बड़े लोगों में बुराई के लक्षण चिन्ता की बात
It is a matter of concern for the signs of evil in older people
यह किसी भी देश के नागरिकों के लिए समस्या बन जाती है जब ऐसी सूचनाएँ सामने आती है । यह सुनने और सोचने में भी अच्छा नही लगता कि जिन्हें जनता अपने देश के विकास और सच्चे नेतृत्व देने के लायक योग्य , अनुभवी और सेवा परायण समझ कर चुना उनके बोल और कार्य दोनों ही असंगत पाये गये ।
यह स्वाभाविक है कि मानव से भी भूल होती है । भूल के साथ सुधार की सम्भावना जुड़ी होती है । किन्तु द्रोह की भावना पाल कर या स्वार्थ वश अकल्याण की सोच नेतृत्व का काला पक्ष बनता है जिस पर देश की सारी जनसंख्या की नजर होती है । चुनावों में उनके प्रचार जितने पवित्र लगते हैं , शपथ लेने के बाद उनके व्यवहार पर अगर किसी दिशा से उँगली उठी तो वह नितान्त विचारणीय होगा अथवा उस पर साम्बैधानिक पहल की जरुरत पड़ेगी हीं । वैसे में संसद या विधान मंडल का पाँच साल विवाद , संवाद एवं विमर्श की जगह शोर या कोलाहल का वातावरण कितना सौम्य या सुसंगत लगता है , जनता समझती है अथवा नही , यह चिन्ता का विषय मात्र बनने तक ही नहीं , राजनैतिक अस्थिरता का प्रश्न बन कर उभरता है । ऐसे परिदृश्य में जनता की ओर से चिन्ता व्यक्त किया जाना किसी भी तरह उचित नही लगता उसे तो उन जनमत के भूखे नेताओं को सोचना आवश्य होगा जो अगले चुनाव का धरातल तैयार करते हैं । सोचना चाहिए कि जनमत की मजबूती और गठबन्धन की स्थिति की जिम्मेदारी वस्तुतः किस पर जाती है ।
यह सोच जनता की है ।
डॉ ० जी ० भक्त
Good thought.