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बुरे दिन में कठिन परीक्षा

 कोरोना अगर काल कराल है तो मोदी जी का धैर्य भी अपार है | जैसा की त्रेता युग में धरती पर धरती पर रावण के प्रावन्य और पराक्रम से से पापचार पराकाष्ठा पा चुका था तो मानवता कराहने लगी थी | धर्माचरण पर पाबंदी लग चुकी थी | धर्म का नामोनिशान नहीं | गौ , ब्राहमण , ऋषि , तपस्वी रक्षासों के भक्ष्य बने थे ।
 सृष्टि पर विपदाएँ तो आती हैं । दैहिक रोग हमारे कुसंस्कारों , भोगों , एवम् दुराचारणों के फल होते हैं | वध और बंधन , ( कारावास और हत्याएँ ) हमारे ही प्रघन्य अपराध के प्रतिफल हैं | प्रकृति के प्रति छेड़ – छाड़ भौतिक कष्ट हैं | कुच्छ घटनाएँ दैविक प्रकोप माने गये हैं | अतिवरष्टि अनावृष्टि , महामारी ये दैवी यातनाएँ मानी जाती हैं | इनके निदान संयम और शुचिता से , चिकित्सा से , योग से , पूजा , साधना , व्रतादि , यज्ञ , उपवास , इंद्रीयविग्रह से ही संभव है | ये सभी आत्मिक उपाय हैं जिसे हम अपने संकल्प , सहनशीलता और धैर्य अपनाकर पार कर सकते हैं | औषधि , चिकित्सा और सेवा पराए हाथों में है | मौलिकवाद में लोभ , भोग , स्वार्थ , संग्रह का भाव और ममता बस व्यक्ति विशेष से दुराव , विरोध भाव , दुष्टाचरण और युद्ध का उद्भव होता है | मानव मानव कर घाती बनता है बनता है तो उस परिस्थिति में मनुष्य किसकी शरण में जाए ?
 भारतीय संस्कृति में इस विषय पर भी मार्गदर्शन किया गया है | नीति , धर्म , योग – साधना , दान , उपकार और ईश्वर की शरण ऐसे ही साधन हैं जिन्हें अंतत : अपनाना आवश्यक होता ही है | हम निर्गुन पर उतरते हैं । निर्गुन का सहारा तब मिलता है जब हममें और भक्तिभाव सहज हों | आध्यात्म की सिक्षा हमारे वेदांत में है | हम उसे अपनाएँ , विश्व का कल्याण सोचकर ही कुछ करें मात्र अपने लिए नहीं , ऐसी प्रतिबद्धता से हम विश्व प्रेम जागृत करते हैं तो सर्वशक्तिमान का सहज शक्तिपात हम पर होना स्वाभाविक होता है | आपदा की स्थिति में वहीं सहायक बनते हैं । हम इसे भूले नहीं ; अपना धर्म समझें ।
 संक्रमण संपर्क से होता है | दूरी बनाकर जीना पूर्णत : विचारणीय नहीं है | कष्टों में अपने पर विशेष न ख़याल कर दूसरों के बचाव में अपना कल्याण समझें तो प्रेम भाव प्रकट होगा । यहाँ पर मोदी जी ने कर्ण्य और लॉक डाउन के बाद इस कल्याणकारी प्रस्ताव को जनभावना में जागृति लाने का प्रयास है | हम घरों में बैठकर सिर्फ खाने और खर्च पर चिंताग्रस्त जीवन जी रहे हैं ; वहाँ सदाशयता को जीवनाधार बनाएँ तो बढ़ा भी हटे और व्याधि भी हट जाए |
 एक विषय पर हम यहाँ प्रकारता से मत प्रकट कर रहे हैं । हम तो डिस्टॅनसिंग ( दूरी बनाकर रहना ) अपना धर्म बना रखे है जो हम पर विपदा लाने का ही विधान है किमपि कल्याणप्रद नहीं है | सामयिक लाभ हो सकता है संपूर्णता नहीं ला सकता | इस भाव से भी अध्यात्म मार्ग श्रेयस्कर लक्षित होता है | यहीं समय है जब हम निरगुन सत्ता पर भरोसा कर सकते हैं | विश्व प्रेम का निधन हो प्रकृति का पोषण हो | तो सॅनाटाइज़र , मास्क भयावह स्थिति का क्षोभ सहन करना आवश्यक नहीं होगा |
  ” जय जयती सच्चिदानंदा ” का गुणगान भी साथ हो | आज हम समझ पाए हैं की कोरोना वाइरस नहीं दुकाल चिंतन का प्रतिफल है | अपने जीवन के क्षणों को ” सकल राममय जामी ” का भाव लेकर चलें तो यह पोलीस का डंडा अवश्य ही कोरोना पर बरसेगा | संसार निर्भय होगा | अंतत : भारत ही विजयी होगा |

 शांति ! शांति ! ! शांति ! ! !

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