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गीता के सम्बन्ध में सामान्य जानकारी

डा० जी० भक्त

 द्वापर युग में व्यास महामुनि के रूप में जाने जाते थे । उनके पिता पराशर मुनि थे । माँ सत्यवती थी । हस्तिनापुर के राजा शान्तनु के दो पुत्र चित्रांगद और विचित्र वीर्य थे । उनमें से विचित्र वीर्य के पुत्र प्रथम घृतराष्ट्र थे । छोटे भाई पाण्डु की पत्नी कुंती तथा राजा घृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी दोनों ही गर्भवती थी । जब गांधारी सुनी कि छोटी कुंती के गर्भ से युधिष्ठिर का जन्म हो चुका तो गाँधारी का मन अशान्त होकर गर्भ नष्ट हो गया । मुनि व्यास के उपचार से गांधारी के 100 पुत्र और एक पुत्री उत्पन्न हुयी । सौ पुत्रों में दुर्योधन बड़ा था । वह स्वभाव का दुष्ट निकला । राजा का पुत्र होने के बल पर उसने अपने मन में महत्वाकांक्षा ठान ली कि वही हस्तिनापुर का राजा बनेगा । जबकि पांडव और कौरव ( धृतराष्ट्र ) का एक ही संयुक्त परिवार था , इस हेतु युधिष्ठिर का जन्म पहले होने से बड़े भाई होने के नाते राजा उसे ही बनाया जाना उचित था किन्तु दुर्योधन की हठधर्मिता के कारण सहमति नहीं बन पायी । भगवान कृष्ण का अवतार हो चुका था । कृष्ण जी समान उम्र के मित्रवत और परिवार से सम्बन्धित भी थे । उनके हर प्रयासों के बाद भी दुर्योधन जीविका चलाने मात्र के लिए भी बिना युद्ध लड़े सम्पत्ति बाँटने तक पर भी राजी न हुआ तो युद्ध की रणभेरी बज ही गयी ।

 कुरुक्षेत्र को रणभूमि बना युद्ध का झण्डा लहराने लगा । दोनों पक्षों की सेना समर भूमि में उपस्थित हो चुकी । भगवान कृष्ण पाण्डव की ओर से रथ के सारथी बने । यह कथा व्यास जी द्वारा रचित महाभारत धर्मग्रंथ के युद्ध काण्ड में अर्जुन के मन में किंककत्तव्य विमूढ़ता की स्थिति देखकर कृष्णाजी द्वारा महाभारत युद्ध की यथार्थता पर दिये गये उपदेश से अर्जुन को मोह से मुक्ति दिलाने का जो क्षण सामने आया , उसी का विशिष्ट अध्याय 18 भाग में ज्ञान रुप श्रीमदभगवद्गीता का योग विषयक खण्ड मानव जीवन को श्रेय दिलाने वाला एवं मोक्ष दिलाने वाला हर युग में भ्रमित समाज को पथ दिखलाने वाला एक सास्वत गंथ हैं । आज की वर्त्तमान पीढ़ी जिन समस्याओं से जूझ रही हैं उसे सही मार्ग पर लाने के लिए गीता का पूरे मनोयोग से ग्रहण करना एक सुधारवादी प्रयास सिद्ध हो सकता हैं ।

 विश्व मानव समुदाय के लिए प्रयास एक दैनिक जीवन की दिनचर्या के रूप में जन – जन के हृदय में स्थान पाये , यही मेरी माँ सरस्वती से अपेक्षा हैं । आशा है पाठक , साधक , बालक और युवा इस पावन एवं शिक्षा के सम्यक फलदायी साधना की शुरुआत कर एक नया इतिहास गढ़ने में मन , कर्म और वचन से साथ देंगे ।

 ॐ सरस्वत्यैः नमः ।

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