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आध्यात्मिक विषय, आत्म चर्य्या

डा. जी. भक्त

मेरे विद्यार्थी जीवन में सिलेक्श था जिसे हिन्दी राष्ट्रभाषा की पुस्तक में पढ़ा था । विद्यापति की कविता में-

आध जनम हम नींद गमायल जरा शिशु कत दिन गेला ।
निधुवन रमनि रंग रस मातेलु तोहे भजव कोन वेला ।।
माधव हम परिनाम निराश ।।

इस 2022 ई . के कार्तिक मास की समात्पि पर 75 वें वर्ष की ओर बढ़ रहा हैं । कह सकता हूँ कि जीवन यात्रा अपनी मंजिल को छूने जा रही है । विषय सामने आता है ईश्वर भजन का । … तो मैं अब क्या कहूँ । जहाँ तक हो सका मैं अपने हिस्से की जीवनावधि अपने विचारानसार परिवारिक जिम्मेदारी के निर्वाह में शिक्षा सेवा में चिकित्सा सेवा में एवं विश्व के कल्यानार्थ कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाये एवं विश्व के पटल पर साझा किया । सराहे गये , स्वीकृति पायी । विषय था ( क ) परिवार कल्याण पर नई दृष्टि ( ख ) होमियोपैथी द्वारा पशुचिकित्सा को सस्ते और निरापद रूप में सुलभ कराने एवं उसके शिक्षण हेतु डिग्री कोर्स ( B.V.Sc Hom ) चलाने की स्वीकृतिकी प्राप्ति जो अबतक न थी ( ग ) शिक्षा में क्रमशः उसकी गुणवत्ता ( नैतिकता , अनुशासन और सामाजिक सरोकर के साथ कर्त्तव्य बोध जगाकर चरित्रिक शुचिता लाना ) के क्षरण सुधारकर मूल्य परक शिक्षा की पुनर्थना ।

सृष्टि में धरती को माँ कहा गया है । हम भारतवासी हैं । अतः भारत की सरकार की भारत माता है । सृष्टि के कण – कण में ईश्वरीय सत्ता ब्रह्म व्याप्त है । उपरोक्त भावों को भारत माता रूपा सरकार से प्रतिपल निवेदत करना हि मेरी राष्ट्र भक्ति कह या देश प्रेम । मेरे विचार से जैसा मेरा आत्म विश्वास है , अगर इश्वरीय सत्ता सृष्टि का सर्जक , संरक्षक और पोषक सर्वव्यापक सर्वान्तर्याभी और कृपामय है , ऐसी कल्पना है तो हम भी नतमस्तक भारत माता के समक्ष अपना निवेदन लेकर शरणापन्न आशन्वित है कि हमारी प्रार्थना पूर्ण करेगी । उपरोक्त विषय में से ( ख ) की स्वीकृति भारत सरकार ने दे दी है ।

भौतिक शरीर में मन और हृदय ( अन्तः करण ) सूक्ष्म ( अभौतिक ) सत्ता है । उसी के अन्तर्गत प्राण सत्ता ( सूक्ष्म भौतिक ) है । चेतना ( मन और हृदय ) चेतन प्राण और शरीर का समवाय जो संचालित अवस्था में जीवन मे जीवत है उसका पोषण देने वाला अचेतन भौतिक पंचतत्व ही है जो स्थूल शरीर का निर्माण कर रखा है । अतः यह भी स्वयं सिद्ध है कि अचेतन भौतिक तत्त्व में भी ब्रह्म की कल्पना साकार है कि उन्ही अजैव या अचेतन द्वारा जीवन का संचार भोजन एवं औषध ( दवा ) से होता है ।

अगर ज्ञानी ज्ञान का प्रसार करते है चिकित्सक दवा का प्रयोग करते है । जीव अगर ज्ञान और कर्म मे शचिता वरतते हुए सृष्टि को अपनी अन्तश्चेतना से वरतता है तो वही भक्ति है । उसमें तत्पर रहना ही उनका भजन है । यह सबके लिए ध्येय , प्रेय और श्रेय है ।

उसे ही साधना कहते हैं । सकारात्मक होने से यहीं ईश्वर भक्ति या विश्व प्रेम का पर्याय है ।

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