कालॉकडाउन का साठवाँ दिवस
1………….मिला – जुलाकर अपने देश में पूरे विश्व के देशों से सराहनीय परिणाम प्राप्त हो रहें । कारण रुप सच्चाई थाहे जो हो , सरकारी घोषणानुसार संक्रमितों की संख्या यद्यपि बढ़ते रहे मरने वालों की संख्या कम रही तथा सुधार अधिक देखे गये । संक्रमण के शिकार प्रवासी आगन्तुक या उनके विशेष सम्पर्क वाले रहें ।
2. दूसरा कारण जो सामने आया वह मुस्लिम मजहवी सम्मेलन में सरीक होने वाले भारतीय पाये गये ।
3. विदेश या देश के अन्य राज्य के भारतीय नागरिक जो वहाँ से बाद में सरकार द्वारा मंगाए जाने पर उनमें से भी संक्रमित रोगी मिल रहे हैं । इस प्रकार अपने देश में भी कोरोना के नये रोगी पाये जा रहें ।
4. गृह मंत्रालय द्वारा इस विपदा पर जो नियंत्रणात्मक व्यवस्था खड़ी की गयी है . उस पर देश का खर्च बढ़ा है ।
5. लोकडाउन लागू करने तथा उसकी अवधि बढ़ने की कारण गरीबों , मजदूरों , किसानों को अनुदान , राहत , राशन सुविधा तथा विविध प्रकार के आर्थिक सहायता में , कोरोना के संदिग्धों को आइसोलेट कर कारेटाइन म डालने और उनकी व्यवस्था , संदिग्धों की जाँच , इलाज , भोजन आदि का खया
6. किसी कारण रुके हुए प्रवासी लोगों या कारखानों में काम करने वाले मजदूर जो लाकडाउन की अवधि बढने के कारण उनके कंपनी मालिक उनों खर्च देने से हटा दिया , आदि कारणों से रुके लोगों को वापस बुलाने का पूरा खर्च , इलाज या निर्धारित समय तक क्याटराइन में रहने का खर्च फिर उन्हें घर भेजने आदि का खर्च देना पर रहा । बचाव काय हेतु डिसिफेवाशन काय डाक्टरों , सेवकों आदि पर व्यय , । तथा
7. लाकडाउन की स्थिति में यातायात बाधित होने पर आवश्यक सामानों की आपूर्ति , पुलिस द्वारा सुरक्षा एवं विधि व्यवस्था के नियमों के पालनादि पर खर्थ । उत्पादन बन्द होने से कमजोर आर्थिक स्थिति वालों को मदद को रुप में खर्थ ।
8. अन्यान्य कारणों सहित पूरे देश की अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए लाखों करोड खर्च करने पड़े फिर भी इसका पूर्ण नियंत्रण हो नही पाया है ।
9. इन विषयों पर राज्यों एवं देश में प्रतिक्रियाएँ , विरोध और विरोधाभास का सामना करना पड़ा है । नियमों का उल्लंघन तथा कई राहत कार्यों में अनियमितता तो कहीं प्रतिरोध जताये गये है । देश बड़ा है । धैर्य , संयम , अनुशासन एवं त्याग – प्रेम का अभाव भी सेवा अभियान में रुकावट लाता है जो हुआ भी है और यत्र – तत्र हो रहा है । खर्थ देश के कोष से हो रहा है । वह जनता का ही पैसा है । यह सोचने का विषय है । जनता के ही विषय को लेकर जागरुक तो होना ही है किन्तु गलत खर्च इसका विनाशक प्रभाव मात्र नही , भविष्य पर भी खतरा लाने वाला है । उसे अमल में लाकर देश और जनता को कल्याण ही सोचना पहला कर्तव्य है ?
10. यह संकट जितना गहरा और लम्बा समय लेने वाला निकाला कि विकसित राष्ट्रों को जितनी हानि और परेशानी उठानी पड़ी है , उसकी भरपायी में समय लगेगा । आज भी उसका अन्त नहीं । इस चिन्ता में विश्व की सरकारें अपनी शक्ति लगा रखी हैं और भविष्य के लिए चिन्तित ही नहीं , प्रयत्नशील है ।
यहाँ पर में एक विषय रखना चाहता हूँ । कोरोना वायरस इन्फेक्शन से प्रारंभ होने वाला श्वसन यंत्र को प्रभावित कर विनाशकारी दृश्य उपस्थित करता है । इसकी समाप्ति तथा आरोग्य पाने में संक्रमित रोगियों की चिकित्सा तथा संक्रमण पर नियंत्रण जरुरी है । वायरस को निष्प्रभावी करने के लिए जीवनी शक्ति बढ़ाना एवं विसंक्रमण कार्य करना जरुरी है । इसमें मेडिकल सेक्टर की भूमिका ही सबसे महान है जिस दिशा में विश्व की एलोपैथिक चिकित्सा प्रणाली पुटने टेक दी । तथापि जिन दवाओं द्वारा उसकी चिकित्सा चल रही है वे पूर्णतः आरोग्यकारी नहीं , प्रशामक है , दूरगामी दुष्प्रभाव लाती हैं । किन्तु विश्व की सरकारें एक ही को प्राथमिकता दे रही । दुनिया में दो सौ से अधिक देशों में होमियोपैथी का प्रचलन एवं उसे मान्यता है । भारत में तो उसको अपना विभाग ही सीप दिया गया है ताकि वह मानव जीवन के हर क्षेत्र में अपनी भूमिका निभायें । यह पीछे पड़ रही । मैं इस बिन्दु पर होमियोपैथों सहित सरकार से बार – बार आग्रहशील हूँ किवह इनसे पूरी सेवा लें तथा जिम्मेदारी सौंपे । यही एक आरोग्यकारी चिकित्सा पद्धति रही जो विकल्प बन सकती है । भारतीय पद्धति होते हुए आयुर्वेद भी ठीक है किन्तु कमजोर । मैं एक होमियोपैथ होकर उसे मानवता एवं आरोग्यता के मार्ग पर खड़ा उतारने की अपेक्षा रखता हूँ ।
डा 0 जी 0 भक्त
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