Thu. Apr 25th, 2024

अमरवाणी

 विकास की परिणति परतंत्रता की पीड़ा बन रही ।

 ” -हमें विवेक से काम लेने की जरुरत थी , जिसका पालन कर पाने में हम पीछे रहे । सृष्टि के इतिहास में मानव तब विकास की उस ऊँचाई पर पाँव रखा जब वह सुख – सुविधाओं का आनंद भोग सहज पाया ता उस युग के अग्रणी सोच रखने वालों ने विचारा कि सुख की आवश्यकता की सीमा होनी चाहिए , पराकाष्ठा पाना सर्वथा वांछनीय नहीं । तब उन्होंने स्पष्ट किया कि इससे आलस्य , विलसिता , संग्रह , स्वार्थ , भोग , रोग और जीवन में कष्ट और विरोध – प्रतिरोध झेलना पड़ सकता है । .शायद , इसीलिए प्रथम तथा ही वेद – शास्त्रापनिषदादि की रचना हुयी होगी ।

 आज के इस विकसित ब्रह्माण्ड में , जब हमारे पैर हवा में छलांग लगा अंतरिक्ष से अपनी ऊँचाई आंकने की प्रतिस्पर्धा पाल रहे , तो इसी क्षण हमें इन प्रस्फुट एवं जीवन्त विचारों को चिन्तन ही में नही , अपने व्यवहारों में उतारने में जुट जाना चाहिए । जब सुख – सुविधा की सहजता , में –

 आलस्य , विलसिता , संग्रह , स्वार्थ , भोग , के उपरान्त रोग , और जीवन में कष्ट और विरोध ऋतिरोध की तीन प्रावस्थाएँ जो विचार के विषय सामने आये वे आज हमे भली प्रकार देखते , समझते और जानते हुए भी सावधान न का पाये , हम अपना विवेक खोकर उसी में भूले विकास और बास का उपहास और एहसास संजोय गर्त में गिरते जा रहे हैं । हम उन्हें न त्याग पा रहे , न सीख ग्रहण कर रहे , किंवा संयम से भी काम न ले रहे बल्कि उसी के गुलाम बने भटकते फिर रहे हैं ।

 अब विचारिये , हम कौन हैं ? हमारी विवसता क्या है ? हमारी अपनी आवश्यकता क्या है ? हमारी लाचारी क्या है ? हम गरीब अशिक्षित , अकुशल , अस्वस्थ , असहाय क्यों हैं ? .क्योंकि हम परतंत्रत है । अंग्रेजों के नहीं , अपने आप में , अपने मन – हृदय में परतंत्रता पाले हुए हैं । हम वैक्सिन के परतंत्र है । दुनियाँ की तथाकथित मान्यताओं , मूढ़ चिंतनों , दुर्व्यसनों , कुप्रथाओं , जनधारणाओं और आत्माभिमान के समक्ष सिर झुका घुटने टेक चुके हैं । इन परतंत्रताओं के हमही पालनकर्ता हैं । और जो हमारे इन कुटेवों ( बुरी आदतों ) के परिणामों को भली प्रकार समझ रहे , वे ही हमारे पोषक , पालक के वेष में हमारे शोषक बने हमरे नूतन से नवीनतम विकास के पुरोधा बने हैं । अब हमारा सुनेगा कौन ? हमने तो अपने मत का दान कर दिया जो हमारे जनमत पाकर आगे है उनके पीछे अपार अल्पमत को अपनी मूर्खता का इजहार लिए धरने दे रहे । क्यों ? सोंच का अभाव , विवेकहीनता और एकजुटता की कमी के कारण । हम तो टुकड़ों में बँटे हैं न । जल्दी ही सोच में बदलाव लाना होगा । आप तो वोट डाल दिये । अब वहाँ रोवोट काम करेगा । आपको तो नौकर ही बनने की ताक है .. । तो नोट काम करेगा । आपको समझना पड़ेगा कि युवा वर्ग को स्मार्ट बनाया क्यों जा रहा । लेकिन हमे एक इन्सान बनना हैं । विवेक अपनाइए ।

 ( डा ० जी ० भक्त )

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