हानेमैन जयंती,10 अप्रैल
कोरोना के बदलते परिदृश्य पर गम्भीर किन्तु सकारात्मक विमर्श को निदर्शन
डॉ ० जी ० भक्त
विचारणीय है कि कोरोना जब स्थायीप्रकरण के रुप में उभरकर विश्वव्यापी परिदृश्य ला रहा , उसके लक्षणों में परिवर्तन पाये जा रहे है तो वह टीकाकरण से अलग एक चिकित्सात्मक निदान की ( थेराप्युटिक्स के मार्ग ) आवश्यकता आ खड़ी जान पड़ती है , जिस बिंदु पर गहन विमर्श चाहिए ।
स्वास्थ्य विभाग इस बिंदु पर चुप है | देश की सरकारे मात्र हिदायतों पर शख्त है किन्तु अर्थव्यवस्था की टंच रहनी चाहिए।महँगाई बढ़ती है तो वह चिंता की विषय नहीं , जब जीवन पर एक स्वास्थ्य और प्रभावी विचार क्या हो सकता है जब कोरोना को एक त्रास के रूप में दर्शाया जाता रहा है | इसके लिए मेरे समक्ष सटीक एवं प्रभावी थेराप्युटिक सिस्टम है डॉ ० हैनिमैन महोदय द्वारा दिया हुआ नेचर क्योर , जो सारी समस्याओं पर पहल देता है ।
हम मानव प्राणी प्रकृति में जन्म पाये प्रकृति में ही हमारा पोषण हुआ , प्रकृति में ही विकास पाये जा रहे है , अर्जन कर रहे है | सब हमें प्रकृति ही उपलब्ध कर पाती है ।
हर प्रकृति से ही हम रोग पाते हैं तथा रोगी बनकर अपनी चिकित्सा भी प्रकृति में ही पाकर स्वास्थ्य बनते हैं।स्वास्थ्य का विज्ञान और उसकी दवा प्रकृति कीमत ही देन है । सृष्टि की प्रत्येक सता जो स्वतंत्र पहचान रखती है उसमें प्रकृति ही अपना प्रतिनिधित्व रखती है | सजीव एवं निर्जीव सबमें प्रकृति ही अपनी स्थिति कायम रखी है ।
प्रकृति का अपना प्रवाह है , दिशा है , गुणवत्ता है।प्रकृति में संतुलन है | जब उसका संतुलन बिगड़ता है तो प्रकृति के प्रवाह एवं दिशा दोनों में अंतर आकर विकार उत्पन्न करता है जिससे रोग उत्पन्न होना भी एक स्थिति है । इससे एक नियम की जानकारी मिलती है कि प्रकृति में आया हुआ विकार हममें से किसी को प्रभावित करता है तो रोग के रूप में उसकी पहचान होने के पहले हमारे शरीर में दोष व्याप्त हो गया रहता है ।
महमाना डॉ ० हैनिमेन मानव के हितचिंतक ऐसा बतलाते है :-
जिनके जीवन में शुचिता है | पवित्रता है , प्रकृति की धारा में जीते है , वे निर्विकार , निरोग और सर्वगुण संपन्न होते है । जिनके जीवन में संयम नहीं उनकी जीवन शक्ति या रोग निवारक शक्ति कम होती जाती है ।
ऐसी ही बात प्रकृति के साथ भी घटती है । जब मानव द्वारा प्रकृति की समरसता या संतुलन के साथ छेड़छाड़ होता है तो प्रकृति के कार्यक्रम में व्यतिक्रम के साथ वातावरण में विकार ( प्रदुषण ) होने से रोगोत्पत्ति का कारण तैयार होता है जिसे हम विविध- रोग विष ( विषाण , जीवाणु , कीटाणु , वायरस , बैक्टीरिया , आदि ) के रूप में जान रहे है।
जब मानव शरीर में ही जीवनी – शक्ति रोग से ( रोग विष से ) लड़ने की क्षमता नहीं रखते तो उनके उपर रोग विष प्रभावी होगा ही | रोगप्रवण शरीर में मन भयभीत , सशंकित , उद्विग्न और चंचल रहा करेगा | अप्रत्याशित घटनाएं , वातावरण का परिवर्तन संक्रामक रोग आदि का उस पर सहज आक्रमण होगा | आयुर्वेद के ज्ञाता ऐसे रोग प्रवणता को कफ , पीत एवं वात तीन नामों से पुकारते है | हैनिमैन ने भी तीन प्रकार के रोग विष बतलाए , जिनके नाम क्रमशः सोरा , सिफलिस एवं सायकोलिस बतलाया |
इनमें सोर दोष ही संक्रामक रोगों का वाहक बतलाया गया है । अन्य दोषों जैसे सिफलिस के प्रभाव से शरीर के तंतुओं का क्षय , सस घाव बनना , सड़ना आदि लक्षण आते हैं । साइकोसिस के प्रभाव से शरीर के तंतुओं की वृद्धि ( Extra tissue growth ) हुआ काता है | इन दोषों का शरीर के अलग- अलग तंत्रों , अंगों एवं तंतुओं पर अलग – अलग प्रभाव होता है । यह भी तथ्य निर्देशित है कि किसी भी रोग विशेष का आक्रमण शरीर पर अपना असर छोड़ जाता है जो भविष्य में आने वाले लोगों से जुड़कर उसके लक्षणों में अपना मिश्रित प्रभाव भी दर्शाते पाये जाते हैं । एक यह भी तथ्य है कि मानव में पैतृक रोगों की छाप या संस्कार पूर्व से देखे जाते हैं । अत : उनपर किसी रोग ( सामान्य या संक्रमित कोई भी हो ) के आक्रमण के साथ उनका मिला – जुला प्रभाव रोग की पूर्व पहचान में भिन्नता लाता है । इस प्रकार व्यक्ति विशेष के पूर्व चरित्रगत लक्षण का रोग लक्षणों के साथ जुड़ने से अंतर देखा जाना आश्चर्य की बात नहीं ।
होमियोपैथिक चिकित्साशास्त्र रोग लक्षणों को ही चिकित्सा का आधार मानता है।उसमें हर दवा का स्वस्थ मानव पर परीक्षण ( proving ) मल करके उसकी मेटेरिया मेडिका तैयार रहती है । जिसे ड्रग पिक्चर कहा जाता है । उन्ही से रोगी विशेषक रोग लक्षणों की समानता स्थापित कर यह तय किया जाता है कि व्यक्ति विशेष की रूग्नावस्था के रोग लक्षण जिस दवा विशेष के ड्रग पिक्चर से पूर्ण मेल खाते है , वहीं दवा उस रोग को आरोग्य कर सकती है।यह हैनिमैन द्वारा प्रति पादित सत्य है और चिकित्सा द्वारा सत्यापित तथ्य भी ।
होमियोपैथिक चिकित्सा शास्त्र में ऐसे संक्रमक या संघाचा रोगों से उनके नोटों दवाएं ( रोग विष से उत्पन्न ) बनी है जो उन रोगों के लिए रोग के बचाव में कारगर भूमिका निभाते हैं।साथ ही जब कोई समलक्षण सम्पन्न दवा ( जटिल अवस्था में ) रोगी पर लाभ नहीं कर पाती , उस दवा में उससे अच्छा फल पाया जाता है ।
कोरोना के संदर्भ में करीब 20 ऐसी होमियोपैथिक दवाएं प्रचलित रूप से आप आजमा सकते हैं जो स्वास्थ्य तंत्र के समस्त अंगों को प्रभावित करने वाले रोगों में उनकी हर अवस्था में पाये जाने वालो से समता रखते हैं | चिकित्सा के क्षेत्र में जो अबतक खुलकर कोरोना की चिकित्सा पर ना कुछ सकरात्मक बतलाया गया है न प्रयास किया जा रहा है | टीका पर भी स्वास्थ्य विभाग द्वारा मात्र चल रहा है।रोग अपनी सूरत बदल रहा है जिससे चिकित्सा जगत अपने को परेशान पा रहा है किन्तु होमियोपैथि की सत्यता पर सोचने को तैयार नहीं । इसमें होमियोपैथगण आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ने में हिम्मत नहीं जुटा पा रहे है । अपनी पध्दति जो विश्व में विख्यात है हम फिर भी डर क्यों रहे ? महात्मा हनिमैन ने जो मार्ग दर्शाया है उसमें कोरोना से लड़ने के लिए हर शस्त्र तैयार है।आयुष को भी अपने अपने क्षेत्र में भूमिका निभानी चाहिए चमगादर जन्तु अद्भुत कोविड-19 स्तनपायी जानवर के प्लाज्मा से जुड़ा है तो इसके लिए एशियाली उड़नशील जन्तु से निर्मित नोटों भी हमारे पास है । सिफलिस , वैनिलिन , टयूवर्कुलिनम फासफोरस , कार्बोनिक हिप्पोनेनिनम आर्से आमोड एशियन सिया , यूफसिया एन्टिमटार्ट , एन्टिक- आर्से इविका ओसिम्म सैक्टम जस्टिसिया एकोनाइट बेलाडोना आदि सहायक दवाएं भी आपके पास रहते हुए देश सेवा के व्रत में पीछे क्यों पर रहे |
यह संक्रमण आपको परेशान नहीं कर रहा , वरना बार – बार आपको प्रेरित कर रहा है कि तुम पिछड़ क्यों रहे हो , सामने आकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर अपार यश के भागीदार बनो । यह अवसर है बढ़ने का , दृढ़ संकल्प लेने का , मानवता की रक्षा कर अपने को अमर घोषित करने का घ्यान दे , मैं वह होमियोपैथ हैं जो जन्म से अबतक एलोपैथिक दवा का सेवन नहीं हूँ किया |
जिसका व्रत लिया , उसके लिए मरना धर्म है ।
आजीवन साथी को प्रोत्साहित करता रहूँगा ।।
हैनिमैन की जयन्ती पर समर्पित
जय हनिमैन जय ! होमियोपैथी !!