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हमारे एतिहासिक दिवस और धार्मिक दिवस हमें क्या सूचित करते हैं।

डा० जी० भक्त

हम समय कहें या जीवन काल, हमारे (मानव के) जीवन में कभी ऐसी घटनाएँ घटती हैं जिनसे समाज के हित में कुछ कल्याणकारी दिशा मिलती है, वह युग के लिए यादगार बनता है और समाज उसे स्वीकार करता हैं। वह संस्कृति का एक अंग बनता है। यह हमे आकश्मिक रूप से सामने आये अथवा चिन्तनया खोज का प्रतिफल हो सामाजिक या राष्ट्रीय हित में वैसा घटता हो या उसे धार्मिक मान्यता मिल जाती हो, हमारे सामाजिक या राष्ट्रीय जीवन में इसकी अनेको परम्परायें प्रचलन में आ रही हैं। उनका अपना महत्त्व और अपनी विशेषता है जीवन को दिग्दर्शन प्रदान करते हैं। इनके ही द्वारा हमारे देश सह मानव जाति को विकास और समृद्धि प्राप्त हुयी है। विश्व को भी मार्ग दर्शन मिला है। आज वह ऐतिहासिक रूप ले चुका है। इसकी परम्परा वर्तमान और जीवन्त है। पर्व त्योहार उसी के सक्रिय स्वरूप है। इनकी सत्ता हर युग में बनी रहेगी।

कालान्तर मे कभी इसके विकल्प भी सामने आते हैं। प्राकतिक विविधता के कारण सामाजिक जीवन में भिन्नता देखा जाना स्वाभाविक भी लगता है। भौगोलिक स्थिति, जन जीवन, सोच और परिस्थिति विशेष पाकर इनका प्रतिफलन नये रूपों में सामने आते है। उनके प्रकटीकरण का भी समाज पर प्रभाव पड़ता है। लोग उसे भी स्वीकार करते और अपने जीवन में भी ग्रहण करते है। यथा प्रभाव और सुविधा नूतन को स्वीकारणा और पुरातन को कमजोर होते एवं एक दिन विलुप्त होते भी पाते हैं।

प्रकृति जड़ है। मानव चेतन है। मानव प्रकृति से उत्पन्न है। प्रकृति ही उसका पोषण करती है, किन्तु चेतना सूक्ष्म है मानव जड़ स्थल है। फिर इस स्थूल काया में चेतन मन बुद्धि का संबंध आत्मा से है अतः जीव (मानव) का जन्म और मृत्यु निश्चित है। सृष्टि मे मानव के अति चेतन (सभ्य) प्राणि होने से संस्कृति विशिष्टता रखती है। इस प्रकार कालान्तर में और प्रकारान्तर से नये-नये ऐतिहासिक काल आये और अपनों अपने चिन्ह छोड़ गये। भूगर्भ वर्ता स्थापत्य प्रमाण, ग्रंथ, स्मृति लेख, सिक्के, युगीन इतिहासकारों के वर्णय लेख सारे प्रमाण रखते है यह विज्ञान का युग है। वैज्ञानिको ने इस क्षेत्र में अपूर्व कार्य किया है जो “पुरा ज्ञान श्रृंखला को सामने प्रस्तुत करने में सक्षम हो।

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