मानवता हो या पशुता, सबकी अपनी-अपनी भूमिका और उसकी महत्ता है। यही समझना है कि गौ को हम माता और वृषभ (बैल) को महादेव मानते थे। आज ट्रैक्टर का युग जब आया तो बैल नजर ही नही आता, उसकी महत्ता अब न रही तो उसकी सत्ता ही समाप्त।
मानसून की वर्षा जीवन दायिनी है। कई प्रकार से प्रकृति आर उसकी सृष्टि का पोषण और संबर्द्धन होता रहता है। हम सदैव आकाश में बादल देख प्रसन्न होते है। हर दृष्टि से जड़ हो या चेतन चर या अचर, यह पंच भौतिक सृष्टि अपने आप में सम्पूर्णता संजोये रहती है जिसका समय पर प्रत्यक्षीकरण सामने आता है।
मानव चेतन प्राणि है। वह इसी कारण सृष्टि का शिरमौड़ है। उसकी चेतना में ग्रहण, स्मरण, चिन्तन, अनुभूति आदि के भाव भरे है। वह जितना अपनी भावना को कल्पना में सरावोर कर चिन्तन को विस्तार देता है उसके मानस में उन विचारों का संवर्द्धन, संकलन, संस्करण, प्रयोजन एवं संवरण से सच्चरित्र और व्यक्तित्व निखर कर आता है जिसे आदर्श मय जीवन यापन का संदेश समाज सहित राष्ट्र को गौरव प्रदान करता है। ऐसे महान पुरूषों में आदर्श पनपता है साथ ही उनके ही प्रयास उस परिवेश में हरियाली तथा उस व्यक्तित्तव का पहचान मिलती है। वे अपने क्षेत्र के आदर्श पुरुषो में गिने जाते है। इतना ही नहीं, ऐसे पुरुष विकसित प्रेरणा के साधक होते है। वे अपने ही क्षेत्र में विकास को प्रगत और नूतन दिशा भी प्रदान करते है। ऐसे भी व्यक्ति मिलते है जिनकी पहुँच बहुआयामी होती है। वे इसस भी आगे बढ़कर बहुमुर्सी या चतुर्मुखी प्रतिभा समपन्न पाये गये ह। संस्कार से प्राकृत रुप में अपने ज्ञान से ज्ञान के प्रकाश से व्यवहार से, अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी प्रतिभा के प्रचारक, प्रकाशक, प्रवर्तक, उदबोधक, संवेदक आदि रुप में अपनी व्यवहारिक भूमिका में अपने को निखार पाते हैं। ऐसे पुरुष आदर्श स्थापित कर युगान्तकारी माने जाते एवं सम्मान से सवारे जाते है।
जाति, धर्म, क्षेत्र एवं काल विषेष के साथ अखिल विश्व में अपना नाम अमर कर अनन्त काल तक पूजे और याद किये जाने वाले पुरुष देव तुल्य दिव्याकाश में नक्षत्र बनकर विराजने वाले सप्रर्षि भी अपनी प्रभा फैला रहे हैं। देव, ऋषि, तपस्वी, ज्ञानी, भक्त सभी आदर्श पुरुष हैं। ये हर प्रकार से धरती, सागर और अन्तरिक्ष में स्थित प्रकृति के पोषक, पालक, संरक्षक, ज्ञान, प्रभा के प्रदाता, विधाता, निर्माता तथा मुक्तिदाता माने जाते हैं। इसी हेतु ज्ञानीजन अपने जीवन में स्वेच्छा से किसी नर नारायण को आदर्श पुरुष स्वीकार कर उनके ही पद चिन्हों पर चलने का व्रत लेते और जीवन को तदनुरुप घरातल प्रदान कर चरितार्थ होते हैं।
प्रथ्वी के धरातल पर उत्तम उपज पाने के लिए मिट्टी ही नही उत्तम बीज, खाद, पानी, जुताई, सिंचाइ, निकाई, गुरायी के साथ उर्वरक एवं कीट नाशक आदि की आवश्यकता उपरिहार्य है। साथ ही उर्वरक एवं कीट-नाशक आदि की आवश्यकता भी। ये सभी हम आसानी से जुटा लेते है किन्तु समय पर मानसून की वर्षा का योगदान अपनी खासियत रखती है। इस हेतु आकाश में घनघटा की उपस्थिति अति अपेक्षित और प्रसन्नता दायक होती है। उसी प्रकार जीवन में पोषण के साथ ज्ञान की उपादेयता भुलाई नही जा सकती। उसके लिए प्रकृति का प्रांगण परिवार माता-पिता तथा सामाजिक परिवेश ही काफी है, किन्तु उसमें विशिष्टता की चाहत शिक्षण की अपेक्षा रखती है। इसके लिए गुरु, विद्यालय, शिक्षक, पुस्तक, कलम कॉपी, स्याही की नितान्तता भी, सबका सामन्जस्य और समय का सदुपयोग ही ज्ञान की पराकाष्ठा तक हमें साथ देता है। यहाँ तक तो प्राथमिक शिक्षा (विद्या ग्रहण) के लिए आवश्यक मानते हैं।
जीवन की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति तक तो हम इतने भर में जीवन यापन भली प्रकार कर ले सकते है। इसके लिए जीवन के क्षेत्र का विस्तार अपार विषयों को अपना चुका है जिसके लिए तत्तत विषयों के अलग-अलग विभाग सृजित हो चुके हैं। जिन्हें उँची शिक्षा के तहत हम ग्रहण करते है। इस स्तर के शिक्षण विशिष्ट लेखकों विशेषज्ञों एवं विद्वदमण्डल के ज्ञान सम्पुट अध्ययन से सम्पुष्ट होते हैं।
ज्ञान असीम है। ज्ञानवान अनंत है। इन ज्ञान सम्पदा का क्षेत्र विस्तार अपार है। इसमें सफल बहुल प्रमाण वैभव विभूतियों की विश्व में न कमी है न उनके ज्ञान की सीमा। वैसे महाज्ञानियों के आख्यान, ज्ञान, विधान के संधान का प्रावधान किया गया है। जिन विशिष्ट ज्ञानदा महानुभावों को शारस्वत वरदान प्राप्त हुए, उन आदर्श जन मान्य महापुरुषों में से जिन्हें जिनकी जीवन गाथा हृदयंगम सुधादान-सा सरस रुचिकर लगा वे उनके आदर्श बने। इस प्रकार ज्ञान समष्टि व्यष्टि वाचकता से प्रभावित अभिव्यंजित हो पाया। ज्ञान पिपासु ने घनघटा के सुधा बिन्दु निपात का रसपान कर सन्तुष्टि पायी।
डा० जी० भक्त