शिक्षक दिवस 5 सितम्बर
महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी महोदय को समर्पित . शिक्षा में सुधार पर लिखित . डा ० जी ० भक्त की उत्कृष्ट कृति “ जन शिक्षण में अभिव्यक्ति की यथार्थता ” से साभार प्रस्तुति छात्रों के लिए कक्षा 4 से 10 के लिए संकल्प । यह सरकारी एवं निजी विद्यालयों के छात्र के लिए तैयार किया गया है ।
छात्रों द्वारा संकल्प ग्रहण :-
1. हम हृदय से संकल्प लेते हैं कि विद्यालय की गतिविधियाँ में प्रतिदिन समय से उपस्थिति रहा करेंगें , मन से ग्रहण करेंगे और उसे अपने जीवन में उतारने की आदत डालेंगे । यह भी प्रयास करेंगे कि हम से किसी प्रकार की त्रुटि न हो । हम विद्यालय ही नहीं , अपने परिवार में भी आज्ञा पालन को पहला कर्त्तव्य मानेंगे । उसे नम्रता , सहनशीलता तथा तत्परता के साथ पूरा करेगें । बड़ों के प्रति सम्मान , सेवा भावना एवं भक्ति का निर्वाह करते हुए उनका कृपा पात्र बनेंगे ।
2. हम अपने साथियों सहित आदरणीय शिक्षकों के समक्ष व्रत लेते है कि अपने माता – पिता की इच्छा और उनके प्रयासों का ख्याल करते हुए उनकी सफलता और अपने जीवन को विकास के पथ पर ले चलने हेतु अध्यापकों द्वारा दी गयी शिक्षा का भक्तिपूर्वक अनुशरण करेंगे । उनके बताये गये मार्ग पर चलकर अपनी योग्यता और क्षमता का विकास करेंगे । जीवन में अनुशासन , नैतिकता एवं दायित्व बोध अपनाकर मूल्य परक जीवन की आधारशिला तैयार करेंगे । विद्यालय जीवन की समाप्ति तक सकारात्मक जीवन जीने , स्वावलम्बन अपनाने तथा प्रगतिशील निर्णय लेने के लिए प्रतिबद्ध होंगे । राष्ट्र की सेवा और समृद्धि का लक्ष्य ईमानदारी और जिम्मेदारी के साथ निभायेंगे ।
3. हम भारत के छात्र एवं युवा इस सरस्वती मंदिर में संकल्प लेते हैं कि माता , मातृभूमि और मातृभाषा का अनादर जीते जी नहीं करेंगे । अगर हम अपने समक्ष किसी के द्वारा ऐसा होते पायेंगे तो सत्य अहिंसा के बल पर उनमें नैतिक और मानसिक बदलाव लाने का प्रयास करेंगे । हम राष्ट्र की एकता और भाईचारा को धरती पर स्थापित करने तथा राष्ट्र की मर्यादा को पुनर्स्थापित करने में पीछे नहीं रहेंगे ।
4. हम अपने देश के बच्चे , परिवार के उत्तराधिकारी तथा देश के भविष्य निर्माता के रूप में व्रत लेते हैं कि एक प्रवृद्ध , अनुशासित और कर्मठ नागरिक बनकर देश की गिरती गरिमा को बचा पायेंगे तथा परिवेश , पर्यावरण और सांस्कृतिक परम्परा में पवित्रता एवं समरसता ला सकेंगे । आज जिस प्रकार की सकारात्मक शिक्षा की आवश्यकता दिख रही है , उसकी स्थापना में हमारा कदम आगे रहेगा तथा देश में सकारात्मक परिवर्तन की क्रांति लाने एवं मूल्य परक सामाजिक जीवन की स्थापना में हम छात्र अपना इतिहास लिखेंग ।
5. हम अपनी प्रतिबद्धता का विस्तार इस सबा अरब जनशक्ति वाले संघीय जन तंत्रात्मक देश के किसान , मजदूर , विविध पेशों में संलग्न राष्ट्र के नागरिकों तथा जन सेवकों की अपेक्षाओं को उचित सम्मान और विकास का अवसर प्रदान करने की दिशा में स्वच्छ और स्वस्थ राजनीति की स्थापना पर शोध कर गणतंत्र को सुदृढ़ एवं सफल बनाएंगे और जनहितकारी राष्ट्र की नींव डालने में मदद करेंगे . साथ ही अपने पूजनीय गुरुजनों से भी आग्रहशील होंगे कि वे शैक्षिक परिवेश को पवित्र बनाने और कदाचार मुक्त शिक्षा की पुनर्स्थापना का श्रेय ग्रहण कर प्राचीन सांस्कृतिक आदर्श कायम करने में अग्रणी साबित हों , सरस्वती अपने पुत्रों को कलंकित पाकर दुःखी है । हमें उनके अश्रु प्रवाह को रोकने की जिम्मेदारी लेनी है ।
6. हम छात्रगण अपने देश के अपेक्षित और हाशिये पर जीवन जीने वालों के दुखः दर्द को कम करने का व्रत लेते हैं साथ ही हम चाहते हैं कि वैसे लोग भी देश की दशा और दिशा से अवगत और जागरुक बने एवं उर्जा तथा संसाधन का समुचित प्रयोग सहअस्तित्व के लक्ष्य के साथ प्रारंभ हो । जब तक हमें सम्पूर्ण राष्ट्र के नागरिकों का आशीष शिरोधार्य नहीं होगा , हमारे संकल्प अधूरे रह जायेंगे । अब भारत माता आपका रक्त नही चाहती , आप हमें अपना स्नेह दें , हम अपनी सेवा देंगे । देश के रक्त से अस्थिरता का जीवाणु समाप्त करना समस्या का सही समाधन नहीं , सिर्फ उद्बोधन चाहिए । सामाजिक सरोकारों की अनेदशी ही मानवता का हनन और राष्ट्रीयता का पतन है ।
7. आज हमारे भाई अपनी बहनों की अस्मिता से खेल रहे हैं । जिन माताओं की गोद में पले , उनका दूध पीकर भरण – पोषण पाने वाले पुत्र उनको समुचित सेवा नहीं दे रहे । अपने देश का आदमी अपने ही भाईयों का शोषण कर रहा है । खून का प्यासा बना है , उनकी थाली की रोटी छीन रहा है । यह विषमता कैसी ? देश शिक्षित हुआ , समृद्धि भी , किन्तु गुणवत्ता समाप्त हो गयी । हम आत्मीयता भूल बैठे । इस शिक्षा को सकारात्मक दिशा देनी है । वह शिक्षा कैसी होगी – इस पर विचारना है . शोध करना है । उस शिक्षा में किन तत्वों का समावेश करना है इसकी हमें उँची शिक्षा प्राप्त शैक्षिक समूह से अपेक्षा है कि वे इस दिशा में मार्गदर्शन दें । बिगड़ती शिक्षा के दुष्यरिणामों से देश को उबारें । इन असंख्य छात्रों में वह ज्ञानामृत दान करें , जिसका पान कर सारा जग खुशहाल हो जाये ।
हम व्रत लेते हैं , किन्तु हमारे पूज्य शिक्षक हमें अपना शिष्य समझकर शिक्षा दें तथा हमारे छात्र सखा अपने में पात्रता अर्जित कर अपने लक्ष्य को सफल बना पायें ।