Wed. Dec 3rd, 2025

माननीय जन-मन रंजन जनतंत्र के नय-नेत्र द्वय मोदी जी एवं नितीश कुमार जी जन जागृति के मोहक राग और पराग

हे, जनमन रंजन बिहार में बहार के सार्थक पुरुष प्रभंजन, जनतंत्र के पोषक ईश मनीष श्रीमान् नितीश जी इस बौद्ध बिहार के जनाधार जो अपनी स्वच्छन्द नीति से बार-बार उपहार समर्पण किया और जंगल राज के उद्धारक बन जन जन के हृदय में आस्था के बीज डाले।

आज हम ऐसा कहने से पीछे नही पड़ते कि शराबबंदी की कुंडी जब बंदी की ललकार खड़ी थी तो विविध वृत्तियों की अगणित प्रक्रिया स्वीकार की और माँ भारती की आरती सजाकर बेरोजगार शिक्षितों की तरसती हृदतंत्री को रस सिक्त एवं तृप्त की। आश्चर्य है कि सत-लक्ष अर्थोपादान दान निधानत्वात रोजगार की बरसात ला दी।…..कुछ कभी रह गयी जिसकी सत्ता और महता पर नीतिज्ञों ने शायद ध्यान नही दिया। वह रही शिक्षा की गुणवत्ता में लगातार अवरोहण। अनुशासन और नैतिकता में दिनानुदिन गिरावट, समाज में सामाजिक सरोकार पर कभी ध्यान नही जाता। पारिवारिक परिवेश में यह दोष, अभिभावकों का इस बिन्दु पर कोई सोच नही, मूल्य परक शिक्षा पर शिक्षण परिवेश आँख मूँद रखा। कर्त्तव्य बोध को ठुकराकर स्वार्थ पर झुकाव और रुझान एकता सहृदयता के साथ सामाजिक परिदृश्य यह नही विचारता कि गरीब हो, या धनी सबों को समाज की महता पर विचारना है। जबतक उसमें प्राण है जन-जन कण-कण और क्षण-क्षण का संयोग ही सृजन और जीवन का तादात्म्य जानना।

भारत आज आडम्वर को सनातन बतलाता है। यह भूल है। भारतीय शिक्षा विधान चारित्रिक, व्यवहारिक, सात्विक, बौद्धिक और जीवनीय कौशल पर टिकी है। परमाण्विक उर्जा और आयुध निर्माण पर नही। जहाँ “हिंसात्मक विधान ही जीवन को सुरक्षा प्रदान करता है” तो वह सिद्धान्त अमरता का मार्ग माना जाता है। वहाँ से जीवन विदा ले चुका है ऐसा माना जाय। जो इसे नही सिखना चाहे न उसका आदर करे उसकी सत्ता, संरक्षण और सृजन कभी स्वीकार्य नही, मात्र व्यवसाय है, जीवन का सार वहाँ नही……। यही सोच रही आज के चुनाव के दर्शन शास्त्र में, “आखिर वह है कौन, जिसे वोट दिया जाय”।

यही सही सोच है अंतिम निर्णय का।

“नितीश जी केन्द्र से बुलाये गये थे न जंगल काटने के लिए न चारा का नाश करने के लिए”। कुछ न कुछ भले बुरे काल, कर्म, स्वभाव, और गुण पर निर्भर विधान होता रहता है पर सत्य का प्रकाश नाश नही होता जिसे आत्मा पहचान कर चलती और निपटती है।

! इति 2025 बिहार राज्य चुनावाशय !

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