कोरोना पर विजय
डा० जी० भक्त
विश्व के चिकित्सा वैज्ञानिक चिकित्सक तथा चिकित्सा से जुड़ी व्यवस्था एवं नागरिक इस बिन्दु पर अपने आप को केन्द्रित कर ध्यान जुटायें । यह विज्ञान अबतक आदिकाल से जो सिद्धान्त , विधान और निदान मानव को स्वस्थ रखने , रोग आरोग्य करने एवं इससे बचाव पर विचारा और लाभ पहुँचाया , आज वह विफल इस लिए हो रहा कि वहाँ हमारी उपलब्धि पूर्णता नहीं दर्शा रही , कमो दर्शा रही , हम इसे विफल होना नहीं कहें , तथापि हमारी कभी , अधूरा शोध , कल्पित मान्यता अथवा अद्यतन जानकारी को ही सर्वस्व माना जाना अवश्य हमें विचलित कर रहा हैं ।
..तो फिर सत्यता क्या हैं , इस बिन्दु पर आगे बढ़ कर सोचा जा चुका है जिसे ज्ञानात्मक प्रतिस्पर्द्धा के कारण अपनाये जाने में शायद बाधा उत्पन्न हो रही , जबकि विश्व के अधिकांश देश उस मार्ग पर चलना प्रारंभ कर चुके हैं तथापि उनमें भी कमी हैं , निजता का अहंकार भी है और बढ़कर परिश्रम करना नहीं चाहते । इसके लिए मैं बार – बार अपना विचार साझा किया विभाग को भी सूचित एवं निवेदति क्रिया पर विश्व वैक्सिन विश्वास जमाये हुए हैं व्यवसाय चल चुका है । .. किन्तु लाभ – हानि पर एक मत नहीं , सभी अपनी बातों पर अडिग , किन्तु व्यग्र , भयभीत और चिन्तित तो हैं ।
हम मात्र इतना ही विचारें कि हम जब स्वास्थ्य के दुश्मन को मार डालते और संक्रमण से निजात पाते हैं , उस क्रम में जो वायरस वैकिटरियादि वातावरण या शरीर में नष्ट स्थिति में पाया जाता ह या दवाओं के अणु रक्त में मिलकर जिस टॉक्सिन को छोड़ जाते हैं , उनके दुष्प्रभाव हमारे परिवेश और जीव के शरीर में व्याप्त होकर उससे अधिक खतरनाक रोग पैदा होकर असाध्य , कष्ट साध्य अथवा सर्जिकल रोग पैदा करते हैं । आप उसे नया रोग कहें या उसी का क्रमिक बदलाव मानें , जीव के शरीर में पूर्व से आ रहे रोग के इतिहास , वंशानुक्रम के प्रभाव , चिकित्सा से प्रयुक्त दवा के दुष्प्रभाव या दूरगामी प्रभाव व्यक्ति विशेष की अपनी जीवन शैली से आये विकार से जुड़ कर उन्हीं कारण विशेष ( जीवाणु आदि ) में बदलाव लाकर वैरिएण्ट फेज का सामन आना और मानवता को शिकार बनाना क्या इसकी पुष्टि नहीं करता हैं ? यह ध्यान देने की बात हैं ।
भारत ( पश्चिम बंगाल ) हावड़ा के होमियोपैथिक डा ० एस ० के ० मंडल ” दी जर्नल ऑफ एच ० एम ० ए ० आई ० के सेप्टेम्बर – अक्टूबर 1978 अंक में लिखे है- Organism May Be Desfroyed But Human Race Will Suffer From Different Difficult Diseases अपने लेख में विद्वान लेखक ( डॉक्टर ) ने अपने विचार की पुष्टि में विदेशी ( होमियोपैथी के अधिकृत विद्वान ) डा ० जॉन पटरसन द्वारा दिये गये हाइपोथेसिस आफ डिजीजेज विइंग प्रोड्यूस्ड बाई जर्मस इज कन्ट्रोवर्सियल ” बतलाते हैं ।
ब्रिटिश जर्नल ऑफ होमियोपैथी Voi Xliii . No. 3 Page 130. 1953 में जैसा • उक्त महानुभाव ने लिखा- ” The Pasture Theory that the grem is the cause of disease is still tought to students but this theory is not now universally accepted and in most modern literature you will find the word relationslip ” being substituted for . ” Cause ” . The Specific relationsut of a germ to a disease is accepted Dut – doubt exists in many minds as to its claim to be the primany cause .
आज हमें दुनियाँ के मानव को आरोग्य दिलाना और स्वस्थ बनाने का लक्ष्य अपनाना है ताकि जीवन के महानतम उदेश्यों को प्राप्त किया जा सके । न कि आजीवन दवा का गुलाम बनाकर मेडिकल शब्द की मर्यादा समाप्त की जाय । हम जर्म को मारने की जगह आरोग्यकारी ( क्योरिटिव ) दवा को मानव पर परीक्षण कर प्रयोग में लायें ।