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कैन्सर और होमियोपैथी
Cancer and Homeopathy

 – : डा ० जी ० भक्त : –

कैन्सर और होमियोपैथी  ( Cancer and Homeopathy Dr. G. Bhakta )

 निदेशक : होमियोपैथिक चिकित्सा शोध एवं कल्याण संस्थान ( रजि ० ) बेलसर हाट । ( वैशाली ) 844111

 यह निर्धान्त रूप से कहा जा सकता है कि कैन्सर एक मारात्मक रोग है , परन्तु यह स्वीकार कर | लेना सर्वथा उचित नहीं कि इसकी दवा द्वारा चिकित्सा हो – ही नहीं सकती । सर्व प्रथम रोग के सम्बन्ध में जानकारी होने पर यह निर्णय कर लेना कि सर्जरी ही एक मात्र उपाय है उचित नहीं । दवा प्रयोग द्वारा रोग का इलाज कराना चाहिए । चिकित्सा जगत को भी यह सोचना चाहिए कि शल्य चिकित्सा , रेडियेशन तथा केमोथेरापी जैसी | महँगी व्यवस्था के बाबजूद भी इस कठिन रोग और रोगी के सम्बंध में कोई विश्वसनीय उपलब्धि न हो | पायी तो औषधि प्रयोग के क्षेत्र में शोध और प्रयोग पर जोर डाला जाय । खर्च और सोच – दानों की दिशा | बदली जाय । आरोग्य और आराम का नया आयाम ढूढ़ा जाय , जो जीवन सीमा को बढ़ा सके , कष्ट घटा | सके , समुदाय में विश्वास जागृत हो , दुर्वह व्यय और विपन्नता में प्रत्यक्ष कमी – हो । ऐसी आशा की नयी किरण होमियोपैथी में ही फूटने वाली है । चिकित्सा एवं नागरिक दोनों ही का | कर्तव्य है कि इस दिशा में आगे आयें तथा बढ़ती समस्या का समाधान सोचें एवं मानव जाति से इसके | संकमण को सदा के लिए समाप्त करने में जुट जायें । दृढ़ विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि यह | सम्भावना होमियोपैथी में समाहित है ।
 होमियोपैथिक साहित्य के सम्यक अध्ययन , इसके नियम एवं सिद्धांतों पर गहन चिन्तन , महान चिकित्सकों द्वारा किये गये निदान तथा आरोग्य के विश्लेषणात्मक शोध से सम्भावित उपलब्धियों के आकलन तथा मुख्य रूप से पुरातन एवं कष्ट साध्य रोगियो के इतिहास , कारण , रोग विस्तार तथा उनके निदान के महत्वपूर्ण विन्दुओं , मानव पर होमियोपैथिक औषधियों के परीक्षण से प्राप्त जानकारी का सार जो आकस्मिक रूप से आये कैन्सर के रोगियों ( परीक्षित एवं अनुमानित ) की चिकित्सा करने एवं लाभ पहुँचाने में जो आंकड़े दिये वे प्रेरक और उत्साह बर्द्धक रहे ।
चिकित्सा के मौलिक तरीकों , प्रकियाओं , निरीक्षणों , फौलोअप ( अनुशील ) और आरोग्य के विश्लेषण के मार्ग में ऐसा भी पाया गया , जहाँ रोगी के लक्षण विशेष एवं उनके विकास की गति और दिशा जिन जटिलताओं के निर्देशित तत्व अधिकांशतः गिल्टियों के रूप में प्रदर्शित हो रहे थे । अधिकांशतः गिल्टियाँ अथवा ट्यूमर कैन्सर के रूप में परिवर्तित होने की ज्यादा सम्भवना रखती है । अन्य किया , विकृति , सम्वेदनाएँ तथा रोग चिन्हों का परिवर्तन और उत्पीड़न भी कैन्सर के सूचक होते हैं ।
होमियोपैथिक चिकित्सा के अन्तर्गत समलक्षण सम्पन्न औषधि के चयन तथा समग्र ( होलिस्टिक ) चिकित्सा का जो विधान है उसकी पूर्णतः एवं सफलता को प्रमाणित करना कदाचित कैन्सर को छोड़ कर नहीं घोषित की जा सकती । मैं होमियोपैथिक चिकित्सकों के साथ – साथ नागरिकों का आह्वान करता हूँ कि इस दुरारोग्य कष्ट के निवारणार्थ होमियोपैथी को अवश्य अपनाएँ । हम कहते है आनेवाला समय स्वास्थ्य और आरोग्य की दृष्टि से हमारा है ( फौर हेल्थ एण्ड क्योर पोस्टेरिटीइजआवर्सः ) समस्याएँ बढ़ रही है । प्रश्न जटिल होता जा रहा है । चुनौतियाँ आसमान चढ़ रही है । हम चिकित्सक करोड़ों की संख्या में है । कुछ तो कर दिखायें । मैं कहना चाहता हूँ । मेरे पास प्रमाण है । बहुतेरे होमियोपैथिक चिकित्सक कैसर की चिकित्सा करने में सफल हुए हैं । उत्कृश्ट तरीके से सफल हुए है । लोगों को सही सोचना होगा । झट – पट सर्जरी नहीं अपनाकर होमियोपैथी में जाना होगा और होमियोपैथ भी रोगी को ठगे नहीं । सिद्धान्ततः नियमतः विवेकपूर्ण तरीके से , सावधानी पूर्वक और आत्मविश्वास के साथ , परिश्रम करके रोगी का लक्षण संग्रह करें , कारण ढूँढे । मुख्य रुप से ध्यान देने योग्य निर्णायक लक्षणों पर दवा का चयन करें । चयनित दवा को विविध मेटेरिया मेडिका , रोग विशेष की मूल पुस्तक , इन्साइक्लो – पीडिया अथवा – गाइडिंगसिम्पटम आदि पुस्तकों से पुष्टि कर लें । तदन्तर दवा की सही शक्ति और खुराक तथा अन्तराल का निर्णय कर पूर्ण भरोसे से इलाज करें । अवश्य सफल होंगे ।
 मैंने अपने पूर्व प्रकाशित लेख में स्तन के कैन्सर के संबंध में कुछ जानकारियाँ दी थी । मेरे पास यूट्रस ( गर्भाशय ) तथा ओवरी के कैन्सर वाली महिलाएँ भी अधिकतर आती है । उनमें ऐसी भी महिलाएँ होती है जिनकी चिकित्सा एलोपैथी में करायी जा चुकी होती है । ऑपरेशन से भी गुजर चुकी होती है । कुछ गरीब परिवार की महिलाएँ जाँच द्वारा कैन्सर घोषित किये जाने पर हमारे पास सस्ती चिकित्सा के लिए आती है । एक अनुसूचित ( मुशहर ) जाति की महिला को ओवरी का कैन्सर हो गया था । एलोपैथिक चिकित्सक के यहाँ से जाँच के उपरान्त कैसर घोषित कर ऑपरेशन की सलाह की गयी थी । खर्च के लिए धन के अभाव में उसने मेरी सलाह ली । जाँच रिपोर्ट देखा – बायी ओवरी का कार्सिनोमा , आकार एक बड़े बेल के आकार का । नाम संजू , गाँव – छाजन ( मुज ० ) नवविवाहित , विवाहोपरान्त मासिक साव बन्द होकर दर्द करता था । दवा एलोपैथिक खायी थी । सुधार नहीं हुआ । पेडू में सूजन बढ़ने लगा । दर्द भी तेज रहने लगा । मेरे पास आने के समय ये लक्षण वर्तमान थे । खून की कभी थी । भूख – कम , पेशाब कम । लक्षमानुसार , लैकेसिस 200 तीन खुराक – सप्ताह में 1 बार खाने के लिए दिया गया । दर्द में कुछ कमी आयी । बाद में कोलोसिन्थ 200 सुबह – शाम । दर्द में कमी आयी । आकार यथावत । केन्ट की रेपर्टरी में लक्षणानुसार ब्रोमियम निर्देशित था । यद्यपि ब्रोमियम दाहिनी ओर के लिए है फिर भी Im शक्ति की एक खुराक दी गयी । कोलोसिन्थ चल ही रहा था । रोगी का पति आकर बोला कि पेशाब चार दिनों से बन्द है । पेट फूला हुआ है । मैंने एपिस 200 दो घंटो के अन्तर से चलाने हेतु दिया । दो दिनों में पेशाब नहीं आ सका । जाकर घर पर पेशाब उतार दिया । पेट का आधा भाग पच गया । तब से पेशाब नियमित होने लगा । दर्द भी घटता गया । भूख लगने लगी । ब्रोमियम 1m एक खुराक सप्ताह में एक बार । पेट की गड़बड़ी लगातार रहने लगी । पतले दस्त प्यास की कमी मासिक बिल्कुल बन्द पल्सेटिला 200 रोज तीन बार पेट में सुधार आया । पल्सेटिला Im दो खुराक सप्ताह में एक बार मासिक हुआ । स्वास्थ्य में सुधार आया । आवरी का सूजन कुछ शेष था । भोजन ठीक से करने लगी । कुसंयम से कभी पुनः पेट की गड़बड़ी आ जाती थी । अब वह घुम – फिर करने लगी । पूर्ण आठ महीने दवा खायी । स्वस्थ है । काम करती है । उसे अभी भी दवा चलानी चाहिए किन्तु अर्थाभाव में चिकित्सा छोड़ दी एक वर्ष पूरा हो रहा है । सामान्य है ।
 अपने यहाँ अन्य रोगियों में चार ऐसी महिलायें थी जिन्हें गर्भावस्था में फिब्रॉयड ट्यूमर था । रक्त स्ताव प्रचूर , दर्द , तथा थक्के आते थे । कमजोरी थी । सौबाइना , ट्रिलियम , कौलोफाइलम सभी 200 शक्ति , एसिड नाइट्रिक , थूजा , कल्केरिया कार्य Im , थ्लैस्पी वर्सा पैस्टोरिस , सिनामोनम , मूल अर्क , वेकिस पेरेनिस , कार्वोएनिमेलिस , औरमम्युर नैट्रोनेटम 200 ने लक्षणानुसार लाभ किया । आरोग्य के साथ – साथ चिकित्सा में निम्न महत्वपूर्ण बातें आयी –
 1. चिकित्सा प्रक्रिया सरल ,
 2. चिकित्सा काल 6 माह से 1/2 वर्ष
 3. खर्च प्रतिमाह 30 रु ० से 50 रु ० तक ।
 4. पूर्ण स्वस्थता ।
 शेष रोगियों में से तीन ऐसी थी जिन्हें चिकित्सक ने कुछ ही माह जीने की बात कही थी । जो कुछ वर्षों तक कष्ट मुक्त होकर जी पायीं । उनमें से एक की मृत्यु अन्त में डिसेन्ट्री के कारण हुयी । उनकी आयु 80 वर्ष की थी ।

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