होमियोपैथी संक्रमण , संक्रामक रोग , उसके बचाव और उनकी चिकित्सा -1
डा ० जी ० भक्त
रोग संक्रमण ( Infection ) विकसित जीवों , पालतू पशुओं और मानव के लिए अथवा मानव जीवन से जुड़े जैव वातावरण में रोग व्यक्तिगत ही नही , एक सामाजिक समस्या है । स्वास्थ्य की क्षणिक या अस्थायी सामाजिक गतिविधियों में कष्ट अनुभव होना , सामान्य दुर्घटनाएँ , मानसिक अवस्था , भय या अवसाद भी थोड़ा या सामाजिक कष्ट देते हैं । इनकी दशा में सामान्य उपचार या संयम आदि से अवस्था सुधर जाती है किन्तु अधिक समय तक कष्ट झेलने तथा स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ने , भूख की कमी , नींद की कमी , दर्द प्यास दैनिक क्रिया आदि में अस्वामाविक अन्तर आना आदि रोग कहे जाते है । इनकी चिकित्सा जरुरी है । कुछ विशिष्ट रोग होते है । कुछ अंग विशेष या संस्थानों को अस्वाभाविक रुप से प्रभावित करते है । उनमें कष्ट तथा स्थूल विकार भी पैदा होते हैं । इनकी चिकित्सा विशेष प्रकार से की जाती है । कदाचित ये इन रोगों की सही पहचान न होने , कारणदि का पता न लग पाने अनुपयुक्त चिकित्सा के कारण अधिक समय बीत चुकने अथवा पूर्व में किसी रोग विशेष को दवाएँ जाने की स्थिति में रोग जटिल , कष्ट साध्य या असाध्य रुप भी लेते है । इनकी चिकित्सा में मूल कारणो सहित उनके सथूल प्रभावों को समझते हुए चिकित्सा की जानी चाहिए , अन्यथा रोग के प्रचलित या काल्पनिक नाम पर आधारित समान्य प्रचलन की दवा से चिकित्सा किये जाने पर रोग का निवारण नही हो पाना ही रोग का लम्बा समय खीचना या दिनानुदिन जटिल रोग उत्पन्न होने , जीवनी शक्ति कमजोर पड़ने या शारीरिक अंगों में स्थूल विकास आने की स्थिति में प्राण पर संकट आना संम्भव माना जाता है ।
कुछ रोग जैव प्रजाति में एक दूसरे में सम्पर्क के प्रसार पाते है उन्हें संक्रामक रोग कहा जाता है । संक्रमण में तेज रफ्तार आने से यह रोग व्यापक से बढ़कर बहव्यापक और घातक होता है । ऐसे रोग का संक्रमण काल , विकास काल और निवारण काल सीमित होता है । इसके लक्षणों में एक रुपता होती है । ये विशिष्ट नामों से जाने जाते है । इनके कारण निर्धारित होते हैं । इनके प्रसार के कारक निश्चित होते हैं । इनकी पहचान , संक्रमण क्षेत्र , लक्षण विशेष और उपयुक्त दवा का चुनाव औसत लक्षणों पर करके उस प्रयुक्त दवा का प्रयोग करना चाहिए एव उसी दवा को स्वल्प मात्रा निर्धारित शक्ति की एक खुराक दवा प्रतिषेधक ( बचाव ) के रुप में सभी स्वस्थ असंक्रमितों को यथा शीघ्र देनी चाहिए । संक्रमण लम्बा चलने पर उसे सप्ताह में एक बार पुनः प्रयोग करना अनिवार्य होगा ।
रोग की प्रकृति और लक्षण समष्टि पर ख्याल रख कर दवा का प्रयोग हो , आहार पान और स्थान शुद्ध , अनुकूल और विसंक्रमित हो साथ ही , व्यवस्थापक चिकित्सक , दवा विक्रेता , संचालक सेवक के साथ परिवार के सदस्य का स्वस्थता क समग्र विधानों का पालक , इमानदार और जन कल्याणकारी रुप में उतरना होगा । ऐसा नही कि संक्रामक रोग पर भी व्यावसायिक मानसिकता अपनाना निर्दयता एवं मानवता की हत्या का दोष माना जायेगा । समाज के पोषक , दूकानदार , आपूर्तिकर्ता एवं जन सेवा से जुड़े लोग इस अवधि में एक दूसरे का शोषण न करें । लेकिन समाचार के माध्यम से पाया कि कोरोना का जंग हम जीत पाये या नहीं किन्तु वैक्सिन के व्यापार में नौ व्यक्ति अरब पति बन गये । यह भी किसी तरह सुन पा सकू कि अपना देश भी लॉकडाउन की अवधि में व्यवसायिक मुनाफा में अच्छा कमाया है , क्यों नहीं , देश दुख दर्द में है कीमतें बढ़ी है । यातायात में भीड़ पर नियंत्रण नही है भाड़े मनमाने वसूले जा रहे है । सेवा का समय है । अपराध में कभी कहाँ ? लॉकडाउन का अर्थ है तालाबन्दी । जब ताल बन्द है तो दूकानें फुल टाइम चले कैसे ? सम्भव है , यह समाचार सरकार को चिढ़ने के लिए किसी उपद्रवी तत्त्व ने दिया हो या अर्थ व्यवस्था को मजबूती देने का नया घंधा ढूढ़ा गया हो । देश अपना है , जो संक्रमित है वे भी अपने मरने वाले और कमाने वाले भी अपने इसमें क्या दिक्कत ? चिन्ता न कीजिए तीन अक्षर का शब्द कोरोना बचा हुआ रहे , जंग जारी रहेगा । ऐसे भी वैज्ञानिक और विचारक दूर दृष्टि अपनाए हुए है तो अपनी सरकार भी तो कमर कस ली है । खैर यह तो संक्रामक में भी महासंक्रामक , एपेडमिक नही पैण्डेमिक है और दुनियाँ वालों के समाने एलोपैथिक जगत इस मामले में दिवालिया होते हुए कि न उनके पास दवा है न वैक्सिन , ऐसा बोल चुके है , जिन दवाओं के प्रयोग को अपना शस्त्र बना रखे है वे विवादित और हानि पहुँचाने वाली है तो उस मोथड़े कृपाण से जंग कैसे जीतियेगा ? अब तक कोरोना क वायरस पर भी मतभेद , नवनिमित्त वैक्सिन पर भी स्थिति स्पष्ट नहीं , रोग के लक्षण स्पष्ट नही , रोगी अगर पहले से किसी न किसी रोग से ग्रसित है तो उसे सदिग्ध पाने पर मात्र ( + ) ( – ) का पता लगाने से और एक ही दवा से तीर छोड़ने से रोग मिटेगा कि रोगी मरेगा कि साइड इफेक्ट लायेगा कि पूर्व ग्रसित दोष से टकड़ा कर कोई अपूर्व स्थिति लायेगा ? इस विषय पर क्यों नहीं सोचा जा रहा कि कोरोना वालों को जब प्रथम दशा में ठीक किया तो उसके नैसल पोलिपस का पता नही लगाया था जो अपना प्रभाव ( कोरोना का ) छिपाये रखा था और आँखों में जाकर उसने काला – सा गैंग्रीन पैदा कर दिया । इस टर्मिनेशन का क्लिनिकल एप्रोच होमियोपैथी में स्पष्ट है । उसकी दवा भी है । कोई अनुभवी थेराप्युटिस्ट ही समझ सकता है कि कैसे कोरोना के निगेटिव हो जाने पर पोलिप्वॉयड से मेटास्टेटिक सिन्ड्रोम आप्थैल्मिक गग्रीन पैदा किया । क्रोनिकली इसका टर्मिनेशन जब आज कोरोना का नया रुप सामने लाया तो चिकित्सा शास्त्री और भी चिन्ताग्रस्त हुए । क्या हर्ज है कि आप होमियोपैथी के शीष नेतृत्त्व ग्रहण कर आगे क्यों नही बढ़ रहे । विचारते क्यों नही , आज डेढ़ वर्षों से क्या सोच रहे हैं । हम तो इन्फैन्ट्री है उस जंग के , आप ठहरे एयर फोर्स के , विचार शक्ति के साथ वैज्ञानिक क्षमता से लैश जरा इसके बक्स को उलटकर खोजते और सोचते तो हमे भी बल मिलता । 1974 में जब WHO चेचक का Active search चला रही थी तो उस समय मैं उसमें काम किया था ।