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भाग-2 राष्ट्रधर्म एवं राजभक्ति

 30. राज धर्म का पलायन होने से राष्ट्र असुरक्षित होता है ।

 31. संसद और विधान मंडलों में अपनेक्षित गति विधि आवेश आक्रोश और हिंसक वर्ताव शीर्ष से अनुशासन और नैतिकता तथा राष्ट्रीय मर्यादा का विश्व क्षरण के बड़े जनतंत्र पर कालिख पोतना है ।

 32. संसद पर आतंकी हमला , और शस्त्र लेकर भगदड़ मचाना , मिर्ची का स्प्रे छिड़क कर उत्तेजना की स्थिति उत्पन्न करना क्या सुरक्षा की असावधानी की ओर उंगली नहीं उठाती ।

 33. जब देश के प्रधानमंत्री स्वीकार करते हैं कि देश में भ्रष्टाचार की घटनाएँ शर्म की बात है । उनसे पूछे जाने पर , कि सबकुछ जानते हुए भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उनकी चुप्पी का क्या अर्थ , तो गठबन्धन की मजबूरी बताना क्या इस ईंगित नहीं करता कि गठबन्धन की जड़ में भ्रष्टाचार छिपा है अथवा उनकी मजबूरी मुख्यतः भ्रष्टाचार को ही रेखांकित करती हैं ।

 34. क्या ये घटनाएँ राजधर्म को कलंकित नहीं करती ? अगर मजबूरी थी तो आप महाभारत का इतिहास जानते हुए जो भीष्म बने तो क्या आप राजधर्म को नहीं टुकड़ाए ? भीष्म पितामह ने तो इन्द्रप्रस्थ के राजसिहासन की रक्षा के लिए धर्माधर्म या कर्त्तव्याकर्त्तव्य को सोचे बिना राजभक्ति तो दर्शायी किन्तु राजधर्म का पालन नहीं किया ।

 35. एक कार्टूनिष्ट ने व्यंग चित्र के माध्यम से जानना चाहा कि शरशख्या पर दो भीष्म के सोने का विधान है या नहीं ।

 36. विषय था भाजपा और काँग्रेस का विरोध करते हुए भाजपा मुखर होना चाहती थी तो संसद की मंत्रणा कि सत्ता अगर भ्रष्ट है तो आप भी तो इसमे बराबर के सहोगी है । अंततः आज जनलोक पाल बिल पर दिल्ली विधान मंउल में दोनों का ताल मेल पटल पर अपना स्पष्ट चेहरा दिखला ही दिया ।

 37. राजनीति के जूड़ी ताप में नैतिकता की क्वीनाइन सेवन निदान नहीं , उसे आयुर्वेदिक नुस्खा चाहिए ।

 38. शायद राजनीतिज्ञ इस नीति को पचा नही पाते कि विपक्ष की प्रतिक्रिया को समुचित समादर मिलना चाहिए ।

 39. पंचपरमेश्वर कहानी में प्रेमचन्द्र का कहना है हमारे सोये हुए धर्म ज्ञान की सारी सम्पति लुट क्यों न जाये पर ललकार सुनकर वह सचेष्ट हो जाता है फिर उसे कोई हरा नहीं सकता ।

 40 . किन्तु हम ललकार सहन करने की योग्यता भी तो नहीं रखते ।

 41. जनतंत्र को राजनेता ही , अगर चाहें , तो मजबूत बना सकते हैं ।

 42. जनता की माँगों को सहानुभूति पूर्वक सुनना सत्ता का कर्तव्य है । उसे अराजक या जनतंत्र पर हमल कहना सत्ता और नेता दोनों की ही अक्षमता दर्शाता है ।

 43. जनता कभी भी जनतंत्र को कमजोर नहीं करती ।

 44. राष्ट्र की प्रगति , जनता की संतुष्टि , न्याय और शान्ति व्यवस्था , सुरक्षा का वातावरण , विकास का अवसर और सामाजिक सद्भाव सच्चे राज धर्म के निर्वाह का प्रमाण है ।

 45. उसी के विपरीत राष्ट्र का पतन , असुरक्षा , अराजकता और जन असंतोष बतलाता है कि राजधर्म का पालन सही रुप से नहीं हो रहा । उसी समय आत्ममंथन की आवश्यकता और सुधार की अपेक्षा होती है ।

 46. शिक्षा , स्वास्थ्य , खाद्य आपूर्ति , जन सुविधाएँ , आपदा प्रबन्धन , नागरिक सुरक्षा , जन सम्पर्क तथा मानवता के उत्कर्ष को सवोच्च स्थान देने से जनता का समर्थन और विश्वास सहज प्राप्त हो सकता हैं।

 47. निजी हित में सत्ता का दुरुपयोग राजद्रोह का परिचायक है । इससे जनता का विश्वास और जनमत दोनों कमजोर होता हैं । 48. स्वार्थवाद , वंशवाद , क्षेत्रवाद और अलगाव वाद जनतंत्र को निगल सकता है ।

 49. समाज में हाशिये पर जीने वाले , अनाथ , विकलांग , चिर रोगी , शरणार्थी एवं विपन्नजनों का कल्याण मानवतावादी शासन का उदाहरण हैं ।

 50. प्रायः महत्त्वपूर्ण अवसरों पर राज्यपाल महोदय एवं महामहिम राष्ट्र पति जी का संदेश जारी होता है कि देश को विकास के पथ पर बढ़ाने में राष्ट्र के नागरिकों का सहयोग अपेक्षित है । परन्तु मुझे विश्वास नहीं होता कि वे दिल से ऐसी घोषणा करते है क्योंकि नेक सलाह देने वालों की यहाँ सुनी नहीं जाती ।

 51. वर्ष पूरा हो रहा है । राष्ट्रपति महोदय ने चिन्ता जताई कि भारत के एक भी विश्वविद्यालय का नाम विश्व के चयनित 200 विश्वविद्यालयों में नहीं आया । दो दिन पूर्व भी किसी संस्था के हीरक जयन्ती में बोलते हुए फिर उन्होंने यही बात दुहरायी । इस साल भर के अन्दर मैंने स्नातकोत्तर शैक्षिक समूह का समाहरण कर उनके मिलन समारोह में शिक्षा में सकारात्मक सुधार पर शोधात्मक दृष्टिकोण लाने तथा नागरिकों में नैतिकता , अनुशासन और दायित्त्व बोध – पूर्ण स्थापित करने हेतु कदम उठाने संबंधी सहयोग की अपील की । सबों के सहयोग से जनतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा उपरोक्त कार्यक्रम का प्रारुप तैयार कर उसको प्राथमिक विद्यालयों के प्रथम कक्षा से पाँचवी कक्षा तक में लागू किये जाने हेतु स्थानीय तौर पर जिला शिक्षा पदाधिकारी तथा राज्य के शिक्षा निदेशक शिक्षा मंत्री एवं राष्ट्रपति जी की सेवा में ज्ञापन 24 जनवरी 2014 को भेजा गया । आज 15 फरवरी 2014 तक स्थानीय वैशाली जिला के जिला शिक्षा पदाधिकारी महोदय की ओर से कोई मार्गदर्शन की बात नहीं तो धन्यवाद ज्ञापन भी तो प्राप्त हो सकता था । इस भाँति हमारे देश में औपचारिकता निभाई जाती है ।

 52. राज धर्म का पालन और राष्ट्रभक्ति का प्रतिफलन स्वातंत्रयोत्तर 66 वर्षों की लम्बी अवधि में हुआ होता तो आज के परिदृश्य में जो राष्ट्रीय मर्यादा का क्षरण व्यापक और घृणित स्वरुप में सामने लक्षित हो रहा है कभी शीर्ष स्तर के राजनयिकों को समझ में नहीं आ रहा था ?

 53. आज यह दशा है कि ऊपर से नीचे तक सत्ता और जनता दोनों ही क्षेत्र में विचार शून्यता है नैतिकता अनुशासन दायित्त्व बोध एवं मानवीय मूल्यों को आचरण से बिल्मुल हटा कर देश चल रहा है ।

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