Thu. Apr 25th, 2024

जीवन अनमोल है, जीने का ढंग चाहिए

डा. जी. भक्त

इस अखिल विश्व में मानव की श्रेणियाँ उनके स्वरूप , गुण – दुर्गुण , कर्म , जीवन स्तर , स्वभाव , विचार भावना , प्रवृत्तियों के आवेग – संवेग के साथ अनेको भावोद्रेक के प्रवाह उपजते है जिनपर नियंत्रण जरूरी होता है , अन्यथा उनके प्रभाव अपने आप सह समाज और विश्व के लिए घातक सिद्ध होते है । (cool consideration to emotion is fatal to its existence , peace hails and evildisapears.) मानव में ऐसे आवेश पर ठंढ़े दिल से विचार करना उनके आवेग को मिटा देता है । शान्ति कायम रह जाती है और उसकी सम्भावित बुराई दूर हो जाती है । यह कितना छोटा मंत्र या कुंजी है किन्तु कितना महत्त्वपूर्ण है मानव समुदाय के हित में ।

आर्ष ( मुनियों के ) बचन है : – षडारि ( षड – छः , अरि- दुश्मन ) , षड दोषाः पुरूषेणेह हातव्या भूतिमीच्छताः निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्धसुत्रता । निद्रा की जगह जागृति , तन्द्रा की जगह – ताजगी , भय की जगह शान्ति , स्थिरता ( मनोदैहिक ) आलस्य की जगह तत्परता और दीर्ध सूत्रता ( टालमटोल करने की प्रवृति ) की जगह ” कल करे सो आज कर ” का ख्याल रखना इस धरती पर हर प्रकार के वैभव ( सम्पत्ति ) दिलाते है । वैभव कल्याणार्थ अर्जित किया जाय ! इसक आगमन में तीन बाते ( चीजें ) बाघक बतायी गयी है स्त्री पुत्र और धन । क्यों ? इस हेतु कि हम इन तीनों से मोहित पाये जातें हैं । इनकी अत्यधिक चाह होती है । इसके प्रति हमारा गंभीर लगाव ( अटूट सम्बन्ध ) होने से जीवन इन्ही तीनों के इर्द गिर्द चक्कर लगाता हुआ न आत्म कल्याण पर उतर पाता न जन कल्याण की ओर बढ़ पाता , इसी को माया ने लिपटा रहना कहा जाता है । सारे जीवन का उपयोग भोग इसी पर लक्षित होकर अवसर नहीं निकल पाया । सद् प्रवृत्तियों के ग्रहण करने , ज्ञानर्जन के लिए , आत्म चिन्तन के लिए विश्व के साथ जुड़ने के लिए ।

हमारे कर्म दोष , भोग , व्यसन , परिग्रह का भाव और उसके साथ लोभ , मोह और स्वार्थ का निहित होना न हम त्याग , दान , भक्ति , परमाथ , समृद्धि पाने में रुकावट लाता रहा अथवा तथाकथित विकास के भौतिक सुखापभोग की अपेक्षा पालने वाले राजसत्ता भोगी , पूँजोपति उद्योग पति , उत्तम पद प्राप्ति की लालसा पालने वाले सच्चे राष्ट्र सेवी न बनकर आत्म गौरव के श्रेय की जगह आत्म ग्लानि , पश्चाताप , बध और बन्धन तथा पराजय पात है । उनका काला इतिहास बनता है । त्यागी और सत्याथी सदा पुजनीय होते है ।

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