Sun. Oct 6th, 2024

 पाचन सम्बन्धी विशिष्ट रोग

 ( Special Diseases of GIT ) 

-डा० जी० भक्त

( i ) Diarrhoea ( दस्त ) 

( ii ) Dysemtry ( आँव , शूलँ ) एवं Cholera ( हैजा ) की चिकित्सा डायरिया ( दस्त या आविसार )

 सामान्यतया पतले मल का बार – बार आना मुख्य लक्षण के रूप में देखा जाता है । कारण और लक्षण के साथ रोग का प्रभाव दवा के चुनाव में आवश्यक रूप से ध्यान दिया जाता है ।

 यहाँ दवाओं के नामानुसार उनके लक्षण पर आधारित दवाओं को समझाया जा रहा है । उसके साफ – साफ लक्षण को समझकर ही दवा का प्रयोग करना चाहिए । सूक्ष्म अन्तरों स दवा बदल जा सकती है । कभी कारण के अनुसार तो कभी उसके प्रभाव पर दवा बदल जा सकती है । कुछ कारण बाहरी होंगे तो कुछ शरीर के अन्दर के ।

 मात्र इन विशेषताओं को ठीक से ध्यान में लाना हो सही दवा का चुनाव है । रोग के प्रभाव या अवस्था का ख्याल भी दवा के चुनाव में काम करता हैं ।

 अब हम जाने कि डायरिया और डिसेन्ट्री नये और पुराने रोग के रूप में मिलते है । इनके दोनों ही स्वरुप में लक्षण समान मिलते है किन्तु रोग पुराना अर्थात अधिक दिनों का इतिहास बतलाता है । ठीक से इलाज नहीं होने पर रोग पुराना हो जा सकता है । बहुत दिनों तक कष्ट भोगने के कारण रोगी की हालत ( स्वास्थ्य ) बिगड़ सकता है । लीवर की क्रिया खराब हो जा सकती है । रक्त हीनता , कमजोरी , शरीर में सूजन , पेट में पानी जमा होना आदि गम्भीर रोग सता सकते हैं । माना कि किसी को खान – पान में किसी विशेष प्रकार का अन्तर होता है तो उन्हें पतले दस्त , बार – बार तेजी से दर्द के साथ आता है । दवा की जाती है लाभ मिलता है । रोगी उसका कारण नहीं बता पाता । जब पूछ – ताछ के बाद कारण का पता चलता है कि उन्हें अधिक तैलीय पदार्थ से युक्त भोजन से निश्चित रुप से रोग सताता है । उन्हें आप पल्सेटिला दवा से अच्छा करते है किन्तु वे अधिक दिनों तक तेल , धी , डाल्डा , रिफाइन परहेज नहीं करते तो पुनः रोग परेशान करता है जब – जब ऐसा होता है , रोग का आना निश्चित पाया जाता है । ऐसी आदत सी बन जाती है । संयम और दवा अगर कुछ दिन तक चलती रह तो जड़ से उसका इलाज सम्भव हैं।

 ऐसा माना जाय कि रोगी आहार संयम का आवश्यक विधान अपनाता हुआ जीवन जीये रोग होने पर सकारण और सलक्षण सही इलाज हो , पेट के रोग पर पूरी स्वस्थता के लिए ततपर रहे कब्ज न रहने पाये । पाचन क्रिया दुरुस्त हो , गैस न बन तो शरीर को पोषण , शक्ति , उर्जा , आजीवन बनी रहेगी । जीवनो शक्ति मजबूत होगी । आजीवन स्वस्थ रहकर जीवन के हर लक्ष्य की प्राप्ति कर सकेगा ।

 सुपाच्य संतुलित आहार , संयम , नियम , व्यायाम , सूर्य की रौशनी शुद्ध हवा , अच्छी नींद , नियम से भोजन और जीवन यापन ही स्वस्थ जीवन का मूल मंत्र है ।

 स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन परिवार में लागू हो ( To maintan the rule of Hygiene ) यह बचपन से ही ध्यान देने की आवश्यकता समझी जाती है । शिक्षा के साथ भी स्वस्थ दिनचर्च्या पर ध्यान देने की व्यवस्था बतलायी जाती है ।

 आज के युग में कोई भी सांस्कृति , जीवन , आदर्शमय जीवन के लक्ष्यों पर ध्यान नहीं दे रहा है । प्रदूषण , मेलावट , कमजोर गुणवत्ता वाला खाद्य पदार्थ बाजारु उत्पाद , अनियमित आहार और दिनचर्या आज मानव को कमजोर और रुग्न के साथ दीनता की ओर ले जा रहा है । माना जाय तो अस्वस्थता , दीनता और चरित्रहीनता ही नरक है । ……. अब आप ही सोच सकते है कि जीवन में धर्म काम और मोक्ष की प्राप्ति कैसे सम्भव होगी । यह भी बताइए कि जीवन में स्वस्थता को श्रेय दिया जाय कि ईश्वर की भक्ति मात्र को ? क्या सम्भव ह कि हम अस्वस्थ रहकर ईश्वर भक्ति निभा पायेंगे ।

 अगर हम उपरोक्त विचार पर अमल करें तो स्वस्थता के साथ – साथ दीर्घ जीवन भी जीया जा सकता है ।

 एलोपैथिक चिकित्सा स्वस्थ तो नही बना पायी किन्तु दवा का गुलाम बनाकर चिर काल तक दीनता , परतंत्रता और कष्टमय जीवन जीने का बाध्य करता है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *