Thu. Apr 25th, 2024

ज्ञान की गरिमा

Dr. G. Bhakta article

ज्ञान गाथा नहीं , यह एक मानसिक निधि हैं । ऐसी निधि जिसकी पल – पल आवश्यकता पड़ती है । किन्तु , ऐसे ज्ञानी हैं कहाँ , और कितने ज्ञान को संचित , सुरक्षित , सत्यवस्थित गतिशील और उपयोगी बना पाते हैं ? व्यावहार में देखा जाय तो जितने शिक्षक और शिक्षार्थी अब तक हुए . राष्ट्रपति पुरस्कार तक प्राप्त किये , गोरवन्वित हुए उनमें से सहस्त्रांश नहीं तो लक्षांश भी अपने ज्ञान को कर्म रुप में स्वरुपस्थ पाये या चरित्रमें उतार पायें हो । ऐसा हुआ होता तो आज कैसे कहा या सुना जाता कि शिक्ष की गुणवत्ता गिरी है । सामाजिक सरोकार समाप्त होते गये । नैतिकता और अनुशासन की बात कहाँ तक कही जाय आज उनकी भाषा में शुद्ध – शुद्ध उच्चारण और लेखन भी नही देखे जा रहे । दुकानों प्रतिष्ठानों के साइन बोर्ड को पढ़कर देखा जाय कि नमें कितनी अशुद्धियाँ मिलती हैं ।
इस युग में हमें विचारना चाहिए कि जिस ज्ञान सम्पदा को धरती पर उतार कर जनमानस में भरने का प्रयास चिर काल तक क्या आज तक उनके सोचे , रचें और संचित रखें वे ऋषि – मनीषि आज विश्व के गुरु रुप में घोषित करवा कर मार्गदर्शक बने हैं । … किन्तु खेद है कि उनके नाम ग्रंथों सहित याद रखने वाले अपने देश में उँगली पर गिनने योग्य संख्या में ही मिल पायें , पढ़ने की बात तो सपना ही हो गया । सबका सार रुप इतना ही बचा कि हम कभी कभी याद कर लेते हैं ।

” सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ता हमारा । “

आज विश्व कोरोना के आशीवार्द से बर्वाद होने पर तुला हुआ हैं । इस भाषा का प्रयोग करते हुए मैं भय खा रहा हूँ । विश्व को चुनौती देने वाला मै एक जुगनू या समक कहला सकता हूँ । दुनियाँ सुनती आ रही कि प्रलय होता है । सारा संसार शून्य में विलीन हो जाता है । इस कल्च में भी प्राचीन इतिहास कई महाभारत झेलने का साक्षी है । वर्तमान विकास अधिश राष्ट्रों ने दो – दो विश्व युद्ध देखे । भारत ने जितनी लम्बी गुलामी झेली सम्पत्ति और संस्कृति को अवनति का उदाहरण बना भारत भी आज दुनियाँ से कम का दावा करना स्वीकार नहीं करेगा और होना भी गलत नही , फिर भी आज ग्रह उपग्रहों पर निशाना साधने वाला राष्ट्र कैसे अपने ज्ञान को दिवालियापन का प्रमाण बन रहा ? कोरोना की चिकित्सा में असफल विश्व के पास ऐसा कुछ भी विवेक दिशा निर्देश न कर सका ? लेकिन भारत का आयुर्वेद तो चुप नहीं है ।
मेरे विचार में ज्ञान का नवीकरण होते रहना चाहिए । हर परिवेश में नूतन सोच , नवाचारी प्रयास , नवीन शोधात्मक दृढभूमि की तैयारी चलती रहनी चाहिए । अब तो ज्ञान सामान्य ज्ञान न रहा , वह उनसे विविध तकनिकी आयाम देकर विज्ञान का स्वरुप खड़ा किया । ईश्वर ने अगर ब्रह्मण्ड का सृजन किया तो हम मानव उसे संसाधन मानकर उससे भिन्न एक दुनियाँ खड़ी कर दी । हमें इसका गौरव भी प्राप्त हैं किन्तु आज हम पिछड़ क्यों रहे अतीत के गर्भ में छिपा विज्ञान का मूल आधार में हम ढूढ़े तो हमे पूरब – पश्चिम को जोड़ने का विधान अवश्य झलकेगा । ज्ञान की गरिमा उसकी प्रयोजनीमता में ग्त्यात्मकता लाने से है । कभी विस्मृत ज्ञान हमारे मार्ग के व्यवधान बनते है ।

” पुस्तकस्थं यथा विद्या परहस्त गतं धनं । “

आज हम कोरोना के लिए कारगर रुप में न अब तक वैक्सिन दे सके न रोग निवारक दवा हीं । आपके टौक्सिकोलॉजी अनेकोलॉजी , सेशेलॉजी वॉयरोलॉजी में निर्दिष्ट ज्ञान उसकी शोध प्रक्रिया में सहयोगी बनने योग्य कुछ भी नही दिख रहा । हम मोदी जी के स्मार्ट युग में है । हमारा युगधर्म कहाँ है । युगधर्म क्या है – चारित्रिक मानसिक और व्यावहारिक अनुशासन के साथ नेतृत्व लेना । स्मार्ट तो हमें बन चुके किन्तु उसको हिन्दी अनुवाद ” शालीन ” न बनवायें ।

विद्या , वाचा , वपुषा , वस्त्रेण विभवेन च ।
वकास पंच संयुक्ता जना प्राप्नुवन्ति गौरवा ।।

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