सच्चाई में भी सावधानी जरुरी कृप्या इसे भूले नहीं।
डा० जी० भक्त
हम भारतीय ही नही, सम्पूर्ण विश्व को भी गर्व है कि दुनियाँ आज अपार आबादी पाकर अपनी जंगली जीवन से ऊपर उठकर क्या नही पायी, हाथों में हाथ लेकर विकास के शिखर को चूम पायी। मिट्टी से सोना, दुनियाँ का हर कोना अपनी चमक-दमक निखार कर शैलानियों को आकर्षित कर आश्चर्य चकित कर रही है।
…कन्तु भव्यता के बीच सभ्यता और सम्पदा, सौभ्यता को श्रृंगार बना आज एक खास प्रकार की भूख, चिन्ता, भय और अशान्ति हमारे बीच भ्रान्ति भी फैला रही है। हमारे अतीत का इतिहास जो हमे सीख दे गया, जिसके प्रकाश मे सभ्यता और संस्कृति की गंध विश्व के कोने-कोने तक फैला। ज्ञान की गरिमा वेदों की रचना में निखार पाकर भौतिक जगत को सवारा, ज्ञान का प्रसार किया, प्रकृति का ज्ञान और अपनी पहचान से जीवन जगमगाया। भारत और युनान जैसे विश्व के कई देश अपनी सोच और चिन्तन के बदौलत मानव मानवता को उत्कर्ष तक पहुँचा पाने पोषण, सरंक्षण, विकास, ज्ञान, संस्कार, स्वास्थ्य, समृद्धि, आध्यात्म और धर्म विधान तक का आधान किया। मानवता में देवत्त्व (भगवद्ज्ञान) भरने और सिद्धि पाने तक से विभूषित किया।
इससे भी बढ़कर मानव सृष्टि को अप्रतिम जीवन के लक्ष्य तक मेघा, कौशल, सम्पन्नता और जीवन्तता अर्जित कर अमरता दिलाने का भी मार्ग प्रशस्थ किया। यहाँ तक कि धन, बल, संतान और सत्व पाकर अभिमान, विलासिता, सुख सम्पन्नता और भोग भुनाने में व्यसन पर ध्यान देने से बचाव का भी विधान बताया। ज्ञानी, धर्मात्मा, संत, त्यागी, वैरागी, जनकल्याण से जुड़े महान आत्माओं का धरती पर पदार्पण देवताओं का अवतरण और पापियों का नाश तक किया जाना भी सम्भव पाया।
……..तथापि दुष्प्रवित्तियों का जाल फैलना जाड़ी रहा… क्या कारण था कि मानव सब कुछ पाकर अपने आपको विनाश के मुँह मे डालने से पीछे नही पड़ा ?
अगर सृजन में समृद्धि आयी तो अर्जन में उन्नति भी फली। लेकिन भोग और सुख साधन जुटाने विलासिता के साथ निष्कर्म जीवन बिताने की आकांक्षा ने मानव को दानव कहे अथवा स्वार्थ के साधन में घृणा, द्वेष, दलन, हिंसा और आपराधिक आचरण से अनीति और अमानवता का फैलना विविध रुप लेकर इस सृष्टि के पीछे पड़ा। फूल का काटे से संबंध जैसा दिखा मानव के साथ दानवता, जिसे हम किसी प्रकार से नही चाहते हुए भी उसके आकांक्षी और अभ्यासी बने। अगर नही बनना भी चाहते तो सुधार पाना भाड़ी पड़ रहा। आज जो प्रदूषण है वही भूषण भी बन रहा। हम जिसे विकास और संरक्षण का उपकरण बनाया सुरक्षित रहने का संसाधन माना सूई से तलवार, पत्थर फेंकने से मिशाइल और परमाणु शक्ति तक की हमारी आकांक्षा बढ़ती गयी जिसे मानव की महत्वाकांक्षा हम कह सकते है, ये पाप के परिधान है लेकिन हम तो उसे ही धारण करने के पीछे पड़े रहते है।
पशु या वन्य जीवन अगर धातक है तो उनकी गिनती मानव में नही है। गौजाति सींग होने से हिंसक है किन्तु वह माता या शिव के रुप में पूजित है परन्तु अविधा धारक मानव को पशु की संज्ञा मिली है। आज हम मानव समष्टि शिक्षित होने से पशु नही किन्तु हिंसक बनने से पशुता के पोषक जरुर ही माने जायें, जो अपेक्षित नही। आज हम मानवता की रक्षा करने वाले उपकरण, अमानुषिक आचरण धारण करते है, उनसे तो सावधानी वरतना ही मानवता की रक्षा कर सकता है, धार्मिक स्वांग कदापि नहीं। अज्ञानता या ज्ञान रहते भूल करना विषपान सदृश है। मानवता से दूर विषक्तता से भरपूर विनाश का मूल शिक्षित कहना या कहलाना ही बड़ी भूल है।