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कोरोना की चाहत में अर्थव्यवस्था पर चोट या खून खराबा :-

विश्व के विचारक इस संक्रामक रोग के संबंध में क्या सोच पायेंगे ? इस बिन्दु पर सटीक उत्तर की प्रतीक्षा बनी रहेगी । प्रारंभ में ही यह विषय विवाद के घेरे में आ चुका । एक षड़यंत्र सा दाव – पेंच इसकी जड़ में अनुमान किया जाने लगा । विश्व के राजनैतिक गलियारों में शंका की धूल उड़ने लगी । उसके साथ मानव काया पर रोग जैसा प्रकोष और चिकित्सा की मांग फिर इसे व्यंग कैसे कहा जा सकता था । रोगी की संख्या बढी तो चिन्ता हुयी । जैसी खबर फैली , शंकाओं से घिरी रही । सामने आया एक विशिष्ट प्रकार का वायरस । इसका इतिहास चीन से जुड़ा बताया गया , इत्यादि ।
 ……..लेकिन संक्रमण बढ़ता गया । मृत्यु का दस्तक पड़ा । चीन की चिन्ता बढ़ी । घटनायें जोड़ पकड़ी किन्तु इसे वैसे गुप्त रखा गया जैसे पिष पान या फॉसी का विधान हो । शंकाओं के साथ विनष्टकारी तूफान सा ययार बहने लगा । शक्तिशाली राष्ट्रों पर घोर विपत्ति छायी । भाग दौर का सिलसिला शुरु हुआ । एक आतंक …………. क्या कहा जाय विश्व इस चपेट में आ गया ।
 तीव्र रफ्तार की धूम घटा छायी , मृत्य परवान चढ़ा । वातावरण गरमाया । चिकित्सा और दवाएँ । एक चीख उठी । विश्व की विरासत . यहाँ तक कि W.H.O. घुटने टेक दिये । आग की आँधी अमेरिका को आहत कर रखी । विश्व व्यापी संक्रमण का कारण मृत्यु की संख्या , यमावह स्थिति , इलाज का अभाव , रोग थाम की दवा नहीं प्रवासियों ने अपने – अपने घर की राह ली । समाचारों से संसार घबड़ा उठा । 
……अब कोरोना नया नहीं रहा । इसकी प्रजाति पहले भी मानव को एक छोटे क्षेत्र में झकझोड़ा था । वह था मर्स , यह बतलाया गया सार्स । यह श्वांस यंत्र को अपना क्षेत्र बनाया । फेफड़ा पर जा धमका । दुनियों का दिल दुखाया । मानव और मानवता दोनों ही पर घोर प्रहार दुनियाँ की अर्थ व्यवस्था पर हुआ वजपात । महान राष्ट्रों ने अपनी शक्ति झोंक दी । आक्रोश भरी आँखें चीन की ओर बार – बार झाँकती रही । विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी उँगली उठी । विश्व की राजनीति गरमायी । एक नया परिदृश्य खड़ा हुआ । कोरोना संक्रमण का अभियान अपनी तीव्रता की पहचान बनते तीन माह की अवधि में विश्व में 413734 जानें ली । 3603893 स्वस्थ हुए 7323761 संक्रमित हुए । भारत की दशा सुनिये । आज की तिथि तक 276583 संक्रमित , 7745 की मृत्यु हुयी . स्वस्थ हुए । स्थिति अब भी दुनियाँ की अच्छी नही . कबतक दुनियाँ लॉक डाउन में उत्पादन ठप । सरकारें बचाव और राहत कार्यों में व्यस्त ।
…… अब समस्या आमी मुखमरी की 1 देशों का दिमाग चकरा रहा । प्रवासी घर लौटे । साथ में संक्रमण लाये । देशों पर भार पड़ा । रोजी रोटी का प्रश्न । महंगाई सहित कई प्रकार के प्रश्न समस्यायें बनकर सामने आ खड़ी हुयी ।
 क्या चाह रही कोरोना ? यह वायरस है या राक्षस इसने तो हमारी अर्जित सारी विभूतियों , संस्कृतियों और व्यवस्थाओं को चुनौती दे रखी । अपनी संक्रामकता से वह जितनी जाने ली . अबतो विश्व युद्ध की विनाशक लीला का सूत्रधार बन कर प्रस्तुत है ।
 विज्ञान एवं विकास के साथ विनाश के डंको की आवाज गूंजने लगी । लगता है यह विश्व की अर्थ व्यवस्था को लील तो जायेगी ही , मानव के खून से नहाना चाहेगी । कोरोना से जंग में हम जीत नही पाये । सभी देश यही मान रहे कि हमें एक सीख मिल रही है । उसी के सहारे जीना या मरना है । बिना विजय पाये लॉक डाउन ब्रेक हुआ । भय अवभी विद्यमान है । भारतवासी तीख की ताक में भविष्य को झाँकते रहेंगे । हमें तो पहले चुनाव को न देखना हैं ?
 चाहे कोरोना का जंग जीते या नहीं , चुनाव की लड़ाई तो जीतनी है । मुखिया जी को सुना है कि कोरोना के बचाव कार्य के लिए लाखों रुपये दिये गये है । सैनेटाइजर साबुन , मास्क , ग्लोब्स एवं डिसीन्फेक्टैण्ड छिड़काव के लिए । पता नहीं , सरकार उनका हिसाव लेती है या नहीं । मैं अपनी ओर से होमियोपैथी का दवा बचाव कार्य करने वाले के लिए मांग की थी कि मास्क और ग्लोब्स 14 पीस दिये जायें स्वास्थ्य रक्षकों के प्रयोग के लिए तो उपलब्ध नहीं है , बताया गया । यह भी सेवा हैं । देश भक्ति भी हैं ।
 उल्लेखनीय रहा कि लॉक डाउन में भी नियमों के उलल्धन किये जाये और पकड़े जाने पर सजा और आर्थिक दण्ड भी वसूले ही गये । अबतक स्थिति में एक ओर कुछ सुधार बतलाया जाता है तो दुसरी ओर भारी संख्या में संक्रमण के न्यूज आते हैं । स्थिति और परिस्थिति दोनों पर अबतक काबू नहीं पायें गयें । जनता भी अब रही थी सरकार भी आर्थिक रुप से कमजोर हो चुकी है । वित्त विभाग ने लालझंडी दे रखी । लॉक डाउन में ढील से यातायात की स्थिति को दयनीय कहें या……………|
 दुनियाँ की दशा भी करीब एक सी ही हैं । मुख्य विषय कोरोना पर सकारात्मक उतरना था जिसे प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी । अब हम सभी मिल जुलकर इसकी पहल पर विचारें , यह कहाँ तक सम्भव है ।
 अथ ऊँ कोरोनाय नमः ।

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