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 इस युग की जय हो

( डा ० जी ० भक्त )

 एक पुरातन कथन है :-

 कृषि सर्वोत्तम कला है , कारण कि वह स्वयं उत्पादन कर आजीविका जुटाता , पोषण पाता , परिवार पालता और समाज तक को आवश्यकता की पूर्ति करता है । आत्मनिर्भर है ।

 मध्यम पेशा वाणिज्य , व्यापार , खरीद – बिक्री का अवलम्बन कर उसके लाभ ( कमाई ) पर निर्भर है । कृषक उसका भी पूरक है । कृषि पर ही खाद्य सामग्रियों का व्यापार निभर्र करता है ।

 उससे निम्न स्तर को पेशा नौकरी , श्रम बेचना , मजदूरी करना है । इस पेशा में उसकी स्वतंत्रता वाधित होती है । नियमाधीन है । वेतन लेने के कारण वह गुलाम है । उसे सम्मान कम मिलता है । फटकार तिरष्कार किंचित दया और कृपा की अपेक्षा पर जीता है जो उसका अधिकार है अबतक अस्वीकार्य ही लक्षित है ।

 यह हेय है कि मानव मिक्षाटन पर जी पाये जिसे किसानों , विभिन्न स्वरोजगार साधकों एवं व्यापारियो की दया एवं कृपा प्रसाद पर निर्भर रहना उसके लिए कोई अपराध तो नही माना जाता ।

 इस युग में हम विकसित कहे जाते हैं । हम विकास के केई मील के पत्थर तय कर चुके हैं । आर्थिक और उपभोक्ता क्षेत्र में हम समार्ट माने जाने लगे हैं किन्तु देश की आर्थिक विषमता को अपने पुराने मानक से उपर उठकर भी संतुष्ट नहीं दिख रहे । शिक्षा अपनी गरिमा खोई है । मानवता का पतन होते देख हम लज्जित नही हो रहे । बेरोजगारी की बढ़ती लम्बी कतारे देख देश दहल रहा है । सबों को नौकरी ही सूझ रही है । आज बताया जा रहा है कि भारी मात्रा में हमारी सरकारें नौकरी देने जा रही है । आत्म निर्भरता पर उपयुक्त एवं पभावी प्रयास क्यों नहीं ?

 आज भी हम स्वतंत्र देश के नागरिक होकर नौकर ही बनना चाहते हैं , देश सेवक नहीं । नौकरी हेय है अगर पद पाकर अनैतिक बनते है । सेवा में अगर शुचिता आयी तो श्रेय उसके हाथ आना है । प्रशासन द्वारा शोषण देश का अहित करता है । अपमान , ग्लानि , सजा तो मिलना ही हैं ।

 आवश्यक है कि जनता को आजीविका इस हेतु आवश्यक है कि आर्थिक विषमता से गरीबी और बेरोजगारी आती है । युवा वर्ग को आजीविका के लिए तत्परता , परिश्रम और प्रयास करने की जरुरत है नौकरी की प्रतीक्षा नहीं , प्रत्याशा में समय गुजारते हुए उम्र को सीमा समाप्त हो जाती है । अवसर की चूक बड़ी भूल है । नौकरी पाकर भी तो हम आत्म निर्भर नही हो पाते । इसके बहुतेरे कारण है जो हमारी भूल और अवसर चूक रेखांकित करती है ।

 हमारी शिक्षा आज मानवीय मूल्य की प्राप्ति कराने में विफल हैं । इसमें छात्र और शिक्षण व्यवस्था दोनों ही दोषी बनते हैं । शिक्षा मूल्य परक एवं सकारात्मक होनी चाहिए जो हमें सही निर्णय लेने और कुशल नागरिक बनने की प्रेरणा दे । माना कि आज बिहार सरकार भारी संख्या में शिक्षक बहाल करने जा रही है । ये छात्रों को शिक्षित बनायेंगे आत्म निर्भरता की सीख देंगे । जो स्वयं आत्म निर्भर नहीं बन पाये वे आने वाली पीढ़ी को कैसा बनने की शिक्षा दे पायेंगे ? आज रोजगार पाने के नाम पर धांधली भी सुनी जाती है । लोग भी कामचोर और आलसी बने जा रहे है । किसी प्रकार नौकरी से जुड़ जाना मात्र उनकी चाह होती है ।

 आत्म निर्भरता की सीख और सुशिक्षत नागरिक बनना ही शिक्षा प्राप्ति का निहितार्थ होना चाहिए । आत्म निर्भरता की नीति बन जाने से , सरकारी योजना से नियोजन देने से आत्म निर्भरता आ नही सकती । आर्थिक , सामाजिक और नैतिक मजबूती ही आत्म निर्भरता ला पायेगी । शिक्षा में इन तीनों पहलुओं पर सफल उतरने की सूझ और सीख ग्रहण कर हम स्वयं सहित अपने राष्ट्र को आत्म निर्भर और समृद्ध समाजिक परिवेश प्रदान कर सकेंगे , जिसमें , अनाचार , भ्रष्टाचार के साथ सामाजिक सरोकार का पिछड़ापन लक्षित न हो । एक संयमित और संतुष्ट रचना हो पाये तो उस राष्ट्र में जनतंत्र सुदृढ़ता पा सकेगा । इस मार्ग पर हम ही नही , सारा विश्व पिछड़ रहा है ।

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