भाग-4 मनुष्य का सामाजिक जीवनादर्श
77. यह सेवा भक्ति हमारी अपनी नही । मैंकाले महोदय की शिक्षा नीति का प्रभाव है जो गुलानी समाप्ति के बाद भी गयी नहीं । आज भी हम उसे त्याग नहीं रहे । 78. उन्होंने आवेदन लिखने का शुद्ध तरीका तक नहीं सीखा । शिक्षा में इतनी गिरावट आयी ।
79. समाज टूट कर विखर रहा है । मजदूरों का पलायन दूसरे राज्यों में हो रहा है । दूसरे राज्य उन्हें अपनी सरजमी पर जमने देना नहीं चाहते ।
80. सॉप – छु दर की गति है उनकी । सरकार द्वारा दी गयी जॉब गारंटी कार्ड भाड़े पर काम कर रहे हैं ।
81. विकास की आँधी मन्द होती जा रही , एक ही आशा है कि केन्द्र कही विशेष राज्य का दर्जा दे दे । वे 2014 के चुनावी सर्कस में अपने तर्कश के इस अचूक वाण का प्रयोग करेन का संकल्प ले चुके हैं ।
82. अंग्रेजों ने गाँधी टोपी का प्रभाव नही सहन किया । आज भी टोपी अपने देश की सत्ता को भयभीत कर रही हैं । काँग्रेस में रहें कि नमोनमः स्वीकार करें अथवा अपने ” आप ” को श्रद्धा सुमन अर्पित करें ।
83. यही मनोदशा है समाज के नागरिकों का । यह स्वतंत्रता के इतिहास की उपलब्धि को बखूबी वयाँ कर रही है । हम किंकर्त्तव्य विमूढ़ हैं लेकिन सुलझे विचारक जागृति का पाठ पढ़ा रहे हैं ।
84. युवा वर्ग टोपी की ओर जाना चाह रहे हैं । बूढ़े अपना अनुभव टटोल रहे हैं । कहते हैं सबने आज तक ठगा ही , यह कहाँ से इमानदार निकलेगा । पार्टी वाले अपनी प्रतिक्रिया में टोपी को अनुभवहीन बता रहे हैं । सुविधा परस्तों का मोहभंग नही हो रहा है ।
85. लेकिन पूरे राजनैतिक परिदृश्य में भय व्याप्त है । जब वे भी “ आप ” के भाग्य की असलियत को भॉपने को बाध्य होकर प्रयोग प्रारंभ कर रहे हैं ।
86. यहाँ ” जन – गण – मन ” का समीकरण बँट चुका है । उसमें एकीकृत राष्ट्रीयता का बोध जगाने वाली शिक्षा की धार कमजोर हो चुकी है । उनका भय मिटाना है । समझाना है ।
87. महात्मा गाँधी ने भारत के गुलाम – नेताओं को निर्भीकता और स्वदेशी का पाठ पढ़ाया ।
88. आज हमें निषेधाज्ञा ० , धुआँ , गर्म पानी , लाठी और हवाई फायर से भय खाने की बात भूलने की आवश्यकता है । एकमत होने के लिए मत को साम्वैधानिक रुप से गोपनीय ही रखें । यह एकता का सही आकलन है ।
89. हमारी जागृति का चैप्टर 2021 ” सुरक्षित मत ” होना चाहिए । यह संदेश दें कि हमारा मत सुरक्षा का मत है । देश को बदलने का मत है ।
90. दुखद है कि आज राजनैतिक दलों के पास कार्यक्रम नहीं है । वे मौन हैं ।
91. जो मुखर हैं , वे मुखर ही हैं प्रखर नहीं । आरोप प्रत्यारोप और भुलावा मात्र । और सत्ता वाले अब देश का खजाना ही खाली करने पर तुले हैं ।
92. हम जिसे समाज या गाँव कहते हैं उसे थोड़ा अपना मानस ऊँचा उठाना होगा । जो अबतक समाज को तोड़ा है उसे पहचानना होगा ।
93. उसमें राष्ट्रोत्थान का मन्त्र है । सभी चेतेंगे । कार्यक्रम पर उतरेंगे । सेवा के प्रति जागरुक होंगे । जा गाँव और गाँव से बना समाज है उसका तंत्र जन – गण – मन का संवरण करे , तब स्थापित होगा सुदृढ़ जनतंत्र ।
94. स्वतंत्र देश का नागरिक अपना भयरहित , सुरक्षित और सम्मान पूर्ण जीवन चाहता है ।
95. वह प्रलोमन नहीं , विकास का अवसर चाहता है ।
96. वह राष्ट्र को भ्रष्टाचार से बचाना चाहता है ।
97. वह जनआकांक्षाओं के प्रति सरकार का सकारात्मक रुख चाहता है ।
98. वह अपने देश को गौरवशाली देखना चाहता है जैसा सुना जाता है ।
99. हम अपनी खोयी संस्कृति को लौटाना चाहते हैं । इतिहास को दुहराना नही ।
100. हम सच्ची स्वतंत्रता चाहते हैं जिसमें सद्भाव , समान अवसर और आर्थिक रुप से स्वावलंवन एवं सम्मान पूर्ण जीने का अधिकार हो ।