Thu. Apr 25th, 2024

 कदाचित विज्ञान और समाज शास्त्र भी सावधानी की अपेक्षा रखता है

डा० जी० भक्त

 बिना अभ्यास का दाँत खोदना मनुष्य पर गम्भीर पड़ता है । शास्त्र की उक्ति है :-

 ( 1 ) जो दवा प्रयोग में लाभकारी सिद्ध हो चुकी हो उसका आकर्षण ,

 ( 2 ) घरेलू विवाद ,

( 3 ) स्त्री संसर्ग एवं

( 4 ) अखाध भोजन तथा जो बातें सुनने में बुरी हो , उसे बुद्धीमान किसी से व्यक्त नहीं करते ।

 कोरोना काल में ऐसी बहुतेरी भ्रान्तिया व्यवहार में आयी जो विचारणिय नहीं थी , आज उनके दुष्प्रभाव देखे और पाये जा रहे है । चाहे ऐसा विषम सामाजिक स्तर से उठा हो अथवा प्रचलन में पाया गया हो , उचित नहीं लगता कि बिना विमर्श या परिक्षण से गुजरे वैसे विधान को व्यवहार में नहीं लाना ही उचित है ।

 कोरोना हो या अन्य कोई घातक या संक्रामक रोग , प्रथमतया उसकी सही पहचान उसके सम्बन्ध में प्रस्फुट ज्ञान , सावधानी के साथ निदान के विधान एवं विशेषज्ञों के बिना निर्देश का उसका प्रचलन सदा सोच कर ही किया जाय इसे ही जागरूकता कहा जाता है ।

 आज ही सवेरे समाचार पत्र में पढ़ा कि बिना विचारे विसंक्रमण क्षमता बढ़ाने के लिए प्रयोग के औचित्य पर ध्यान दिये बिना देशी दवाओं का धड़ल्ले से भारी मात्रा में भिरकाल तक अपनाना किडनी को जो बिना विचारे मनमानी पर उतरकर घटित बिगाड़ रहा है , ऐसे रोगी भारी मात्रा में चिकित्सार्थ पहुँच रहे हैं । ” घटना से आश्चर्य अथवा विशाद ग्रस्त हो रहे हैं उन्हें अब भी सीख ग्रहण करनी चाहिए । कभी दुर्दिन आकर भी हमें सीता जाता है कि काल , योग और मात्रा को सम्यक आयुक्त और अति मात्रक रूप सेवन सर्वथा वर्जित ( श्रेय एवं ” हेयर ) मानकर चलना चाहिए । मात्र ज्ञान पाना जागरूकता की परिपात नहीं , इसके लिए बुद्धि और विवेक की जरूरत होती है ।

 पोषण स्वस्थता और संरक्षण की ही आवश्यकता है भोग रोग दायक , सुख दुख का . जीवन जीने का उद्देश्य ना भोग है न सुख न संचलन जीवन को जन्मदाता और संचय गरीबी ” का भी कभी पर्याय बनना पड़ता है । अतः विशाद से सदा सावधान रहें । समाजवाद की रीढ़ प्रति के साथ जीना है । तभी जीवन की सार्थकता सिद्ध होगी ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *