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प्रभाग-32 सती सुलोचना प्रसंग, छठा सोपान लंका काण्ड रामचरितमानस

गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम चरित मानस के लिए विषय वस्तु के संबंध में प्रारंभ में ही स्पष्ट किया है-

” नाना पुराण निगमागभ सम्मतं यद रामामणि निगदितम् क्वचिन्यतोइपि ” तो मैं चाहे आप उसे मेरी घृष्टता माने या उपयुक्त उस प्रसंग को जोड़ने का प्रयत्न करता हूँ जिसे भजनोपदेशकों , कथा वाचकों तथा रामलीला के दृश्यों में समाविष्ट पाया हूँ । यह प्रसंग समझ से जुड़ने से , वांछित आदर्शाकन में कभी न होगी न मानस रामायण की मर्यादा में त्रुटि हो जायेगी । माननीय रामानन्द सागर जी ने भी अपने रामायण से किन्चित परिशिष्ट डाले है जो विचारणीय है ।

प्रसंग यह है कि रावण पुत्र मेघनाथ की पत्नी सुलोचना एक साध्वी नारी बतलायी गयी है । युद्ध काल में मेघनाथ के संघर्ष के साथ वह साधना रत रही , जिससे उसके अहेवात सहित उसके प्रण की रक्षा अक्षण्ण बनी रही । भगवान रामचन्द्र के प्रताप से लक्ष्मण जी द्वारा जब उसका वध हुआ तो उसकी भुजा आंगन में सुलोचना के पास तथा सिर प्रभु राम के चरणों में पड़े ।

भुजाओं के प्रतिपात पर भी निशिचर पत्नी की साधना नहीं टूटी किन्तु कोलाहल से उसका ध्यान उचट गया तो भुजा देखकर भी भायावी पत्नी विश्वास न जुटा पायी । उसने भुजा से आग्रह किया कि वह सत्यतः पति की भुजा है तो लिखकर बतलायें । भुजा द्वारा आंगन में ज्ञातव्य अंकित हो गया । इसके बाद वह रामणी पालकी में भुजाओं को हृदय में ले प्रभु रामचन्द्र जी के दल में सिर लेने चली । पहुँच कर प्रार्थना की कि वह सिर पाकर उसके साथ सती होगी । उसने अपने पति द्वारा लिखित निर्देश का भी उल्लेख किया । तब उसका प्रमाण प्रस्तुत करने की बात उठी । साध्वी रमणी ने पति के सिर से अनुनय की । सिर एक बार मुस्कुरा दिया । देखकर रामादल में आश्चर्य और हर्ष छा गया । प्रणत पालक भगवान राम ने सिर अर्पित कर दी । यह प्रसंग ग्रंथ की मर्यादा में समयोचित हाष्टिगोचर हो रहा है ।

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