कोरोना के संदर्भ में अति विचारणीय पक्ष
मानव सभ्यता के विकास के समय से अबतक समाज के नेतृत्त्व पर जो कुछ होता आया है , उसका इतिहास , जहाँ तक उपलब्ध पाया गया है , उसमें प्राचीन व्यवस्था के राजतंत्र , सम्राज्यवादी महत्त्वाकांक्षा वाले तंत्र , उपनिवेशवादी व्यवस्था , सामाजिक क्रान्ति के मूल तात्त्विक पहल ,. वैदेशिक शासन प्रबन्ध , मध्यकालीन राज्य संचालन व्यवस्था , ब्रिटिश उपनिवेश वाद और आधुनिक विज्ञान एवं उद्योग आधारित सामाजिक , आर्थिक एवं सांस्कृतिक व्यवस्थाओं में होने वाले सामाजिक परिवर्तन की दिशा , मानवीय हितो के पहलू पर चाहे जितने अच्छे युग अपनी कीर्त्ति गाथा प्रस्तुत कर पाये , उनमें मानव समाज के हर हिस्से को विकास और कल्याण का अवसर नहीं मिल पाया ।
आज जब हम कल्याणकारी गणराज्य की गरिमा पर विचार कर विकास के पथ पर अग्रसर हो रहे हैं तो आतंक और गतिरोध वेतनों के साथ अत्याचार शोषण , अराजकता , अपराध और मानवीय गुणों का हास तो सुना ही जा रहा है , स्थिति इस अवस्था तक पहुँची कि सारी सांस्कृति , वानिक , आर्थिक , शैक्षिक एवं तकनिकी विकास के होते हुए मानव और मानवता दोनों ही पर ग्रहण लगते जा रहे हैं । हमारा भौतिक उत्थान उपभोक्तावादी विधान भर रहकर सामाजिक सरोकार को भुलाता जा रहा है साथ ही आर्थिक विषमता पर कोई भी व्यवस्था क्यों न हो अवसर की तलाश के प्रयास विफल हो रहे । वैसा ही न्यूणधिक परिदृश्य मानव स्वास्थ्य और उससे जुड़े मानवीय क्षेत्रों में जो देखा जा रहा है वह स्वरुप विनाशकारी रुप ले रहा है । मानवता का यह पक्ष विकास की बुनियाद को कमजोर तो बना ही रही , आर्थिक प्रतिस्पर्धा , और राजनैतिक सत्ता लोभ का साधन – विकास दीनता और साधन हीनता पर दृष्टि पात करने की जगह उन्हें अप्रत्यक्ष रुप से ऐसे धायलकिया जा रहा है जिससे उनकी सत्ता विश्वास खोती और जनतंत्र को कमजोर बनाती जा रही है । अपनी सफलता गिनाने और महत्त्वाकांक्षा पालने का अभियान उस युग में अपने अकल्याण का निमंत्रण छोड़ और कुछ नहीं ।
साल पूरा होने वाल है । भारत में ही नहीं पूरे विश्व में इसका विनाशकारी प्रभाव देखा गया । चिकित्सा विज्ञान जो पूरे विश्व में प्रचलित वह कुछ भी सकारात्मक भूमिका नहीं दिखा पाया । भूल – भुलैया का खेल उसकी राजनीति बन चुकी है । वैक्सिन की निर्भरता पर समय गुजारना , राष्ट्रों को प्रतिद्वंदिता अनिश्चितता की स्थिति में डाल अपनी मनोभावना का प्रदर्शन कोई सफली भूत होने वाला कार्यक्रम तो नहीं लगता ।
यह कैसी बात है कि विश्व में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ( एलोपैथी ) के अतिरिक्त विश्व में मानवता की सेवा दे रही लगभग 100 से अधिक वैकल्पिक पद्धत्तियाँ हैं । अगर राजनैतिक परिदृश्य समरस होता तो सबों के सहयोग से स्वास्थ्य सेवा काफी समृद्धि पा चुकी होती । स्थिति तो यह है कि चिकित्सक और चिकित्सालय बढ़ने से न स्वास्थ्य सुधर रहा न रोग घट रहे वरना रोगियों की संख्या ही बढ़ती जा रही और रोग भी असाध्य होते जा रहे । यह दुनियाँ मान रही है । विश्व की सरकारे भी स्वीकार कर रही हैं । कोरोना के पक्ष पर विचारे तो बाहर की बातें जाने दे , भारत में सिर्फ आयुष की ( AYUSH ) पाँच चिकित्सा पद्धतियाँ , आयुर्वेद योग , यूनानी , सिद्ध और होमियोपैथी में आयुर्वेद तो अपनी ही स्वदेशी सांस्कृतिक और विश्व सिद्ध मानी जाने वाली सर्वाधिक पुरानी पद्धति रही है । होमियोपैथी तो विश्व के दो सौ के करीब देशों में पूर्ण आरोग्यकारी चिकित्सा कहलाने वाली निरापद चिकित्सा कला ( Healing Art ) सिद्ध हो चुकी है । भारत सरकार का सम्बल भी पा चुकी है । फिर विश्व में इसे कहीं भी स्वस्थ भूमिका निभाने का अवसर नही मिला । आप कह सकते है कि उनमें गुणवत्ता या सेवा भाव का अभाव रहा हो । .तो आप भी क्या कर पाये । कहाँ और किस प्रकार सफल हुए ? आज क्यों चिन्तित हो रहे ?
जब पंजाब केशरी राजा रंजीत सिंह के पैर में चोट का धाब सड़ रहा था तो होनिगवर्गर नामक एक विदेशी मिलटिरी सैनिक होमियोपैथी की खुराकों से रोग मुक्त किया जिसे पुरस्कार रुप पंजाब केशरी ने भारत में होमियोपैथी के विकास का अवसर दिया । यह विदेशी पद्धति उस समय मानी गयी थी । डा ० हैनिमैन स्वंय एलोपैथ रहे । विश्व प्रसिद्ध । उन्होंने इस पैथी में किंचित कमियाँ पायी और उनका समाधान खोज निकाला जो होमियोपैथी कहलायी । सिर्फ जर्मनी नहीं , पूरे विश्व में उसकी सच्चाई परख कर बहुतेरे एलोपैथ होमियोपैथ बने । डा ० जॉन हेनरी क्लार्क ने अपनी चिकित्सीय पुस्तक मोटी – मोटी तीन खण्डों में ” ए डिक्सनरी ऑफ प्रैक्टिकल मेटेरिया मेडिका ‘ के पेज 906-7 में लिखा कि डिप्पोजेनियम नामक होमियोपैथिक दवा श्वांस संस्थान के सभी अंगों के रोगों में खासकर बच्चों और वृद्ध व्यक्तियों में जब अन्य लाभकारी दवाओं के प्रभाव से न लाभ मिला हो तो भी उसके प्रयोग से आरोग्य हो जाता है । वह दवा संक्रमण घटाने में भी प्रयोजनीय है ।
मैंने इसका सफल परीक्षण अपने पंचायत के वार्डों में तथा अपने क्लिनिक पर आने वाले परिवारों के लिए भी चलाकर संक्रमण से बचाया है । लाभाकारी दिखा है । माननीय प्रधान मंत्री जी के पास भी जानकारी भेजी है । आयुष के पदाधिकारियों HMAI , LHMI , CCRH तथा CCH भारत सरकार को सूचित करते हुए निवेदित किया कि सरकारी स्तर पर परीक्षण कर उपयोगी सिद्ध होने पर इसके द्वारा सरल , सुगम , सेवा सस्ते तौर पर निवारक एवं संरक्षक दोनों ही रुपों में उपलब्ध कराये जायें , किन्तु इस पर ध्यान नहीं दिया जाना अवश्य ही कोई विचारणीय विषय हो सकता है । अगर नही तो इस पर स्पष्ट निर्देश क्यों नही दिय जा रहा है ? आखिर इस पद्धति को विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है ।
ज्ञान पर एकाधिकार क्यों ? जब एक से विश्व लाभानिवत न हो पाया । घुटने टेक दिये । जो साधन आपके पास थे वे भी अनुमोदित नहीं , विवादित थे । मैंने तो परीक्षण करने के लिए आग्रह किया था । क्या बिगड़ता था आपका ? अगर संविधान सम्मत न था या अव्यावरिक या कोई दोष दिखता था तो उस पर स्पष्ट वक्तव्य देकर विश्व को अवगत करा देना ज्यादा अच्छा रहता । ..अन्यथा , जो हम होमियोपैथी के अर्हता प्राप्त वरीय चिकित्सक होकर देश को कुछ देना , विधाननुसार चाहा तो हमारे होमियोपैथगण और उनके पदासीन सरकारी सेवक , पदाधिकारी , सरकार के सलाहकार , शोध कर्तागण एवं उनके निदेशक महोदय भी अनुसनी कर रहे ? अगर होमियोपैथी में रति , हनिमैन के प्रति भक्ति और मनवता के प्रति सम्वेदित होते तो कम – से – कम मुझे तो अवगत करा पाते ।
मैने तो पूरे विश्व में इसकी जानकारी साझा की है । आप इसे Site www.myxitiz.in ( Google ) पर लगातार मार्च 24-2020 से आजतक के Corona Despatich देख सकते है । इसे आप पाठक गण या पदाधिकारी गण भी , शिकायत नही एक सेवा का सरोकार समझकर मुझे ही क्यों , विश्व को कृतार्थ करें । यह विचारणीय है । पाठक अपने विचार से भी हमें अवगत करायें ।
( डा ० जी ० भक्त )