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 होमियोपैथी संक्रमण , संक्रामक रोग , उसके बचाव और उनकी चिकित्सा -2

  डा ० जी ० भक्त 

 आज की वर्तमान व्यवस्था इस कोरोना के विरोध में जंग जीतने में किंकर्त्तव्य विमूढ़ है । इससे बचाव एवं आरोग्य के लिए उपयुक्त मार्ग नही मिल रहा किन्तु मैं अपनी 56 वर्षो की चिकित्सीय जानकारी एवं होमियोपैथिक ग्रंथों के अध्यन से जान पाया हूँ कि महात्मा हैनिमैन ने इस जंग का जीतने का सुलझा हुआ सिद्धान्त विश्व के समक्ष स्थापित कर सिद्ध कर दिखाया कि इसकी सेवाएँ और सम्भावनाएँ भविष्य की आने वाली पीढ़ी को मार्गदर्शन और मानवता का संरक्षण करेगा । अठारहवी शदी के उत्तरार्द्ध से 19 वीं शदी के पूर्वाद्ध ( 1755–1843 ) के बीच हनिमैन जर्मनी की भूमि पर एलोपैथिक चिकित्सक ( MD ) थे । उन्होंने इस पद्धति की मौलिक कमियों पर दृष्टिपात किया और उन कमियों को दूर कर उसक सिद्धान्त और विधान पर भी आगे बढ़कर विचारा । विश्व में चिकित्सा की नयी व्यवस्था में उनकी गहरी वैज्ञानिक सोच ने रोग के निदान को स्थायी आरोग्य , स्वास्थ्य के संरक्षण के साथ सुगम , सुलभ और सस्ती पद्धति के रुप में खड़ा किया । इनकी इस नयी खोज ने उनके ही जीवन काल में एलोपैथिक चिकित्सकों को अपनी उपाधि के परे होमियोपैथी स्वीकारनी पड़ी ।

 रोग विष ही रोग का समग्र निदान

 यह साश्वत नियम एवं प्रकृति सिद्ध सिद्धान्त है कि विष ही विष को शान्त करता है । इसकी मान्यता आदि काल से है । वेद भी कहता है- ” विषस्य विषमौषघम ” ” लाइक इज क्योर्ड वार्ड लाइक्स ” ” सिमिलिया सिमिलिवस क्योरेन्टर ” लेकिन गैलन का सिद्धान्त जो एलोपैथी के प्रचलन में है , वह कन्ट्रैरिया कन्ट्रैरिस ” प्रकृति का विपरीत ” शामक सिद्धान्त है , रोग लक्षणों को दवाता है । रोग के मूल कारण को मिटाता नही । हिप्पोक्रेट , हनिमैन दोनों ही समता के सिद्धान्त के पक्ष घर थे । जो वेद सम्मत है ।

 1974 में जब मैं करणाल ( हरियाणा ) के नेशनल डेरी इन्स्टीच्यूट में प्रशिक्षण ले रहा था तो वहाँ बतलाया गया कि पशु के एफ ० एम ० डी ० रोग ( ” खुरहा ” Foot & mouth Disease ) होता हो तो रुग्न पशु का मुँह किसी पात्र में रखे पानी में धोकर उस पानी में थोड़ा और पानी मिलाकर पशु शाला के अन्य पशुओं को दो – दो औस पिला देने पर उसका संक्रमण रुक जाता है । उसे आइसोपैथी कहते हैं।

 होमियोपैथी में ” नोसोड ” दवा का प्रचलन या जेनर का स्मॉल पौक्स वैक्सिन काउपॉक्स सिरम से तैयार चेचक विरोधी टीका विख्यात है । होमियोपैथी में हैनिमैन महोदय ने एन्टि मियाज्मेटिक ( रोग विष नाशक दवा ) के रुप में , टी ० बी ० सिफलिस , गौनौरिया के विष रोगी से प्राप्त कर ही टयूबर कुलिनम , वैसिलिनम सिफलिनम । मेडोरिनम वैक्सिनिनम वैरियोनिमन इत्यादि का सफल प्रयोग उन रोगों में किया , डा ० एलेन ने नोसोड पर एक पुस्तक लिखी । ये दवाएँ होमियोपैथी को विश्व व्यापी विसंक्रामक प्रचलन में संसिद्ध है ।

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