पुत्री और संस्कृति
पुत्री और संस्कृति भाग-ख
डा . जी . भक्त
मानव के साथ जब जीवन का प्रश्न उठता है तब लक्ष्यों में जिम्मेदारिया जुड़ती हैं । जिसका विषय माता – पिता , अभिभावक और छात्र छात्राओं आचरण और क्षमता की अपेक्षा रखता है । आज हम देख रहे है कि भारत में खासकर बिहार की सरकार बच्चियों की शिक्षा सह आजीविका एवं विकास पर विशेष जागरूक दिखती है । बच्चियों को विकास की अगली पंक्ति में खड़ी और जागृत बतलाते हुए यहाँ के मुख्य मंत्री ज्यादा प्रसन्न लगते है । मदद भी कर रहे है । किन्तु क्या सकारात्मक हो रहा है यह विचालीन है । आप मुख्य मंत्री है । हृदय से बोलते हैं , जो करते हैं उसके पीछे मुड़कर भी देखते हैं । जो चाहते हैं , आपकी सरकार शिक्षा की बुनियाद को किस मानक तक विकास के धरातल तक लाकर रखा है । मैट्रिक या इन्टर की परीक्षा में टौपर बतलाकर प्रोत्साहन राशि बाँटकर ऊपर के दर्जे में प्रविष्ट करा देना कितना सकारात्मक पहल है जब उसकी बुनियाद मुल्य परक शिक्षा की गुणवत्ता को छु नहीं पा रही । आप उनमें आत्मनिर्भरता , निर्भयता , और ऊँचाई छू पाने की लगन जगाना चाहते है , वहाँ संरक्षण , सरक्षा सौभ्यता , सजगता के साथ सादगी , सविचार उत्तम सौच विकसित कर पाने के वातावरण तो प्रदान नहीं कर पाते ।
अगर आप निजी शिक्षण की चहल – पहल और अंग्रेजी विधान का प्रश्रेय प्रदान करने को अपनी खूबो मानते है तो यह अवधारणा अभिभावकों के आर्थिक शोषण को प्रश्रय देना माना जा सकता है । यहाँ पर मैं कहना चाहूँगा कि दोरंगी शिक्षा को जन्म देना और राजकीय शिक्षण व्यवस्था को कमजोर बनाकर शिक्षण की सांस्कृतिक गरिमा और नागरिक गुंणों का क्षरण कर पतन की ओर जाना ही कहा जा सकता है ।
जब 2012 में ही अपने देश के राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री महोदय स्वीकार कर चुके कि देश में शिक्षा की गुणवत्ता घटी है और विश्व विद्यालयों में ग्रेजएट्स विकते है तो आजतक विद्यालयों को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षकों से भरने का कार्यक्रम किस विश्वविद्यालय से करने का विचार किया जा रहा है ? जहाँ विद्यालय परिवेश में आधारभूत संरचना की कभी हो , शिक्षक की जगह खाली हो , परीक्षा में चोरी हो , नियोजन में अनियमितता और धांधली हो , प्रश्न पत्र लिक होता हो मुन्ना बाबू का प्रयोग चलता हो , प्रक्टिकल की परीक्षा 30 वर्षो से बिना अभ्यास कराये सम्पन्न होती हो । छात्रो को पस्तक उपलब्ध नहीं हो । दूसरी ओर कन्वेन्ट विद्यालयों में पैसे की लूट चल रही हो , वैसी परिस्थिति में जो युवा उच्च शिक्षा की दिशा में प्रवेश पाते हो , वे अपना भविष्य का ख्याल कर अपने निर्धन अभिभावक को कर्ज लेकर , खेत बेंचकर मजदूरी कर बच्चों को पढ़ाने की जोखिम ले रह , उनके छात्र छात्राओं को सोचना चाहिए कि सारी परिस्थिति यों से लड़कर हम अपने भविष्य लक्ष्य अविभावक या माता पिता के अरमान की पूर्ति कर देश , समाज और अपने आप को अथक परिश्रम कर सफलता पायें साथ ही अपनी सेवा स समाज एवं देश को नया संदेश दें । उनका व्रत हो कि वे अत्वत्थाका , कर्ण , और एकलव्य की भूमिका में उतरें । जझाडू विध्वंशक , देश द्रोही न बने जझाडू किन्तु इस जनतंत्र में जो झूठे बयान वाजी से राजनीति का लाभ लेकर देश को कमजोर करते हों , अपनी मेघा और सेवा के संम्बल पर संस्कृति को बचा ही न पायें वल्कि उसे ऊपर उठाने का संकल्प पूरा करें , ऐसे देश सेवी से भी बनें । देश को सफल नेतृत्व प्रदान करें ।
आज युवा वर्ग में भय है शिक्षा का अभाव है , अपुष्टज्ञान और कर्त्तव्य बोध की कमी है जिससे।
अनीति और भ्रष्टाचार का बल मिल रहा है । ऐसी पृष्ट भूमि पर जन्मी हुयी घास से कभी देशभक्ति , प्रगति , शान्ति और समृद्धि का वातावरण तैयार नहीं हो सकता । आज आवश्यक है कि प्राथमिक से प्रवेशिका तक के छात्र युवा लड़के या लड़कियाँ और उनके माता पिता या अविभावक , जिनकी अपेक्षा सरकार सिद्ध नही कर रही वे अपने भविष्य सह देश की प्रगति और मानवता की रक्षा के लिए भाग दौड़ न कर अपने विचार को सकारात्मक माग पर चलने का उद्घोष करें और अपने गाँव के प्राथमिक से उच्च विद्यालयों में विनायपूर्वक सहयोग पर उतर कर एक युगान्तकारी कीर्तिमान स्थापित करें । भारतीयता का भाव अपनाएँ भारतीय संस्कृति को उत्कर्ष दिलायें ।
युगधर्म स्थपित करने के लिए युगबोध अपनाना होगा । पुँजीवाद या उपभोक्तावाद कभी भी स्वतंत्रता और स्वावलम्वन का विरोधी की रहेगा । सादगी , सद्भाव , संतोष और धीरज से संयक्त जीवन ही अब तक विश्व में पूजा गया है । और पूजा भी जायेगा ।
खासकर नारियों को आत्म बल धारण करना ही पड़ेगा । लेकिन उस बल का प्रयोग सदाचार को दिशा प्रदान करने हेतु । स्वार्थ के लिए नही । हर युग में नारियों पर प्रहार हुआ है । आसुरी प्रहार सीता , दौपड़ो , अहिल्या , दूर्गा आदि पर लेकिन विजयि नीभी वे ही हुयी , पूजी वही गयी । आज भी वैसी महिलायें हैं । हम अपना समय , श्रम , सेवा , भाव , संवेदना मानवता के मूल्य पर अर्पण करें । नारी ही है जिनके दूध पीकर महान से महान नेता पले और उनकी गोद में खेले । क्यों ? इसलिए कि वह माँ है । माँ का व्यवहार सबको वात्सल्य ही प्रदान करेगा कि वह माँ है ।