Fri. Apr 19th, 2024

कोरोना का दृश्य और भारत का भविष्य
 डा 0 जी 0 भक्त

 कोविड -19 के संक्रमण से उत्पन्न विनाशकी विभषिका में जो विश्व मानव समुदाय पर विपत्ति छायी , वह 2019 के शेष तदुर्थांश से मानें तो अबतक की अवधि का दृश्य चिन्ता जनक रहा । अगर कहा जाय कि स्थिति यथावत है तो गलत न होगा । कारण यह भी है कि संक्रमण की घटना पुनरावृत्ति भी हो रही है । विश्व समुदाय द्वारा यह घोषणा हुयी कि इस रोग की न दवा है न प्रिवेन्टीव हीं । रोग घातक अवश्य है । संक्रमित होने वालों में से कम या अधिक रोग मुक्त होते हैं तो मरने वालों की भी बड़ी संख्या रही है । जहाँ होगी पाये गये वहाँ प्रतिदिन संक्रमण तो प्रतिदिन मृत्यु भी । यहाँ तक कि एक दिन में एक राज्य में हजारों में संक्रमण पाये गये , तो मृत्यु दर भी उस संख्या से बराबरी की , कहीं उससे भी आगे रही । यह क्रम लगातार चलता रहा । आज तक पूर्णतः संक्रमण नहीं रुक पाया । अगर किसी देश में सम्पूर्ण सुधार की बात सुनी गयी है तो उस पर भरेसा कर पाना कठिन ही है । 10 जून तक पूरे विश्व में 75 लाख 23 हजार 781 संक्रमितों की संख्या सुनी गयी जिसमें 4 लाख 13 हजार 734 जाने गयी । भारत में उसी प्रकार 2 लाख 76 हजार 583 संक्रमित हुए तो सात हजार 745 की मृत्यु हुयी । यह दृश्य रहा कोरोना का ।
 भारत में यह घटना देर से प्रभावित कर पायी थी । प्रारंभ में संक्रमण दर कम थी . किन्तु प्रवासीगण के लौटने के साथ संख्या बढ़ती पायी गयी । सामाजिक रुप से संक्रमण नही पाया गया किन्तु बढ़ते दिनों यह संख्या महानगरों में तीव्र रुप ली । आज यह भयावह है । मार्च के उत्तरार्द्ध से अबतक संक्रमण सूचित हो रहा है ।
 इस विभीषिका से निवटने हेतु इन संक्रमित 210 देशों की सरकारें अपनी पूरी शक्ति लगा रही है । किन्तु यह शक नहीं रहा है । इसने मात्र जनसंख्या मात्र पर अपनी तरह कमजोर की है । बचाव के लिए किये गये प्रयत्नों दवाओं , सेवाओं , सामग्रियों , प्रवासियों को अपने देश में लाने , रोगियों को आइसोलेट करने , विरेंटाइन सेन्टर की व्यावस्था , रोगियों की जाँच इत्यादि पर अपरिकित खर्च देशों पर पड़ा । लॉक डाउन लगाने से उत्पादन ठप हुआ । जन आवश्यकता राहत देने में भी देश की अर्थव्यवस्था पिछड़ी । महंगाई बढ़ी । स्थिति और परिस्थिति का प्रभावित होना , दृश्य और परिदृश्य का बदलना मानव के जीवन स्तर पर घातक हमला रहा । आज जो दृश्य है वह सेंम्हल नही रहा तो भविष्य के प्रति चिन्ता बढ़नी स्वाभाविक ही है ।
 दुनियाँ तो विशाल है , हम केवल अपने ही देश पर विचारें तो भारत का भविष्य कैसा रहेगा ? इस पर सोच पाना आज बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है । भारत की विविधता भरी प्राकृतिक , एवं भौगोलिक व्यवस्था , जलवायु , जीवन स्तर से जुड़ी संस्कृतियाँ , कौशल , संसापधन एवं मान्यताएँ इनसे प्रभावित होती है । भारत और भारतीयता जिसकी भसक है । कोरोना के चिकित्सा विधान में , भारतीय जीवन शैली , आयुर्वेदिक जड़ी – बूटियाँ , व्यंजन , मशाले , आहार संयम एवं स्वस्थ जीवन जीने की अवधारणा सब कुछ मिलकर भारतीय रोगियों और अन्य देशों पर पड़ने वाले प्रभाव में अन्तर दिखे तथा विश्व ने इसे सराहा । इन सभी परिस्थितियों पर सर्पक सोचक बनाकर चलना तो आवश्यक होता ही है तथापि वर्तमान वैश्विक धारा के साथ सामाजिक राजनैतिक समाहरण से यहाँ का जनतात्रिक परिदृश्य इस हेतु समानता नही रख पाते क्योंकि यहाँ पर आर्थिक विषमता । बेरोजगारी तथा कृषि प्रधान देश होते हुए कृषि पर कोई स्थायी विकास की नीति न बन पायी एवं कृषि तथा घरेलू उद्योग की मिली जूली भी नीति नहीं बनी , उसके व्यावसायीकरण का ग्रामीण परिवेशीय विधान निर्माण नहीं हो पाया । कमजोर जनतंत्र में गरीबों की पीठ पर पूँजी वाद का हाथ कभी भी कोमल स्पर्श नहीं दे पाता । चुनाव आयोग तथा देश के शीर्ष नेतृत्व को इस पर विचार करके बितक तो नहीं देखा गया किन्तु अब इस पर सोचना अति आवश्यक हैं ? मैं शिक्षक भी रहा इस हेतु कुछ सामाजिक , से कुछ राजनैतिक , कुछ आर्थिक बातें भी रखी । अब मैं सोचता हूँ कि एक चिकित्सक होने के नाते कोरोना रोग पर विशेष नजर डालते हुए कुछ विशिष्ट पहलुओं को सामने रखू । एक होमियोपैथिक होकर भी अन्य चिकित्सा पद्धतियों के चिकित्सकों को भी अपने उन विचारों से अवगत करा पाउँ जो देश के भविष्य की ओर इशारा करते हैं ।
 आज के दिन फिर वैश्विक परिदृश्य विगड़ने लगा है जिसके कारण सुधार का अनुमान लगाना कठिन लगता है । भारत की स्थिति तुलनात्मक रुप में उससे कम नहीं है । संक्रमण जनित समस्याप के सम्बन्ध में अबतक पुरानी धारा ही प्रभावी है । अब लॉक होने से ही समस्या गहराई है । अतः लोग इसके बाहरी कारण को पकड़ रहे हैं , जैसे डिस्टेसिक मेन्टेन न होने से संक्रमण बढ़ रहा है । क्यों न माना जाय कि जो संक्रमित अवस्था से निकलकर क्वारेंटाइन से अगला अपने अपने निवास पर जाकर स्वतंत्र रहन – सहन मिलन आवागमण कि कर रहे हैं , इससे संक्रमण का अर्थ यह भी हो सकता है कि कोविद -19 ( – ) ve रोगी के अन्दर रोग लक्षण का घटना अब के आरोग्य का सूचक मान लेना सुकि संगत नहीं है । वहाँ पर आरोग्य रोगी को भी कुछ , महीनों ( 2 से 3 ) तक संभमित जीवन आहार और कार्य किलाप को सीमित रखना ही चाहिए ।
 विशेष ध्यान दिये जाने की अहम बात है कि आज दुनियाँ में माना जाय तो कोई भी पूर्ण आरोग्य जीवन नही जी रहे । वे किसी न किसी क्रॉनिक डिजीज से ग्रसित है । वैसे में कोरोना का संक्रमण होना और मुक्त होना आपकी आरोग्यता को निरापड़ नही रख पाता है , बल्कि जीवनी शक्ति की पूर्व दशा में कोरोना का संक्रमण कुछ विस्तार ( Addition ) करता है । फिर चिकित्साकरण में जैसी चिकित्सा चली उसका भी प्रभाव पड़ता है । हर संक्रमण के बाद स्वास्थ्य पर कुछ नयी घटना जुड़ती है । हम उसे आज राजनैतिक ( Ialrogenic ) या नोसोलोजीकल ( Nosological ) या आफ्यर इफेक्सन या साइड इफेक्ट मानते है ।
 अब हम वायरस इन्फेक्सन के संबंध में कुछ विचार रखना चाहते है । कोरोना वायरस ( 1 ) रोस्पिरेटरी सिस्टम पर प्रभाव डालने वाला है । ( 2 ) प्रचूर श्लेस्मा पैदा करता है । ( 3 ) श्वास कष्ट लाता है । ( 4 ) फेफड़े में बलगम का जमाव आफ्जीन का गमनागमन रोक पर मृत्यु लगता है । ( 5 ) बाद में ऐसा पाया गया कि ब्रोकियल ट्यूब में रक्त के थक्के जमकर बेन्टेिलशन को प्रभावित करता है । साथ ही यह भी पाता चला कि यह त्वचा पर दाने उत्पन्न करता है ।
 इस वायरस का रोगोत्पादक प्रभाव ट्यूवर क्युलर है । तन्तुओं का डिजेनरेशन अलसरेशन आदि होमियोपैथिक विचारधारा में सिझ लिटिक तथा चर्क पर दाने आना सोटिक प्रभाव बतलाता है । चर्चा है कि इस वायरस का निर्माण चमगादर ( वैट ) स्तनधारी किन्तु उड़ने वाले पक्षी की तरह ( Evies ) की जाति होने से मानव के समक्ष और विपरीत योनि की होने से शत्रुता रखेगा । तो उसकी मार ( नाश ) के लिए हिप्पोजेनियम कारगर एन्टिडोट हो सकता है । वैसिलिनम उसका मानव एटिडोट होगा । सोरा , सिफलिस और ट्यवर कुलीन होने से कोरोना को समग्र विष क्रिया की काट बनकर निष्प्रभावी कर सकता है । अगर होमियोपैथी की इस दवा का समुचित परीक्षण कर सत्यापित करने से परिणाम उचित पाया गया तो यह उठे समाप्त कर पाने में सस्ता , सरल और निरापद पाया जायेगा साथ ही उसके दूरस्थ प्रभाव लाने की कोई गुंजाइश नही रहेगी । यह विषय वैज्ञानिक समत्त्व रखता है । इसकी पुष्टि भी होनी चाहिए ।
 इन अवधारणाओं पर ही हम भविष्य की कल्पना का पाते है , आज हम बार – बार इस वायरस के बदलते प्रभाव को देखकर तथा पुन संक्रमण पाकर हैरान है । चिन्ताएँ बढ़ रही है । व्यवस्था पर चोट पड़ रही है । मृत्यु की संख्या बढ़ रही है । कुछ केस बिना लक्षण के ( + ) ve मिल रहे । है । कुल सलक्षण ( – ) ve मिल रहे । इससे कठिनाई बढ़ रही है । ऐसे रोगी यह संदेश दे रहे कि यह परिवर्तन और छवम प्रभाव हमें चिकित्सा के लिए ट्यूवर क्यूलर दवा की ओर ध्यान दिलाते है । यह सास्वत सिद्धान्त है । ऐसे वायरस से प्रभावित रोगी मुक्त होकर बाद में जो लक्षण प्रकट करेंगें वे भविष्य में विकट रोग लायें । ग्रंथिं रोग रक्त विकार कैन्सर टीवी के परिवर्तित दृश्य , और फेफड़े के कष्ट सामने ला पायेंगे । रुग्न जन संख्या आज विविध प्रकार के संकट और शारीरिक मानसिक विकार विकलांगता एवं अकुशल नागरिक पैदा कर रहे हैं । कष्ट असाध्य होते जायेंगे । सर्जिकल रोग बढ़ेंगे । इससे उत्पादकता एवं क्षमता का हास होगा । यह दृश्य सक्षम किन्तु निरापद निसंक्रमित की खोज की ओर हमें अगाह कर रहा है । विश्व के चिकित्सा वैज्ञानिकों को इस पर गम्भीर रुप से सोचना पड़ेगा । इधर के दिनों में विश्व की चिन्ताओं से भारत की गंभीर हुआ है । लॉक डाउन में ढील देने से समस्या गहराई है । और भी सूक्ष्म और अद्यात कारण होंगे जो परिवेश को घातक बना रहे है । गंभीर विमर्श जारी है ।
 सर्व प्रथम दुनियाँ के चिकित्सा वैज्ञानिक एवं सरकारे कारगर प्रिवेन्टिव दवा की खोज पर एकजुट हो रहे है । प्रिंवेन्टिव दवाएँ भी पूर्णतः निरापद नहीं होती । कालान्तर में इसके दूरगामी खतरों का आना अस्वीकार नहीं किय जा सकता । इस हेतु भी देश की मानव जाति पर नयी विभीसिका खड़ी होने वाली है । जैसे हिरो शिमा का इतिहास विकलांगता लाने के लिए रेखाकित है । उसी प्रकार अगर यह वायरस निर्वाध गति से अपनी भूमिका जारी रखी रही तो मानव जाति को अस्तित्व पर खतरा बढ़ सकता है ।
 जैविक होर्मोन और प्लाझा पर पोषित माइक्रो आर्गेनिज्म कदाचितः जीवन में आसाधारण क्षमता ला सकता है । अन्यथा जीवन का अस्तित्व ही समाप्त कर सकता है । वैसी परिस्थिति में जैव विष ही उन विन्डिक्टिव पावर का प्रति धात कर सकता है । सन्टलेषित रसायन भी कम खतरनाक होते ।
 ऐसा भी सम्भव है कि राज्य सत्ता की उत्कट महात्वा कांक्षा की कदरता कभी मानवता पर प्रलय कारी हो या ब्रह्मण्ड एकता पर संकट ला दे । जो परमाणु मिस्फोट से भी घिनौना हो । जीवों के अन्दर जीवनीय रासायनिककणों की सुरक्षात्मक शक्ति में विघटनकारी परिवर्तन लाना ही वायरस का प्रमुख कार्य है । वह किसी अन्य जीव में पोषित होकर उसे अपना मक्ष्य बनाता और अग्न शक्ति ग्रहण कर मानव पर आक्रमण करता है । इस कला को जो अपना शस्त्र बनायेगा वही विश्व का अन्त करेगा । इसलिए विश्व शक्ति कायम करने के लिए योग एवं आध्यात्म की क्षमता ही कल्याणकारी होगा ।
 ” परमार्थमिदमीत्मावाहनअत्योत्त्मवं । “

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