Thu. Nov 21st, 2024

प्रभाग-32 मेघनाथ बध , छठा सोपान लंका काण्ड रामचरितमानस

जब रावण अपने भाई कुंभ करण की मृत्यु के बाद उसके कटे सिर को हृदय

से दबाये विलाप कर रहा था और उसी समय मंदोदरी भी रावण के तेज बल का वर्णन करती हुयी द्रवित हो रही थी , ठीक उसी समय मेघनाथ आया और समयानुसार दाढ़स बढ़ाते हुए समझाकर पिता से कहा- कलका पराक्रम देखिये , मैं पहले क्या बताउँ ।
मेघनाथ को अपने इन्द्रदेव स बल और रथ मिला , जिसे उसने गुप्त रखा था । सवेरा होते चारो तरफ से कपि सेना से चारो दरवाजे घिर गये । एक ओर काल के समान वीर वानर भालू और दूसरी ओर रणधीर मेघनाथ ।
काग जी कहते है कि वीर गण अपनी – अपनी विजय के लिए लड़ रहे है । उस युद्ध भूमि का वर्णन , हे गरुड़ जी किया नहीं जा सकता । माया की रथ पर मेघनाथ सवार होकर आकाश की ओर चला । वहाँ जाकर अठहास कर गर्जा , जिसे सुनकर वानरी सेना में भय छा गया । मेघनाथ के पास युद्धक अस्त्र शस्त्रों की कमी नहीं । वह ऊपर से ही वाणों , परसों , तथा पाषाण पखण्डों की वर्षा करन लगा दशो दिशाओं में वाण छा गया , जैसे मघा नक्षत्र में मेघों की झड़ी लग जाती है । पहले ही की तरह वानर गण पर्वत और वृक्षों को लेकर आकाश तक जाते हैं , मेघनाथ का पता न लगने से दुखी होकर लौट जाते हैं । वह मायावी राक्षस सर्वत्र वाणों को डालकर पिंजरा सा बना दिया है । अब वे बन्दर जायें कहाँ ? वह हनुमान अंगद , नल , नील आदि वीरों को व्याकुल कर रखा । फिर लक्ष्मण सुग्रीव और विभीषण को भी वाण से जर्जर कर दिया । फिर रामचन्द्र जी से लड़ने लगा । जितने वाण चले सब नाग पाश में जा फँसे । वह तो लीला धारी है । अपने तरह के स्वतंत्र कहे या अद्वितीय कहें । जितने वाण वह छोड़ता था सब नाग बन जाता था । उनके चरित्र तो दिखावटी है । उन्होंने तो रण क्षेत्र की शोभा बढ़ाने के लिए अपने को नाग पाश में बंधवा लिया । शिवजी भी कहते है कि जिनके नाम मात्र का स्मरण भव बन्धन को काटने के लिए यथेष्ट है वे भला स्वयं बन्धन में फसेंगे ?
हे भवानी ! राम सगुण ब्रह्म है । अचिंत्य है , बुद्धि और वाणी द्वारा तर्क से जानने योग्य राम जी है ही नहीं , इस हेतु कोई तत्त्व ज्ञानी या वैरागी सारे तर्को को भुलाकर मात्र उनको ही भजते हैं ।
मेघनाथ ने सेना को तो छिपकर ही व्याकुल कर दिया था । अब वह प्रकट हो गया और दुर्वचन बोलने लगा । जामवन्त जी ने कहा अरे दुष्ट ! जरा ठहर तो जा । इस पर तो वह क्रोध पूर्वक बोला तुझे मैं बूढ़ा जानकर छोड़ दे रहा हूँ । अरे मूर्ख तुम मुझे ललकार रहा है । ऐसा कहकर वह चमकते हुए त्रिशुल का प्रयोग किया । उसी त्रिशूल को अपने हाथ से पकड़ जामवन्त जी दौड़ पड़े वह त्रिशुल उसकी छाती में जा लगी । वह देवताओं का शत्रु चक्कर खाकर भूमि पर गिर गया । जामवन्त जी ने फिर क्रोध से पैर पकड़ कर धुमाया और पृथ्वी पर पटक कर अपनी वीरता का परिचय दिया । वह वरदान के बल पर मर नहीं पाता था ।
इधर देवर्षि नारद ने गरुड़ जी को रामजी के पास भेजा गरुड़ जी ने नागों को खाकर माया से प्रभु को मुक्त किया । वानरी सेना प्रसन्न हो गयी । सभी राक्षस गढ़ पर जा छिपे । जब मेघनाथ की मूर्च्छा सुधरी तो पिता को देख लज्जित हुआ वह पहाड़ की खोह में जाकर अजेय यज्ञ करने का मन में ठाना ।
विभीषण जी ने इसकी जानकारी प्रभु को दी । उन्होंने लक्ष्मण के साथ अंगद हनुमान आदि को लेकर यज्ञ विध्वंस करने हेतु भेजा । भगवान की आज्ञा थी कि उसे समाप्त करके ही आना है । इन वीरों ने प्रण कर लिया कि उस राक्षस को नाश किये बिना लाटना नहीं ।
यज्ञ स्थल पर पहुँचकर पाया कि वह मांस और रक्त की आहुति चढ़ा रहा था । वानरों ने यज्ञ विध्वंश तो कर दिया किन्तु वह यज्ञ वेदी से उठ नहीं रहा । लातों की मार पर वह उठकर दौड़ा । वह इन महान योद्धाओं को पानी पानी कर दिया तो लक्ष्मण जी ने वाण का संधान किया जो उसकी छाती को वेध दिया । मरते समय उसकी माया मिट गयी । रामचन्द्र जी का नाम लेते उसने अपने प्राण तजे । अंगद और हनुमान जी ने कहा तेरी माता धन्य हैं।

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *