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 सीख एक अनुपन भीख

 डा ० जी ० भक्त

 एक व्यक्ति जब कही से कुछ पाता है और सश्रद्धा उसे लाकर अपने अंगोछे की गट्ठर खोल अपने परिवार के किसी सदस्य से एक वर्त्तन उसे रखने के लिए मांगता है । परिवार से वह उत्तर पाता है कि वर्त्तन खाली नही है । इस पर वह उस वर्तन का सामान कही उझल कर लाने और इसे उसमें सावधानी से डालकर सुरक्षित रखने का आदेश देता है । ऐसा भाव हो सीख ग्रहण करने वालों में शिक्षार्थियों में । ग्राहक म पात्रा प्रधान गुण है । अपने को अहं से मुक्त कर । तब सीख शिक्षा का ज्ञान का पर्याय बन पायेगी अन्यथा वह भीख भी नही । सीख का अभिप्राय है ज्ञान ग्रहण करने से तथा भीख का अभिप्राय है आग्रह पूर्वक या ग्राह्यतापूर्ण भाव से सीखना , अभीप्सा पूर्ण प्रत्याशा एवं उत्सुकता पूर्वक प्राप्त करना । मन से अहंकार मिटाकर जैसे अकिंचनता का भाव रखकर , जैसे भूखे को भोजन मिल रहा हो या निर्धन को राज्य । उसे ऐसे संजोना जैसे वह हमारे लिए सबसे अतिथय महत्त्व का हो । लाखों की सम्पत्ति से दो अक्षर का ज्ञान सबसे उत्तम छन मानना ।

 ज्ञान के पीछे उसका उद्देश्य एवं लक्ष्य निर्धारित होता है । इसे पाकर वही कृत – कृत्य ( संतुष्ट ) होता है जो उस तथ्य को अपने मन और हृदय की आँख से अपने लक्ष्यों के अनुरुप लक्षित पाता है तथा निर्णय लेता है अपने भावों के अनूकूल । इन निजी भावनाओं , पूर्व की कल्पना , अपनी आवश्यकताओं , कल्याणकारी उद्देश्यों , पारमार्थिक लक्ष्यों के साथ जोड़ कर अपने ज्ञान – विज्ञान के मंत्रों से अपने शरीर के यंत्रों के सहारे अपनी कला और कौशल के साथ लक्ष्य प्राप्ति में तत्परता से अवसर का उपयोग कर ज्ञान की उपयोगिता सिद्ध करने में जुट जायें यही आपका पक्का पुरुषार्थ माना जायेगा ।

 इस लोक में ज्ञान भक्ति और कर्म को ही महत्त्व दिया जाता है । ज्ञान को जो गरिमा प्राप्त है , उसका कारण है धरती से जुड़ी सम्पत्ति , समृद्धि और संसाधनों से अवगत होना है । भक्ति भाव सृष्टि कर्ता के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन एवं जगत के प्रति ऐक्य स्थापित करना । कर्म से तात्पर्य है जीवन के पोषण एवं संरक्षण सहित आत्मा और देह के रहस्य को जानते हुए सृष्टि के तारतम्य को समझते हुए साल्लोक्य , साकार सान्निध्य एवं सायुज्ज संबंध स्थापित कर ब्रह्म के अन्तर्हित हो जाना । मानवता का लौकिक और पारलौकिक यथार्थ देह का पंचतत्त्व में विलय तथा आत्मा का उर्ध्वगमन ( Salvation ) ही नैसर्जिकता ( Eternity ) है और मुक्ति का निहितार्थ ।

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