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 मानव स्वास्थ्य और होमियोपैथी

 डा ० जी ० भक्त

 सृष्टि का शिर मौड़ मानव आजतक धरती पर अपनी चेतना का पंख फैलाकर जितनी दूरिया तय की है , उपलब्धिया हासिल की है और संस्कृतियाँ कायम कर रखी है उसमें आज विद्यटन के बादल मंडराने लग है जबकि हमारी संस्कृति में उनके रक्षार्थ सारे विधान तैयार किये जा चुके ही नहीं बल्कि अपनाएँ और लाभ तक उठायें है तथापि आज हम चिन्तित है । विज्ञान और समाजवादी विधान के साथ खाद्य संस्करण , रोग नियंत्रण , चिकित्सा और स्वास्थ्य संरक्षण के प्रयास तक अपेक्षा से कम फलप्रद पाये जाने के पीछे विश्व परेशान है ।

 इस मार्ग में परेशानी के कारण एक वहीं रोग नहीं , रोगों की भरमार एवं उनके विविध रुपों में विस्तार के अतिरिक्त उनका कष्ट साध्य रुप उभरते जाता है । आगे बढ़कर देखें तो वर्तमान युग की व्यस्ततम जिन्दगी से उपजा तनाव और उपभोक्तावाद के दुष्परिणामों से शरीर पर पड़ने वाला कुप्रभाव हैं ।

 हम मूल कारणों में मात्र गरीबी , आर्थिक विषमता . स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता का अभाव एवं निम्नतर जीवन स्तर के साथ कुपोषण और व्यसन , मद्यपान एवं नशीले द्रव्यों के सेवन के साथ कुचिकित्सा एवं दवाओं के दुष्प्रभावों को भी भुला नहीं सकत ।

 एक और कारण है कि स्वतंत्रता प्रप्ति के इस चौहत्तर वर्षों की अवधि में भी हमारा देश स्वास्थ्य सुविधाओं को अपेक्षित स्वरुप में जुटा नहीं पाया है । व्यवस्था भी आशा के अनुरुप नहीं ।

 कारणों के पीछे एक बड़ा कारण है यहाँ की बढ़ती आवादी के हिसाव से उपलब्ध चिकित्सालयों में जो भीड लगती है वह चिकित्सा की यथेष्टता सिद्ध नही हो रही । गुणात्मक रुप से रोग निदान और उपचार को हम स्वस्थता के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रहे । यहाँ पारंपरिक व्यवस्था जो सब दिन से चली आ रही है जिसे अब नवीन दिशा दी जाने वाली है या पहले से जो व्यवहार में साथ ही कालक्रम में कई स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाये भी गये जो सफलता की छोर तक पहुँच न पाई , उस पर आज भी विजय पाने में दिशा दूर है जबकि सरकार इस दिशा में बहुत कुछ सोचती , योजना बनाती और उद्घाटन तो करती है किन्तु मुड़कर शायद देख पाती की नहीं कि वहाँ अबतक क्या कुछ हुआ ?

 चिकित्सालयों में हमेशा हड़ताल , खुलकर निजी क्लिनीक का चलना चिकित्सा का पूर्णतः व्यवसाय बना डालना , महंगी चिकित्सा व्यवस्था , उसमें कार्यकर्ताओं की कमी और उनका अन्य अन्य कार्यक्रमों का भी भार उठाए फिरना इस व्यवस्था को आशा के अनुरुप सफलता दिला पाने में व्यावहारिक कठिनाई गम्भीर समस्या है ।

 आज अपने देश में आयुर्वेद , होमियोपैथा , यूनानी आदि का संगठित रुप आयुष भारत सरकार द्वारा देश का अंग मान लिया गया है तथापि मिला जुलाकर हम सभी व्यस्त और सेवारत है । चिकित्सा चल रही है । बाट – बाट से चल रही है । लेकिन प्रश्न उठ रहा है कि स्वस्थता अपने मानक के अनुसार कहाँ पहुँच रही है , और दवा उद्योग एवं दवा खाने की रौनक में ताल मेंल का मूल्यांकन कौन करेगा ।

 होमियोपैथी की स्थिति पर भी विचारा जाना अनिर्वाय होगा । हैनिमैन महोदय द्वारा दी गया पद्धति और चिकित्सा व्यवस्था की आरोग्यता और मानव स्वास्थ्य के संरक्षण की गरिमा कोई कल्पना नहीं , पूर्ण एवं व्यावहारिक रुप से सफल विज्ञान का श्रेय प्राप्त कर चुकी है लेकिन खेद है कि होमियोपैथी की शिक्ष आज अपनी सच्चाई से हटकर कदम उठा रही है और विज्ञान की मर्यादा का हास होता जा रहा है जिसे सुधारना आवश्यक है ।

 चिकित्सा विज्ञान का यह अर्थ नही कि कमाई हो , शिक्षा मिले या न मिले कॉलेज चले । कॉलेजों में आकर अन्दर और बाहर दोनों चिकित्सा काउण्टर पर सचमुच रोगी की जुटान हो और रोगी से यह स्पष्ट सूचना मिले कि उक्त स्थान पर जनता को लाभ मिल रहा है वैसी हालत में ही उस कॉलेज के सफल छात्र चिकित्सा की गरीमा वढ़ा सकेंगे , जिसकी पूर्णतः कभी देखी जा रही है , CCH एवं CCRH तथा Ayush को भी सचेष्टता बरतनी चाहिए । होमियोपैथी के पास पूरी सेवा और सम्भावना के मार्ग है , बढ़ना हमको है । ऐसा करके ही एक दिन हम अपने देश को स्वास्थ्य के उच्चतर लक्ष्य तक पहुँच सकते है ।

 आने वाले दिनों म जिसकी मांग है , उसे हमें ही पूरी करनी है , इसलिए कि होमियोपैथी ही भारत जैसे गरीब देश का संरक्षण शीघ्र आरोग्यकारी , सस्ती , निरापद एवं जड़ से रोग मिटाने वाली पद्धति है ।

 ” हमें चाहिए सरकारी होमियोपैथी डिस्पेंसरी में दवाओं से सुसज्जित कमरा , चिकित्सक का कक्ष एवं अपना साइन वोर्ड जहाँ पहुँचे रोगी और प्राप्त करे होमियोपैथिक चिकित्सक की सेवा । “

 आम जनता की मांग

 माननीय सरकार का रहे ध्यान

 चिकित्सक महोदय की सेवा प्रधान

 तब हो देश का कल्याण ।

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