Wed. Nov 27th, 2024

मानव और मानवता 

हम सभी अपने जन्म से अब तक यही सुनते आ रहे है की धरती पर जीव योनियाँ चौरासी लाख है | यह भी सत्य है की उनमे सर्वोपरी मानव ही  लक्षित है | हमें यह भी सोचने में आता है की मानव की सभ्यता और संस्कृति में मानव सुलभ गुण, व्यवहार और कौशल होना ही अनिवार्य है | मै कभी विचरता हूँ | कल्पना करता हूँ | फिर उनपर चिंतन मनन की कड़ी लगती है| इससे मुझे यह ज्ञान झलका की इस विस्तृत भूमंडल की सचराचर जगत में सृष्टि पूर्व इन जैसा रचनाओ की दैनिक जीवनिय आवश्यकतओ कि पुर्ति का विधान कर लिया गया  था जिसे हम प्राकृतिक मानते है | शिशु के जन्म के पूर्व उसकी माँ के छाती में दूध का उत्पन्न कर प्राकृतिक ने कितना बड़ा उपकारकर रखी है | किन्तु मानव की मानवता में यह लिखा गया है की प्रकृति के अन्दर प्राप्त संसाधनों से यह मात्र दो पैरो पर चलने वाला विचित्र जीव अपनी आश्चर्यचकित करने वाली कृतियों से संसार को सजा डाला जो आज की दुनिया है | जब हम अपना मन और चेतना को स्थिरकर विचरते है तो लगता है की – जिस दिन मानव का धरती से आस्तित्व मिट जायेगा, उसके बाद की दुनिया कैसी होगी और और उन धरोहरों का भविष्य क्या होगा? शायद मानव प्राणी इसी चिंता में मृत्यु और् मृत्युदंडक कर्म से भय खाता है | स्वभावत्य मानव कष्टों से भय खाता है | संपत्ति,संतान और अपने अरमान का सिद्धि का ख्याल कर जीना चाहता है | किन्तु महान पुरुष तो मर कर जीवन मुक्त अर्थात पुनर्जन्म न हो यह आकांक्षा रखते है | उनकी दृष्टि में धरती पर दैहिक,दैविक एवं भौतिक के साथ संस्कारिक कुपरिनामो से बचना ही मानव का श्रेय मानते है | लेकिन ज्ञान मार्गी सदा आने वाले दिनों के महत्ता लक्ष्य की प्राप्ति को श्रेय देते है | अब हामारी सोच क्या होगी | भय की भी दावा चाहिये | कष्त से मुक्ति भी और नूतन उत्कर्ष की प्राप्ति भी होनी चाहिये | आज विश्व के समक्ष वह समस्या आ चुकी है जिसकी अबतक सटीक दावा सामने नहि आ रही है | उसी बिच समस्यायो की कड़ी लग रही युद्ध का आव्हान है भौतिकी म्हात्वकन्क्षा, राज्य सत्ता का भोग विश्व विजय के लालसा सबने सुरसा के समान अपना मुह खोल रखा है | उसी बिच चिंतन की गति में एक आशा की तरित ज्योति हृदय को प्रकाशित कर जाती है – तू मारक विनाथ कारक और चिंतादायक है तथापि जो तुझसे बचकर चलता है, तुम्हारे मार्ग से हट कर रहता है उसे तुम प्रभावित नही करती | अबतक तो वही पाया गया है | भारतवासियों में से जो इस नियम का भली प्रकार पालन किया जाता है उसे तुमें कुछ नही बिगाड़ा | तूने प्रवासियों को जरुर ललकारा तू अगर उनका दुश्मन होती तो सरे संक्रमित रोगी काल कवलित होते | भारत सारी दुनिया में एक ऐसा देश दिख जहा मृत्युदर कम है | मै थोडा यह भी ध्यान में लाया हु तुम भारत पर भी कड़ी नजर रखी है, उन लोगो पर जो बेरोजगार,निकम्मे ,आलसी,शोषक और लाचार है, जो आयार किंका है उन्ही को तुम्हारा कोप भाजन होना पड़ा है | तुम्हारी कृपा है भारत पर | ऐसा लिखते हुए मेरे विवेक बोल पड़ा – अगर कोरोना को सचमुच वैसे ही माने जेसे सर्प और बिच्छु | ये विशैले है, लोग जानते है और सावधानी बरतते हुए अपना जीवन जीते है | असावधानो को कोई क्या करे ?
मैंने माना – सच | हमें तो (+)ve और (-)ve पर ध्यान केन्द्रित कर रखे है | जब संक्रमित की जांच में (+)ve वाले कवारेंटाइन में डाले जाते है जहा उनकी देख भाल और दवा उपचार चलता है | जब कारगर दवा है ही नहीं तो जो जीते है वे किस कारण से मरते है वे किस कारण से मानना पड़ेगा भारत की सांस्कृतिक विरासत के महत्व को जो यहाँ के ज्ञान और ज्ञान्नियो को विश्व में सम्मान दिया है | चला था कसकर यह ICMR के विशेषज्ञ और चिकित्सको के बिच, जिसमे लक्षण सहित पर जोरदार बहस चली इम्यून % के कम या अधिक होने पर विषय टिक गया तो जांच की प्रासंगिता क्या रही ? इससे तो जांच महत्वपूर्ण नहीं – माना जा सकता | मशीन की खराबी या अन्य किसी कमी के कारण ऐसा होना संभव था तो वैसे यंत्र के उपयोग की प्राथमिकता क्या रही अगर सारे तर्क खोखले पड़े तो यह विज्ञान कैसी विश्व स्विकता अब तक अर्जित – कर पायी की उनकी गगन चुन्नी चिकित्सागृहों में रोगी की भीड़ और कमाई की धुन मची हुई है शयद उसी विश्वाश  अन्धविश्वाश की बिच यह व्यवसाय है, सेवा नहीं | तबतो रोग बढता ही जा रहा और रोगी दावा का गुलाम बनता जा रहा |
मेरे विचार में विज्ञान गलत नहीं है, वर्तमान शिक्षा का दोष है जो देश के नागरिको में युग बोध नहीं ला रही, न सामाजिक सरोकार पर ध्यान जा रहा, न अपने ज्ञान को व्यावहारिक स्वरुप में अपनाया जा रहा, न नैतिकता – को मूल्य समझा जा रहा | एक ही जवाब है “प्रदुषण फैल रहा है, वायरस प्रभावित कर रहा है | ऐसी परिस्थिति में तो वायरस को एंटीवायरस और प्रदुषण को विसंक्रमण चाहिये | लेकिन जहा नाशक अब पोषक के रूप में प्रयोग में  लाये जाये रहे वह के लिए न सोचना पड़ेगा |
“अब सकारात्मक को ही – स्वीकारना होगा, नहीं तो न मानव रहेगा न मानवीयता होंगी |”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *