कोरोना को अमरता का वरदान
कोरोना का रोना रोने वालों को शान्ति का पाठ पढ़ा ही रहे हैं । घरों में हमने सुरक्षित कर रखा है । उस पर ताले बन्द पुलिस का पहरा भी । क्या दिक्कत हुई आपको ? आपको तो मैंने 20 मार्च को पूरी तरह सचेत कर रखा था । एक दिन के लिए कयूं का रिहर्सल । दीप और ताली , फिर बजी थाली । जैसे आयी हो दिपावली । एन्टी सिपेट्री । कुछ भी छिपाया नहीं । विदुर जी ने तो पाण्डवों को जब लाक्षा गृह में जाने वक्त जताया – भतीजा , जानते हो , जब जंगल में आग लगती है तो कौन जीव जिन्दा बच जाता है।
धन्य ह भारत वर्ष की आर्ष मनीषा ( ऋषियों के विचार ) जो विपति में धैर्य , उन्नति में क्षमा , सभा में वचन की चतुराई , युद्ध में पराक्रम यश अर्जित करने की मनोकांक्षा तथा वेदादि के श्रवण में मन लगाना ( मनोरंजन करना ) ये महान पुरुषों के लक्षण माने गये हैं । और इसमें संदेह क्या ? भारत तो आदिकाल से ही जगत गुरु की संज्ञा पा रखा ह । इधर कुछ दिनों से पास विदाउट इंगलिश , ग्रेस या अनुकम्पा का प्रचलन हुआ तो मुन्ना भाई भी तो हमारे मार्गदर्शन मे जी जान का ख्याल न रख कर भी भलाई से पीछे नहीं हट रहे और इस कोरोना के लॉक डाउन कांड में डाक्टर जी भक्त निश्छल भाव से स्वीकार रहे ह कि भारत की सरकार उस जंग को जीतने के लिए पूर्णतः भारतीय संस्कृति को दाँव पर लगा दिया है । मेडिकल की सेना सहित विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं आयुष और रामदेव बाबा के अनुलोम विलोम तथा वैद्यक नुश्खे कमाल कर दिखा रहे । हमारे प्रधानमंत्री जी ने तो इतना तक कहा कि मैंने कोरोना से बहुत कुछ सीखा और पाया है । प्रकृति और संस्कृति के प्रति जुड़ना , धैर्य अपनाना , शान्ति , विश्राम , सुचिन्तन . लेखन , साधना , कला विधान एवं ज्ञान निधान का अवगाहन और इशावाहन कलियुग में कभी सम्भव था ।
अरे भाई । जरा विचार कर तो देखिए , इस वैश्विक निपदा की घड़ी में सारे कष्टों के रहते भी दक्षिण पूर्व एशिया के लोग अपेक्षाकृत पश्चिम वालों से कम परेशान हैं , क्यों ? इसलिए कि उन्होंने अपनी पारंपरिक प्रचलनों एवं ज्ञान गरिमा में डूब कर जब देखा , विचारा तो उन्हें सम्मान पूर्वक सश्रद्ध अपनाया एक बात पर और ध्यान दीजिए । भारतवासी जितना धर्म और आधत्म में विश्वास रखते हैं उतने ही आडम्बरों को भी गले लगाये फिरते हैं । उन्हें भूत से भय लगता है । कोरोना तो भूत को भगा दिया ।
भूत शब्द को अवोध लोग जैसे अर्थ में लेते हैं , उससे अधिक और महत्वपूर्ण अर्थ रखता है । विद्यार्थी अपने पठन काल में काल ( समय ) को तीन रुपों में जानते है जिनमें विगत काल ( बीतें हुए समय ) को भूत काल कहा जाता है । भूत से “ भौतिक ‘ विशेषण बनता है । भौतिक का अर्थ प्राकृतिक स्वरुप में हम जिन्हें देखते , छूत , तालते , संग्रह करत , यहाँ तक कि छूकर गर्म , ठंढ़ा का अनुभव करते हैं वे पदार्थ भी भूत कहे जाते हैं । ये पदार्थ पाँच है , जिसस हमारा शरीर पंच भौतिक काया कहलाता है ।
वेद शास्त्र , आध्यात्म , आयुर्वेद अपनी भाषा शैली में भूत का यह अर्थ लेते हैं । ये पंच भूत धरतो , पवन , जल , अग्नि और आकाश देव रुप है तथा इश्वर को इन्ही पंच भूतो में ( पंचभूतादिवासिन ) व्याप्त माना गया है । कोरोना वाइरस भी उन्ही भूतों में से एक है । इसे किसी प्रकार अस्वीकार नहीं किया जा सकता , क्योंकि यह भी जीवन पर प्रभाव डालता है । परिवर्तन लाता है । स्वयं अपनी संख्या बढ़ाता हैं । सूक्ष्म रुप में इसका अस्तित्व है । जाँच में इसका स्वरुप लक्षित होता है ।
मृतात्मा को कभी स्वप्न में देखना भूत भाव ही है । यह भूत ( पदार्थ ) नहीं है । मिथ्या भाव है । जैसा अचेतन में भासता है वही उसकी संज्ञा है किन्तु चेतन में वह मिट जाता है । कभी – कभी उसकी चिन्ता या भय जरुर ही प्रभावित करता है । यह मनोरोग भी है । प्रेत योनि की अवधारणा बहुतो क दिल में निवास करती है । या यह एक अन्धविश्वास है । दृष्टि भ्रम , जिसे अंग्रेजी में इमैजिनेशन या हैलुसिनेशन ( काल्पनिक दृश्य ) कहते हैं प्रेत , पिशाच , भूत दुष्टयोनि आदि उसके निहितार्थ है । शैतान कहते है ।
कोरोना ने वास्तव में भूत का भय मिटा गिरा दिया । कोरोना से संक्रमित मानव रोगी बड़ी मात्रा में मर चुके । मृत्यु से लोग भय खाते हैं । उसी से बचने के लिए लॉकडाउन लगा । कठोर नियम उसके लिए पालन करने का कड़ा विधान किया गया । लेकिन उसकी परवाह किये बिना नियमों का उल्लंघन बताता है कि हम कितने सबल है कि न डंडा से डर रहे न दंड चुकाने से , न क्वारंटाइन में डाले जाने का । बात और कहना जरुरी है कि कोरोना न जाने वाला है न उसके नियंत्रणार्थ नियम पालन की बात उठान जाने की है । कोरोना का प्रत्यक्ष प्रभाव मिट भी जाय तो उसका दुरगामी प्रभाव युग – युग तक स्वास्थ्य पर पड़ता रहेगा और मानव उसे झेलता रहेगा । उसकी दवा का अविष्कार भी कालान्तर में होकर रहेगा । बचाव के लिए टीके उपलब्ध हो जायेंगे किन्तु उसके द्वारा जो विकार शरीर में जाकर अपना निवास बना लेगा वह चिरकाल तक विविध प्रकार के रोग कष्टसाध्य या सर्जिकल रोग जन्म लेते रहेंगे जिनकी दवा और निदान विधान होमियोपैथी में है । विकसित भी होगा और वह युग होमियोपैथी का रहेगा ।
आवश्यकता ही आविष्कार की जननी बनती है कठिन चुनौतियाँ मानव को महान कर्म की प्रेरणा देती है । अतः कोरोना को ” आँगन कुटी छवाये ” अतिथि सत्कार करते रहें और द्रोणाचार्य पर तीर चलाकर ही एकलव्य जैसा तिरदाज जंग विजेता बनकर कृतार्थ होने का लक्ष्य पूरा कर , यह संदेश हमे देता है – कोरोना वायरस डिजीज कोविड -19 अथातो कोरोना जिज्ञासा ।