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 मानव पर मंडराते विनाश के बादल

डा० जी० भक्त

 विचारका , राजनयिकों एवं वैज्ञानिकों से भरी सारी दुनियाँ के समक्ष भौतिक विकास की उत्कट अभिलाषा अबतक के भौतिक उत्थान में सन्तुष्टि का अभाव ही देख पायी । इसके मूल में और स्वार्थ छिपा था और उपलब्धि में आर्थिक विषमता का आभास भी , किन्तु यह विषय मानवता की अपेक्षा रखता है । महत्त्वाकांक्षा की भूख , आराम , सुख और सुविधाओं की ललक में लोभ , शोषण हकमारी और बेइमानी मानवीय आदर्श पर कलक का टीका मात्र नहीं बना बल्कि मानवाचार ही अत्याचार का स्वरुप ले रखा । आज के दिन अगर कहा जाय कि मानव समाज से मानवादर्श मिटता जा रहा है , उसे सही दिशा देकर उत्कर्ष प्रदान किया जाय , तो यही आवाज आती है कि सभी लोग करीब उसो माग के राही है तो हमारे और आपके विचारने से कितना कुछ हो पायेगा ?

 इस प्रकार का दिमागी दूषण उपरोक्त मनोवगा से उपजा उत्पाद है जिसे हम मिटा पाना असम्भव मानते हैं । अगर हमारा हृदय इसे समाज से दूर हटाना चाहता हैं और प्रयास की ओर बढ़ना चाहें , तब हर मानव हर जाति हर वर्ग , हर संगठन , हर व्यवसाय , हर गतिविधि और हर कार्य विधान में यही मंत्र बाधक बन कर पॉव पीछे खीच रहा है । या यों कहें कि भौतिकादी उपभोक्तावाद ने मानव की मानसिक दिशाकों मोड़ डाला हैं ।

 इक्कीसवी सदी का यह इक्कीसवा वर्ष आज अपने अवसान की ओर ( आज नवम्बर 19 ) है । बिहार में ग्राम पंचायत का चुलाव चालू है । कहना कोई गुनाह नहीं कि अपने देश में चुनावी अपराध का प्रतिशत आज जनतंत्र पर भारी शायद नही पड़ रहा क्योंकि इसकी रफ्तार दिनानुदिन आर्थिक उत्कर्ष पर ही बढ़ रहा है और संसद विधान मंडल से नीचे पंचायतों पर भी हावी कहे या प्रभावी बनकर गाँव भोली जनता को विकास की गंध मिली कितनी ? वह जो कुछ भी हुआ उसका परिदृश्य जो सामने आया , इस बार के चुनाव में अपनी आर्थिक शक्ति का जोड़ इतना जमाया कि गाँधी जी के सपने का भारत का नक्शा निखड़ने की बात अब अनावश्यक दिख रही हैं ।

 यह तो रही एक सामाजिक , आर्थिक और राजनैतिक पुन निर्माण की कथा व्यथा । अब हम आगे गिनाना चाहेंगे कि कौन – कौन स मुद्दे विश्व को विनाशकारी दिशा की ओर ले जाने की सम्भावना से अवगत कराने लगे है जैसा आज विचारक समाचार पत्रों से हमे अवगत कराते हैं । जिन वैज्ञानिकों एवं चिन्तकों की जानकारी में हम विषयों की झलक पायी जा रही है और वे साझा करने वाले है क्या उनके मानस में कछ निदान नजर आते हैं ?

 शताब्दियों से देश अपनी दुर्दशा झेलती हुयी 1947 में आजादी पायी । गरीबी , शिक्षा , बेरोजगारी से आज 74 वर्षों से लड़कर बिजली , सड़क , पानी यातायात , आवास की दिशा में विकास के नमूने तो सामने आये , आर्थिक मामले में सुधार का यही प्रमाण है कि लोगों की क्रय शक्ति बढ़ी और आय का अधिकांश अंश विलासिता , नशापान और उपभोक्तावाद की झोली में गया । देश कहता है कि ज्ञान की गुणवत्ता गयी । मानवादर्श व्यवहार में दिखता नही । शोषण और अपराध पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा । वैज्ञानिक बताते है कि देश इन – इन क्षेत्रों में प्रदूषण झेल रहा है जो मानवता पर वैश्विक रूप से विनाश का आमंत्रण है , तो मैं कहना चाहूँगा कि उन्हें जब सूझता है कि विनाश की घंटो बजने वाली है तो लाइन को काट क्यों नही देते ?

 प्रदूषण जो वैयक्तिक संबंध रखता है उसके जिम्मेदार तो हम है , जिन्हें आज का अखबार समाचार दिया कि आप अपनी आवश्यकताएँ घटाएँ साथ ही उनके उपयोग भी सीमित करें । अब बताएँ कि पूजीपति , उद्योगपति , व्यवसायी , नर्सिंग होम्स , यातायात , साइबर टावर्स और ऊर्जा निक्षेष , युद्धाआयुध अस्त्र एवं विस्फोटक कोट नियंत्रक दवाएँ और नशापान आदि वाले को आप कहाँ ले जायेंगे । हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता समस्याएँ जटिल से जटिलतर बनती जा रही हैं । दुनियाँ बहुत बड़ी है कितनों से लड़ेगे । टक्कर से टुकड़े ही बनेंगे ।

 विश्व में शान्ति , एकता और प्रेम चाहिए जो संविधान और सत्ता नही दे पायेगी । मानव को अहंकार त्यागना होगा । आवेश और आवेग पर ही अग्निशामक का प्रयोग करना होगा । सहकार से सरोकार फलेगा जो दया और प्रेम का प्रतीक होगा । विज्ञान को कल्याणकारी बनना होगा संहार की दिशा को निर्माण में लगाना होगा । ऐसा कहा जा सकता है कि वर्तमान में कोरोना की करुण कहानी ने कई प्रश्न खड़े किये शक्तिशाली राष्ट्र क्यों नही अपनी शक्ति को दवा निर्माण की प्रवृत्ति में खड़ी की । उन्हें शान्त दिल से सोचना होगा कि औषधि चाहिए । रोग प्रशमण से उसकी दूरगामी प्रक्रिया कष्ट साध्य रोगों को जन्म देगी जो सर्जरी की जरुरत पैदा करेगा और संसार में जीवति विकलांगों की जमघट लगेगी । आज आरोग्यकारी चिकित्सा का प्रचलन विश्व में विरले है । आरोग्यकारी चिकित्सा की मांग है लेकिन … लोग आरोग्य की जगह दवा के गुलाम बनते जा रहे हैं । ड्रग डिपेण्डेन्ट होकर वेकार बने और कष्ट का जीवन जी रहे हैं ।

 विचारियें जरा….. मैं नहीं कह रहा , यह आपकी ही नहीं , विश्व मानस की अन्तरिम मांग है लेकिन महत्वाकांक्षा और भौतिकता का जो हृदय में जंग चल रहा है वही सबसे बड़ा घातक है , मन से गंदगी गयी , तो दुनियाँ प्रदूषण मुक्त हो जायेगी । आज कोरोना अगर घातक बनी तो चिकित्सकों को कहाँ छोड़ पायी । इस वाक्य पर सबों को चिन्तन जारी रखना और विचार का विधान रचना ही होगा । यही होगा नया नजरिया सार्थक विकास का , जिसमें विनाश की झलक नहीं पायी जायेगी ।

 आप तो सदा सुन्दर बनना सुन्दर जीवन जीना सुन्दर इतिहास रचना और कष्टों से बचना चाहते हैं फिर आपके चिन्तन में ऐसे विकार और कर्म में अत्याचार क्यों पनप रहा है । जिससे दुनियाँ विनाश की ओर जा रही है । आप चिन्तित है । भीयभीत है । घबड़ाहट खरीद रहे हैं । कहते हैं कि सभी ऐसा ही कर रहे है तो हम एक के करने से दुनियाँ कैसे सम्हल पायेगी । कृप्या आप दूसरों की चिन्त छोड़ अपने में सुधार लायें शीर्ष नेतृत्त्व से दोष मिटे तब धरातल पर सुख और शान्ति फलेगी ।

 मेरे विचार से यह संदेश सबके लिए हितकर होना चाहिए ।

 दवाब और प्रभाव को त्यागकर प्रेम और सद्भाव पर बल दें । विराध को संयम और धीरज से जीते । यह मंत्र भारत की भूमि की देन है । इसकी मर्यादा बनी रहे तो हमारा ही नही , विश्व का कल्याण हो सकेगा ।

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