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 कोराना काल में जीवन की डगमगाती नैया

 डा ० जी ० भक्त

 कोरोना काल एक नया इतिहास रच कर विश्व को परेशान कर रखा और एक न एक कुछ नया तो एक से एक बढ़कर घातक स्वरूप दिखला रहा है । एक गाँव राज्य और देश को नहीं सम्पूर्ण विश्व को दुर्दिन गिनना पड़ रहा है , सिर्फ यही नहीं , अन्य गम्भीर सामाजिक राजनैतिक पाकृतिक सह ब्रह्माण्डीय पकोप भी सृष्टि में तवाही ला रहा है ।

 कई प्रकार के भाव , कई प्रकार की आशाएँ , कई प्रकार की घोषणाएँ , कितने विधान , कई वैक्सिन , कितने शोघकाय प्रयास कौन सफल , कौन विफल , न पता ह कौन – वैज्ञानिक वैशिष्ट्य लेकर नेतृत्व चल रहा है या मानवता के साथ धोखा हैं ? यह राजनीति का विज्ञान है या विज्ञान की राजनीति हैं ? विश्व की महाशक्ति कहलाने वाले तथा महाशक्ति बनने की ताक में फूले न समाने वाले भी तो एक ही नाव पर तैर रहे हैं । यह वायरस से लड़ाई है या भावना से महामारी की वेदना से अथवा किसी रहस्यमयी संवदेना से यह वैश्विक अर्थव्यवस्था की नोक – झोक पर उठा तोप है या कोरोना कहर की लहर का प्रकोप है या सचमुच राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा की ओट में विभीषिका के मनोविज्ञान की पहचान का षडयंत्र ?

 ………चाहे जो कुछ हो , किन्तु इस जंग में मानवता की क्षति के साथ आर्थिक उन्नति के भी पंख उगे । रोग के निवारणार्थ औषधि निर्माण कार्य न हुआ , किन्तु असली से नकली तक वैक्सिन तो बिके जिसकी झलक अखवारों में मिली समस्याएँ गहराती जा रही । समाधान उतना आसान नहीं , जितनी घोषणा में प्रखरता के स्वर गूजते हैं किन्तु जब उसकी उपलब्धि में क्षति की प्रगति लक्षित होती है तो सत्य का सुराग सामने झलकता हैं

 अप्रोल से लगातार बरस और बाढ़ की कारामात ने जैसा किसानों विपदा बरपायी और उसके घनेरों दुष्परिणाम सामने से गुजरने लगे । ऐसे तो कोरोना विजय की बाजी 2020 की अप्रोल के साथ अपना देश सुशोभित होने का ही सपना देखा था किन्तु संप्रमणों का ओलेपियाड सामने दस्तक दे चुका । जब आवश्चकता ही आविष्कार की जननी बनी तो हमें अपनी बनरी नचाने से पीछे क्यों पड़नी है , देश भी कम से कम वेरोजगारी न झेले और न अर्थव्यवस्था ही बिगड़ने पाये । बेरोजगारी की समस्या की एवं जनसंख्या नियंत्रण का टारजेट तो बाढ़ की विभिषिका एवं कोरोना के उत्क्रमित संक्रमणों की लहरें अपना कहर फैलाकर राहत दिलायी थी , कुछ तालिवान तो कुछ अफगान भी साथ दे ही सकता है जब सबका साथ मिल ही रहा तो फिर कहना क्या ?

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