Wed. Jan 1st, 2025

स्वर्णिम शतक 2024 की विदायी

भारत माता को नव वर्ष का सहर्ष सादर नमन !

सन् 1947 को 15 अगस्त का सुखद रुपन्दन और अद्यतन राष्ट्रीय राजनैतिक सामाजिक जीवन के उत्कर्षोपकर्ष अभिनन्दन के पीछे शदियों की परतंत्रता पर भी हमारा ख्याल जाता है जो कदाचित हमें सावधन करना चाहता है कि भूलकर भी सत्य और अहिंसा के पालन की भारतीय गरिमा को खोना अनुचित नहीं अनहित का आमंत्रण संभव है।

……..भल ही विज्ञान और टेक्नोलॉजी की गोद में देश पलकर विकास पाया है किन्तु प्रदूषण और कचरों के भंडार से आच्छादित हुआ है। पुनश्च, हमें तीव्र दौड़ लगाकर बढ़ने की प्रेरणा जगी, वह सहारनीय है तदपि हमारे रियल से वर्चुअल एवं नेचुरल से आर्टिफिसियल मार्ग पर कदम रखकर अपनी यात्रा को गति देना वैसा नही दिखता जैसा राजनीति से धर्म को निष्कासित कर नैतिकता को मानवता से विदा दिलाने में हाथ नहीं बँटाया ?

हमें कवि दिनकर की राष्ट्रीयता की उत्तमोत्तम भावना पर गौरव अनुभव होता है जिनकी हार्दिक अभिव्यंजना :-

(1) चाहे जितना घाट सजाओ, लेकिन पानी मरा हुआ।
कभी नही होगा निर्भर सा स्वच्छ और गति भरा हुआ ।।
(2) पुष्ट देह बलवान भुजाएँ रुखा चेहरा लाल मगर।
यह लोगे या लोगे पिचके गाल सॅवारी, मांग सुधर।।
(3) तेल फुलेल क्रीम कंधी से नकली रुप सजाओगे।
या असली सौन्दर्य लहू का आनन पर चमकाओगे ।।

प्यारे देशवासियों,

वृक्ष लगाये जा रहे, हरियाली बढ़ रही है।

आलू, प्याज, दाल और टमाटर तो विकास कर रहे है न? हम अर्थ व्यवस्था को इस प्रकार मजबूत और गणतंत्र को कमजोर कर रहे हैं।

झाडू जरुर चलायें। सड़कों को साफ रखिये। प्रदूषण को दूर भगाइए। वैक्सिन तो महामारी मिट नही पायी। इम्यूनिटी पैदा कर नही सकी। अब सम्भव है अखवार के प्रचार-प्रसार मात्र से ही रोग विदा ले लेंगे।

अब क्या करूँ भाई ? मेडिकल कॉलेजों में सीटें बढ़ायी गयी। गाँवों की ओर एम्स धीरे-धीरे खिसकना शुरु कर ही दिया।

रोगियों की जाँच के लिए अस्पताल की जाँच मसीन काम नही कर रही क्यों ? किन्तु हाँ, क्या हर्ज सारी स्वस्थ जनता की ही सार्वजनिक पूरे शरीर की जाँच करा लेने से पूर्ण स्वस्थता की उम्मीद करते हैं ?

राष्ट्र कवि माखन लाल चतुर्वेदी की “मैं हूँ एक सिपाही” का कविता आशय जानिये, क्या कहते हैं :-

“श्रम सीकर प्रहार पर जीकर बना लक्ष्य आराध्य।
मैं हूँ एक सिपाही बलि है मेरा अंतिम साध्य ।।”

मेरा निवेदन है देश के शीर्ष नेतृत्व से जो अर्पित है जरा ध्यान देंगे। रामायण और गीता तो धर्म में जुड़ गयी। देश तो धर्म निरपेक्ष घोषित है। कम से कम छोटी सी काव्य ऋचाओं को तो अपनाते चलें। इस योजना पर खर्च भी कम है। छोटे बजट से भी काम चल जायेगा जैसे नेताआ द्वारा आत्रा अभियान उद्घाटन को काफी महत्त्व दिया जाता है। बस क्षमा कीजिएगा। समय कम बचा। हमे आगन्तुक 2025 के स्वागत की तैयारी में लगना है।

सादर
डा० जी० भक्त

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