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विचारों की प्रखरता से सुदूर यात्रा की तैयारी

डा० जी० भक्त

विचारों में चेतना का प्रवाह एवं उसके प्रति जागरूक और पोषक ज्ञान श्रृंखला पर मंथन अगर अपने लक्ष्य पर अनवरत कायम रहे, किन्तु काल की गति और अपेक्षित सम्भावनाएँ उसकी दिशा पर भारी न पड़े, साथ ही उसके सम्यक विकल्प भी ढूंढे जायें तो एक बार पुनः वैदिक ज्ञान को युगबोध से जोड़कर युगधर्म के चरम लक्ष्य को छूना सम्भव हो सकता है।

आज की शिक्षा के इतिहास रटकर अपने पुरातन ज्ञान गरिमा और उनके प्रकाशकों के आदर्शों का गुणगान कर ले परन्तु चरित्र और चेतना से उदभूत ऐसा कुछ भी लक्षित नहीं हो पा रहा, मात्र हम उनकी पूजा मात्र करके संतुष्ठ हो लेने भर से मतलब रखते हैं। वैज्ञानिक अनुसंधान और औद्योगिक विकास से उपजा उपभोक्तावाद ने जो सुखोपभोग, विलासिता और अर्थवत्ता का स्वाभिमान सृजन कर रखा उसके समक्ष ज्ञान पर पाले पड़ गये प्रेम और सद्भाव का स्थान तो युद्धास्त्र से स्वयं को जोड़ लिया, तब तो धरती पर विश्व शान्ति की कल्पित सुगन्ध की जगह आह और कराह का उच्छावास दे रहे हैं।

सत्तातंत्र ने कुछ ऐसा वशीकरण मंत्र फूक डाला कि चेतना का प्रवाह रीति कालीन काव्यकारों के पदछन्दों में सुना और गाया जाने लगा।

यथा-

गुलगुली गिल में गलीचा है गुणीजन है।
चान्दनी है चिक है चिरागन की माला है।
कहे पदमाकर कि गजओ गिजा है सजी,
सेज हे सुराही है सुरा है और प्याला है।
शिशिर के पाला को न साले कसाला तिन्हे,
जाके पास एते उदित मशाला है।
तान तुक ताला है विनोद के रसाल है,
सबाला है दुशाला है विशालाचित्र शाला है।

जब जनतंत्र आया तो आशा जगी कि दुनियाँ अब उबर पायेगी लेकिन वह तो मधुशाला का दिवा रात्रि माला फेरने लगा।

कलियुग के बेचारे मुख्यमंत्री जी किनका नाम खोलूँ. जब शराबबंदी का अमृत काल सृजित हुआ तो मधुशाला को भले ही भूल जाये, परन्तु प्याले छकने के स्थान जो मद्यनिषेध का साइन बोर्ड लगा, वहाँ सुराभिषेक की सरिता बह चली लेकिन सरजी बाज तो आयेगे नहीं, प्राण जाये पर वचन न जाहीं ।

लेकिन मीराबाई ने क्या कहा” मनुआ राम नाम रस पीजे छाड़ी-कुसंग सत्संग बैढिव करि हरि चरचा सुनि लीजै मआ सम नाम रस पीजै ।।

इसवार की होली में रंग और भंग को छोड़ हम सब सतसंग पर जोड़ दे। आडम्बर को त्याग सद्धर्म और सद ज्ञान को चरम सीमा की ओर रफ्तार दें।

होली हर्ष और उत्साह से भरा पर्व है।

लेकिन हमारा देश आर्थिक विषमताओं, जातिगत विभेदों, गरीबी, बेरोजगारी, अस्वस्थता, अपंगता, प्रदूषण और अनैतिक व्यवहारों से जब संत्रस्त है तो सच बतलायें कि यहाँ होली मनेगी कैसे ? जीवन और जगत को सही दिशा चाहिए। चेतना में प्रेम और सद्भाव के साथ सकारात्मक सोच, विचारो में शुचिता और ज्ञान के साथ जनकल्याण और सम्मान का वातावारण। तब हमारा जीवन प्रकृति का साथ पाकर जीवन नहीं उत्सव होगा और हम स्वतः आगे बढ़ते जायेंगे। हमारी आस्था को प्रकृति का साथ मिलेगा। काल की गति और अनपेक्षित सम्भवनाओं का भय नहीं सता पायेंगे। ऐसे ही प्रखर विचारों से हमारी यात्रा सुदूर आसमान को झाँक पायेगी। आज के युवा और नयी पीढ़ी को यही संदेश चाहिए जन नेतृत्व को नैतिक, विनम्र, दयालु एवं सत्यवादी होना चाहिए। इससे समस्यायें दूर हटेंगी।

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