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जीते तो सभी हैं किन्तु मृत्यु को गले लगाते है कोई-कोई

डा० जी० भक्त

जो भली प्रकार से जान गये है कि मृत्यु निश्चित है, व जीवन के क्षण को साकार करने में सविश्वास जुट जाते एवं धरती पर त्रिताप को धैर्य के साथ सहन कर हँसते-हँसते मृत्यु का स्वागत करते ह। ऐसे लोग ही सच्चे वीर है। उनका मरना दूसरों को भी प्रेरणा दे जाते हैं। उनकी स्मृति भी प्रेरक और कीर्ति तो अमर होती ही हैं। उनका मरना जिन्दगी की सच्ची परिभाषा गढ़ जाता है साथ ही जीवन जैसी कृति विश्व की आँखे खोल इतिहास को खुशी पूर्वक सौप जाती है।

शेष जो जीते है वे इन्द्रियों के भोग, उनके प्रयोग, संयोग और वियोग एवं रोग को ही जीवन साथी बनाते हैं। हम इन्द्रियों के दास बने। उनके लिए खून और पसीने सुखाये, नींद गँवाये। गर्व, अहंकार अभाव, तकरार विवाद प्रतिवाद, संग्रह, विग्रह की आँख मिचौनी में रोग और संताप का ही आलिंगन किया, सुख की आशा में निराश होकर धरती से हाय राम के उच्छवास के साथ विदा ली। सबों ने कहा- “राम नाम ही सत्य है।” सच्चाई है कि हमारा सत्य ही साइन वोर्ड है, बाकी सब झूठ, नाकारात्मक, कष्टदायक, शोक और पश्चाताप के साथ कुटुम्बियों का विलाप …..।

धरती को कर्म प्रधान कहा गया। बिल्कुल सत्य है। हमारा कर्म और हम क्या है कैसे हैं यह कौन तय करेगा ? परिवार भोगेगा दुनियाँ देखेगी। हम चिर निद्रा में सो जायेंगे। पुरोहिता को जहाँ तक हाथ लगे। वे तो रुदन और मूर्च्छन के वातावरण से उपर उठ गये। हम सबों को कबीर दास जी बहुत कुछ कह गये। सत्य ही कह गये मन, नेत्र त्वचा और हृदय को साफ रखने, ज्ञान ग्रहण करने और रोग मिटाने, संसार के बन्धन से निर्वाण पाने के सारा समाधान सुझाये। हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड आदि ने अच्छे अच्छे साबुन दिये, देह की गंदगी कपड़े की गंदगी धोने के लिए अनंत टनो वजन में साबुन रगड़ डाले गये। जीवन में आकाश से जितने बादल बरसे देह मल मल कर नहाने से नही बचे। यहाँ तक कि कभी धरती तल से भी पानी लिए और उसका लेबुल घट गया।

मानव सोच नहीं पा रहा है। एक अरब चालीस करोड़ मात्र भारतीयों के बीच हम देहातों में कीचड़ झेल रहे है। ..तो हमारी सरकार के संसद भवनों में हमारे माननीय जनता के जनार्दन अविश्वास प्रस्ताव झेलें । प्रस्ताव किसी प्रकार गिर गया। तौपर भी समाचार पत्रों में प्रतिवाद आ ही रहे और मुखरता भी जीवन्तता निखार रही है। और इतना ही नहीं हम विश्व में अपने को शीर्ष को छूने तक पहुँचने वाले हैं। फिर आह कराह को जगह पर भी रहने दें, विचारें कि हम विश्वास क्यों खो रहें।

हम गाते है – “सारे जहाँ से अच्छा ……….।”
“कुछ बात है कि हस्ती….।।”

हम नेता बने चुनाव लड़े – हार हुयी। जीते – तो सता पाये। पक्ष विपक्ष जो हो । सभी कर्मठ, सुयोग्य और समाज सेवी रहे। क्यों हमारा जनतंत्र कमजोर होकर अपना मत खोता गया। आज गठबन्धन की सरकारें काम कर रही वह भी पूरी आस्था के साथ नहीं, डगमगाती सत्ता । कहाँ रही महानता ?

पूज्य बापू – अमर रहें।
देश रत्न अमर रहे, वीर सेनानी अमर रहे ।
जय जवान! जय किसान!!
अमर रहे स्वतंत्रता दिवस !
जय हिन्द !

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