एक आदर्शात्मक शुभ संदेश शारदा ( सरस्वती पूजा ) के अवसर पर
डा० जी० भक्त
सृष्टि की संस्कृति फैली संस्कृति कालान्तर में कई उत्थान – पतन के झकोड़े सही , उसमें मानव का नेतृत्व देवताओं ने किया और आज उसकी परम जिम्मेदारी भावी पीढ़ी के बालक , किशोर एवं युवाओं पर निर्भर हैं । किन्तु आज हम ऐसी द्विविधा के बीच गोते लगा रहे हैं जिसमें शिक्षा , स्वास्थ्य एवं सामाजिक सरोकार की गति दिनानुदिन मंद पड़ती जा रही हैं जबकि इस गणतंत्र का नेतृत्व ग्रहण करने वाले भी अपनी सांम्वैधानिक व्यवस्था के रहते हुए स्तंभित हो रहे ।
ऐसे में हम सामाजिक उत्थान की दिशा में अपनी सोच को आदर्शमय विचारों के साथ अपनी प्राचीन गरिमा को पुर्नस्थापित करते हुए पाठ्यक्रम के साथ हम राम , कष्णा , बुद्ध , गाँधी , कबीर , दयानन्द और विवेकानन्द को अपने चरित्र में अपनाएँ । इसी भूमिका में हमें अपनी सामने की पीढ़ी के छात्रों युवाओं और शैक्षिक परिवारों में गीता के ज्ञान को आत्मसात करने का विधान प्रारंभ करना नितान्त जरुरी हैं ।
छात्र प्रतिदिन गीता के एक श्लोक को हमारे साइट ” गुगल ” www.myxitiz.com पर पाकर उसे नियमित रोजनामचा सहित दिनचर्या के रूप में शिक्षा की तरह सदाचरण के संवरणार्थ अत्यावश्यक मानें ।
” आधुनिक जीवन में श्रीमद्भगवदगीता निष्पत्ति और निवृति ” नामक लघु पुस्तक , पृष्ठ मात्र 30 आपको दिशा निर्देश देगी ।
कामये दुखतप्तानां प्राणिनामार्त नाशये ।
ॐ सरसत्यै नमः