। लेकिन पाँच वर्ष पूरा होते हुए भ्रष्टाचार की शिकायते जमा हो जाती है और जनतंत्र कठघरे में।

स्वतंत्रता एक उन्मुक्त आयाम है जबकि सशर्त स्वतंत्रता का अर्थ हीं परतंत्रता अर्थात कानूनी परतंत्रता है। भारत की यह सक्षम सत्ता का हस्तान्तरण स्वतंत्रता नहीं थी, सत्ता चलाने भर का अधिकार औपबंधिक फ्रीडम नहीं, ट्रान्सफर ऑफ पावी जिसके दस्तावेज में शर्तें है जिसके कारण भारत कई मामलों में परिवर्तन का अधिकार नहीं रखता। ऐसी स्वतंत्रता अगर मिली भी अपनी संविधान अगर लागू भी हुआ तो उन अनूच्छेदों को छोड़कर उससे तो स्पष्ट है कि हम आज भी अंग्रेजों के प्रति जिम्मेदार हैं। आप अवश्य ही जानते है कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को प्रत्यार्पित करने की बात अभी नहीं गयी हैं। कहा जाता है कि उनकी माँ के कथनानुसार नेता जी जीवित कही बिदेश में छिपे हैं। उनके घर को कोई दरवाजा आज भी रात में खुला रहता है कि उस मार्ग से वे प्रवेश करेंगे। भारत उन्हें मृत घोषित कर चुका है। चाहे नेता जी जीवित हो या मृत जब देश को आजादी मिल गयी तो वे दोषी कैसे बचे।

आज तक कश्मीर भारत का राज्य होते हुए (अभिन्न अंग ) विवादित क्यों रहा 370 धारा को बदलने का भारत को अधिकार नहीं था यह धारा कब हटेगी। कब तक वह संघर्ष को केन्द्र बना रहेगा। कब तक यहाँ के राज नेता इस धारा का दर्द झेलेंगा ? यह विषय सत्ता के मालिकों का है किन्तु वहाँ कुछ होता है तो हम जखमी अपने को क्यों अनुभव करते है। अगर उसपर निर्णय लेने का अधिकार नहीं तो हमें दूसरों के घाव की पीड़ा क्यों ? यह प्रश्न अवश्य ही कुछ अर्थ रखता है। शायद यह राजनैतिक छूट सत्ता भोगने मात्र के लिए की गयी है जो हम दिन रात देख रहे हैं। क्या आपको यह स्वतंत्रता के नाम पर मजाक तो नहीं समझ में आता। जिसके लिए आप पूछते रहते है कि क्या हम स्वतंत्र हैं या गुलाम

स्वावलंबन पाकर ही हम स्वतंत्रता का अनुभव कर सकते हैं।

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