कोरोना , सरकारी विभाग का सेरो – सर्वे – परिणाम और अंदाज
दैनिक हिन्दी समाचार पत्र ” हिन्दुस्तान 22 जुलाई 2021 में छपे न्यूज के अनुसार जो सर्वेक्षा रिपोर्ट टीकाकरण के बाद स्वास्थ्य कर्मियों में पाया गया उसके अनुसार 67.6 प्रतिशत लोग संक्रमित पाये गये । बताया गया है कि आधिकारिक तौर पर 3.12 करोड़ ही लोग संक्रमित हुए । शेष वैसे रोगी जिनको जानकारी न मिली कुल मिला कर 13.13 करोड़ होना चाहिए , किन्तु सर्वे के मुताबिक 75 से 80 करोड़ तक कोरोना का संक्रमण मान ने से 80 करोड़ लोग सुरक्षित माने जा सकते है । शेष 40 से 50 करोड़ लोग की ही चिन्ता जतायी जा सकती है ।
उपरोक्त जानकारी को आकलन मात्र माना जा सकता है । सत्य तो 3.12 करोड़ ही होगा । आगे सोचना यह है कि टीका कितना सफल है , और अन्य बदलते संक्रमण जो दुनियाँ में फैल रहे और भारत में भी पहुँच चुके , एक नये और सबसे खतरनाक वायरस भी दस्तक दे चुके तो इन समाचारों का भविष्य क्या आंका जा सकता है ।
हम आज तक इस महामारी और इसके परवर्ती संक्रमण पर प्रामाणित जानकारी सुधार और समाधान पर ठोस निर्णय क्या सोच पाये इस बिन्दु पर देश को , स्वास्थ्य विभाग को और चिकित्सा विशेषज्ञो को सार्थक भूमिका की खोज करनी चाहिए । सर्वत्र अनुमान और अपर्याप्त प्रयास के ” ट्रायल एण्ड एरर ” से तो टेर्रर ही पैदा होगा । फिर जो श्रम , समय , धन और जन की क्षति का देश के भविष्य पर क्या बीतेगा इसके लिए तो हमें अपने मानस को स्थिर कर प्राकृतिक रुप से अनुभूत ज्ञान सह वैज्ञानिक आधार ( कार्य कारण संबंध और साहचर्य का सिद्धान्त ) पर बढ़ कर विचारा एवं विमर्श किया जाय कि हम भारतीय विश्व के साथ किस रुप में कोरोना के विरुद्ध कदम मिलाते चल रहे है । सच्चाई के माग पर हम अपनी ज्ञान सम्पदा और प्राकृतिक विधान का सामन्जस्य बिठाकर एक कारगर मार्ग का निरुपन करें जिसमें यह जंग व्यवसाय न बनकर समाधान और कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर पाये ।
सोचा जाय कि ज्वरनाशक पारासिटा मौल कितना सुरक्षित और उचित है मनमानी ढंग से टीका धारियों की जीवनी शक्ति की प्रतिक्रिया ( एन्टिजेन निर्माण के मार्ग में ) को दवाने में प्रयोग करना ? खुशी – खुशी लोग इसका दुरुपयोग कर रहे और निर्माणकर्ता उत्पाद बढ़ाकर घड़ल्ले से रकम कमा रहे ।
वैक्सिन शरीर में जाकर धमनियों में फैल जाती है । यह सिस्टम की ओर रक्त के साथ पहुँचकर धमनी में आयतन बढ़ जाने से शरीर का तापमान बढ़ना स्वाभाविक है । उस अवस्था में ज्वर घटाने के लिए दवा का प्रयोग उचित नही है । प्रकृति के विरुद्ध कार्य है । प्राथमिक अवस्था में यह दवा प्राकृतिक क्रिया को रोकती है दूरस्थ प्रभाव भी डालती है । अतः व्यवस्थापक को इसके लिए पहले से सुझाव देने की जरुरत है ।
यह भी सुझाव देना अनिवार्य लगता है कि अपर्याप्त चिकित्सा की स्थिति में सरकार को अब सोचना चाहिए कि प्रयेजनीय दवाए निरपद हो और उनके उत्पादन तथा हानिकर प्रभाव डालने वाली दवाओं के उत्पादन पर रोक लगे ताकि रोगियों को भविष्य में बुरे प्रभाव का शिकार होकर असाध्यता झेलनी न पड़ , साथ ही उनकी संतानों की जीवनी शक्ति ( इम्नयुनिटी ) कमजोर न पड़े ।
जहाँ वृक्ष की जड़ ही रोग ग्रस्त हो वहाँ शीर्ष पर पानी पटाने से क्या लाभ ?