सामाजिक सरोकार से पिछड़ता
डा ० जी ० भक्त होमियोपैथ
स्वस्थ और समृद्ध मानव समाज के निर्माण सह विकास में स्वास्थ्य एवं शिक्षण पर आज गम्भीर चिन्तन की आवश्यकता आ पड़ी है । पहले हम सामाजिक जीवन मे पारिवारिक भूमिका पर उतरें जिसे हम मानवता की प्रथम पाठशाला मानते रहे हैं । जहाँ पहले प्यार की बुनियाद पर बच्चे अनुशासन सीखते थे , वही पर आज बच्चे प्यार और अपने स्वार्थ की चाह मात्र के लिए अपने माता – पिता एवं अभिभावकों के प्रति आकर्षित पाये जाते है । जहाँ इसके लिए बच्चे माता – पिता की फटकारे सुनते थे , आज वे उनका तिरष्कार करते और दूर हटते जा रहे हैं ।
वैसी ही हालत किशोर एवं युवा वर्य में प्रायः देखी जा रही है । वे आज माता – पिता अभिभावक एवं वरिष्ठ सदस्यों से दूरी बनाए रखना अधिक पसंद करते है । एक परम्परा भी ऐसी चल गयी है कि अभिभावकों की अति व्यस्त जीवनचर्या ने शिक्षण की नितान्तता का समाभोजन अपने बच्चों को आवासीय विद्यालयों में या सुबह – शाम प्राइवेट टयूशन में भेजकर ज्यादा समय बाहर उनसे दूर रहकर बिताने के अभ्यासी , क्रिकेट या मोबाईल को साथी बनाकर परिवार से लगाव नहीं रख पाते । प्रतिफल यह होता है कि परिवार के साथ जीवन व्यतीत करने , उनके स्नेह वात्सल्य के साथ जीने , सीखने , आज्ञा पालन करने , उनके प्रति कृतज्ञता निभाने , सम्मान देने , सेवा का लाभ पाने और पारिवारिक आदर्शों से अवगत होने , अपनी जिम्मेदारियों के प्रति जागरुक होने एवं सामाजिक सरोकार को समझने का अवसर खो डालते हैं ।
अब समस्या ऐसी उठ खड़ी होती है कि ये मानवीय गुण , जो मनुष्य के प्रेम , एकता , सहयोग , सम्पर्क लगाव और सहकार के महत्त्व को जानने लिए जरुरी है उसे कब सीखा जाय । विद्यालय की रोजनामचा , में पाठ्य पुस्तकों के सिलेवश के पाठ्यक्रमानुसार अनुशीलन में पारिवारिक जीवन के आयाम प्राप्त हो कैसे ?
भले ही कहा गया है कि शिक्षक का हृदय लाख – लाख माताओं का हृदय होता है । कारण यह कि शिक्षक समुदाय अपने प्रतिदिन के क्रियाशीलन में आज लगभग 500 छात्रों के बीच अपनी सेवा अर्पित करते हुए अपना व्यवाहारिक ज्ञान अर्पित करते हुए बहुत कुछ सीखते एवं अनुभव भी करते हैं । फिर भी विडम्वना है कि आज की शिक्षा इन मानवाचारों से दूर हटकर अन्यान्य विषयों से जुड़े कार्यकलापों में व्यस्त रहकर पठन – पाठन के मानकों के परे उनकी व्यस्तता बच्चों को नागरिक जीवन की शिक्षा देने में पिछड़ रहे हैं ।
विचारणीय है कि आज इस परिवेश में जो समाज को सुखी समृद्ध , स्वस्थ , कुशल , स्च्चरित्र और आदर्शोन्मुख स्वरुप देने की शिक्षा चाहिए वह कदाचित सम्भव नहीं दिख रहा । सच्चाई यह रही कि शिक्षा से गुणवत्ता गायव होती गयी । आज विद्यालयों , उनके संसाधनों , शिक्षकों , विभागीय निर्देशों , के आलोक में शिक्षण व्यवस्था अपूर्ण है । इसमें सही समायोजन के साथ अभिभावकों को भी जागरुक और तत्पर होकर विचारना ज्यादा आवश्यक हो गया है । स्मार्टनेश से मेघा और आचरण निर्माण का पिछड़ना मानवता के हक में विघटनकारी ही साबित हो सकेगा ।
डा ० जी ० भक्त
सलाहकार सदस्य
मानवाधिकार टू डे