कोरोना और वैक्सिन
वैक्सिन की भरमार प्रकृति के साथ छेड़छाड़ सबसे ज्यादा अपेक्षित है आरोगय कारीदवा का आविष्कार
डा० जी० भक्त, मो० 9430800409
मैं नहीं, सिर्फ आप सभी विश्व के सत्ताधारी समाज इस समस्या से तवाह हो रहे हैं। आपही के शब्दों में कोरोना के प्रति आपकी जितनी सजगता, सफलता और समाधानों के प्रति चिन्ता भी बटोरी जा रही है, वह ज्यादा चिन्तनीय है।
सृष्टि में मानव सर्वोच्च जीव है हर प्रकार से उस पर आज जो कोरोना का संकट छाया है, आपही के शब्दों में प्राकृतिक (Natural) नहीं, कृत्रिम (Inposed) है उसके लिए आपने सर्वोत्तम वैक्सिन को ही माना है। अपनाया भी है और उससे उत्पन्न अन्य विकृतियों पर चिन्तित पाये जा रहे है। मैं एक होमियोपैथिक चिकित्सक होने नाते डा० सम्युएल हनिमैन (होमियोपैथी के जनक (जर्मनी) में 1755-1843 ई) में अपनी आरोग्य कारी खेज में प्रकृति के समरूप ही सिद्धान्त निरूपित किया जिसे विश्व स्वीकारता है।
यह भी सत्य है कि वैक्सिन का प्रयोग भी सर्वमान्य विद्यान नहीं है। सर्व प्रथम जेनर ने जो स्माल पौक्स पर प्रयोग कर उसका निदान किया उसने भी वैक्सिनोसिस उत्पन्न किया, वह आगे चलकर कैन्सर नामक जानलेवा सर्जिकल रोग को भारी मात्रा में जन्म देना शुरू किया जो वैक्सिन के उत्पादन और उसके बार बार प्रयोग किये जाने पर होड़ मच रही है, उससे विश्व को बढ़कर विचार करना चाहिए। मैंने गुगल पर इसके सम्बन्ध कई बार अपने सुझावों के जरिए विचार साझा किया है और निदान भी सुझाया है। आज जरूरी है विश्व को प्रकृति से खिलवार न करना। ऐसे भी मात्र रोज ही नहीं प्रकृति पर भी अप्रत्यासित असर पड़ रहा है। इतना ही नहीं वैक्सिन शरीर में जाकर सिर्फ इम्युनिटि ही नहीं पैदा करता वरन वह अपने सुदूरगामी प्रभाव से मानव शरीर में छिपे पुराने दोषों से मिलकर नया रोग अपना प्रभाव डाल ही रहा है जिससे आप चिन्तित हो रहे हैं।
मेरा पुनः आग्रह होगा कि चिकित्सा विज्ञान वेत्ता एकबार हामियोपैथिक आर्गेनन ऑफ मेडिसीन, हनिमैन के क्रॉनिक डिजीज, होमियोपैथिक मियाज्म और थेरप्यूटिक्स पर गहन विचार करना न भूलें। मानवीय सभ्यता, संस्कृति विज्ञान और प्रकृति के साथ कुछ वैसा नहीं करें जों ब्रह्मांड में असंतुलन उत्पन्न करें।