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सृष्टि सदा काल के वश में है

 कष्ट पाकर तो सभी दुखी होते हैं | कोरोना तो संपूर्ण जगत को अपना ग्रास बनाने का प्रयास कर रखा | करीब सभी देशों की सरकारें अपनी चिकित्सा व्यवस्था से सफल निदान में निराशा पाई । कुछ देश अपनी पारंपरिक व्यवस्था का सहारा लेकर अच्छे परिणाम पाए | दक्षिण एशियाई देशों के संबंध में सुना जा रहा है और भारत में भी आयुर्वेद के नुस्खों का प्रयोग करके संतोष पाया तो खासकर विश्व में आइसोलेशन , डिस्टॅनसिंग , तालाबंदी , एवम् संपर्क पर प्रतिबंध का अच्छा खासा लाभ पाया | तथापि भारत में जो खबरें प्रकाशित हो रही हैं , उनमें संतोषप्रद स्थिति तो बताई जाती है किंतु कुछ बातें विरोधाभाषी भी सुनी जा रही हैं और देश उन खबरों से चिंतित होकर उसकी जाँच एवम् सही मूल्यांकन में जुट गया है | भारत ही में कुछ राज्यों की स्थिति सुधार में लक्षित हुई तो कुछ में बिगड़ती दिख रही | उनके कारण ढूँढे जा रहे हैं |
 चिकित्सा का प्रभाव , प्रतिरोधक क्षमता वाली दवा पर कोई समाधान नहीं , आनुषंगिक चिकित्सा पर मात्र भरोसा , जाँच की विश्वसनीयता पर शंका उठना , रोगियों में प्रतिशत सुधार एवम् मृत्यु का प्रतिशत घटने के बाद पुन : आक्रमण की खबरों से चिंता बढ़ना , तालाबंदी से काम – काज ठप्प , उत्पादन में शून्य , राहत पर सरकारी खर्च का बोझ , खेती – बाड़ी पर प्रकृति का प्रकोप धोखा दिया , अगली खेती पर समस्या खड़ी है , सब्जियों आदि कच्चे उत्पाद की खपत यातायात बंद होने से बाधित हुई जिसकी चिंता बढ़ती जा रही । राजकीय , शैक्षिक , यातायात आदि क्षेत्रों में बंदियों का सिलसिला भी देश को कमजोर बना रहा | इनकी भरपाई की चिंता सरकारों तथा जनता पर तो भारी पड़नी ही है । साथ ही इसका भविष्य अबतक चिंतनीय ही लग रहा है ।
 धीरज तो है | आशा भी खोई नहीं है | सरकार निबटने के लिए प्रतिबधह है । कुछ अनियमितता , असंयम तथा कदाचार की घटनाएँ गलत संदेश देकर एकता पर संकट लाती हैं | सबके पीछे चिंता हमें कुछ मौलिक दिशा की ओर ध्यान को खींचती है । अनैतिकता , महत्वाकांक्षा , ब्रष्टाचार , प्रदूषण , उपभोक्तावाद , शिक्षा में गिरावट , राजनेताओं की गलत बयानबाज़ी , भारी जनसंख्या , बेरोज़गारी और सामाजिक सरोकारों के प्रति मानवीय संबंधों में दुराव आते गये | मानवाधिकार आयोग कुछ सकारात्मक नहीं कर सका |
70 वर्षों का हमारा स्वतन्त्रयोत्तर भारत केवल राष्ट्रीय गान के स्वर पर जीता रह गया । न यहाँ के लोग जो गरीब कहलाने वाले निम्नतम जोत से कम हस्ती वाले रहे , बेरोज़गार या मजदूर वर्ग के वे लोग जिन्हें सालों भर मजदूरी नहीं मिल पाती , उनका भी शोषण होता रहा । अधिकारों का शोषण , कमाई का शोषण , अवसर का शोषण , हितों का शोषण , क्या – क्या कहा जाए किंतु विडंबना है की यह शोषण का अर्थातरण कहाँ गया और उसकी उपयोगिता क्या रही , समझ में नहीं आता या आता है तो कहा किसे जाए ?
 जनतंत्र अपनी परिभाषा भुला चुका | जनमत टुकड़ों में बँटा तो गठबंधन का स्वांग कबतक चलेगा | दिल के टुकड़ों को प्रेम जोड़ सकता है । दान नहीं ; वह भी संभव हो सकता किंतु अहैतु की हो तब तो ।
 हम महावीर , गाँधी और बुद्ध के नाम की , राम और कृष्ण के गुणगान की गाथा गाते हैं , कभी अपने आप को तौल कर देखते हैं की आप उन मानवों की का . में कहाँ खड़े हैं ? शृंखला खड़ी कर आपने दिखा दिया , सफलता की सीमा कहाँ पहुँची ? उसकी । सच्चाई शिकायतों की झोली में झाँककर देख सकते हैं | कहना न होगा की हमने हैजा , प्लेग , टीबी , महामारी , पोलियो , चेचक किन – किन कष्टों से उबर कर आए , सबको स्थान पकड़ा दिया किंतु यह कोरोना हमें किधर ले जाएगा ? वे सब आए तो उनकी मात्रा वैश्विक नहीं थी । इन्होंने ( कॉविड – 19 ) तो अपनी तीन फीट के पाँव से इस तरह दुनिया को सीमित कर दी की 100 दिनों में 210 देशों को अपने आगोश में छिपा लिया ।
 हे विश्व के मानव ! तुम तो विज्ञान की चोटी पर चढ़कर ऐसे गिर रहे , जैसे तुम्हारी संस्कृति अब तुमसे दूर चली जा रही । आप कहेंगे – की लेखक की यह कठोर प्रतिक्रिया है , क्षमा करेंगे | मैं प्रतिक्रिया नहीं कर रहा , आपको इन बिंदुओं पर प्रेमपूर्वक सोचने और चिंतन में लाने की सीख देना चाहता हूँ । ज़रा बताएँ तो , क्या विचारने योग्य विषय है या चुनौतीपूर्ण समस्या ? परिदृश्य बतलता है की हम बाहर और भीतर दोनों ही तरह से बाँट चुके हैं | कामना करनी है की चीन और अमरीका – . . . . . . – . . . |
 नया पाकिस्तान को इस समय भारत की भूमि पर कोलाहल मचाना विचारणीय है ?

डा . जी . भक्त

Tribute to Rajiv martyred in Barmula
बारमूला में शहीद हुए राजीव को श्रद्धांजलि

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