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विजय की महत्वकांक्षा और मानव धर्म

डा. जी. भक्त

दो राष्ट्रों के बीच या दो व्यक्तिया के बीच संघर्ष अवश्य हो किसी कारण विशेष के द्योतक होते हैं । वे इस बीच के कारणों के लिए उचित धरातल की चाह में संघर्ष रत पाये जाते है । जब वह युद्ध या संघर्ष पर अमादा हो जाता है तो मानवता की क्षति और धरती पर संकट कदाचित विध्वंशक स्वरूप लेता है । ऐसो ही जगह पर मानव के मन और हृदय में दया और क्षमा के भाव पनपते और कृपा के आश्रय को मानवीयता का उर्ध्वगमन स्वीकारा जाता है , जिसका श्रय जिन्हें जाता है । वे शान्ति के अग्रदूत माने जाते है ।

युद्ध और रक्तपात का इतिहास आदिकाल से सुना जाता रहा है । आधुनिक युग की 20 वीं शताब्दी विश्व युद्ध का अखाड़ा बना विनाश के संकट ने शान्ति और सुरक्षा की सोच को जन्म दिया तो सम्प्रति उसी काल में भारत में बिटिश सरकार के साथ स्वतंत्रता की लड़ाई जो लड़ी गयी , वह अहिंसक लड़ाई रही , साथ ही सफलता मिली तो विश्व बापू को महान बताया और विश्व शान्ति का सैद्धान्तिक वातावरण बना था , किन्तु सफल नहीं हो पाया ।

अब विश्व के विकासशील देशों और विकसित महाशक्तियों के मानस पर हमे विचारना आवश्यक प्रतीत हा रहा है कि शान्ति की स्थापना और विश्व में एकता को सम्भावता पर पहल कब शुरू होगा । समय बोतता जा रहा है । हम अपनी अर्जित शक्ति और पराक्रम को वैचारिक द्वंदता पर लुटा कर विश्व को विपरीत गति दे रहे हैं , ऐसा कहा जा सकता है ।

भारत भी बड़ी बड़ी लड़ाइयों का जीता जागता इतिहास है , किन्त उसका आदर्श सिद्धान्त रहा मानवता के रक्षार्थ धर्म के रक्षार्थ , सज्जनो के कल्याणार्थ और पापियों के नाशार्थ । आज विश्व में मानव बुरी प्रवृतियों का शिकार बनकर विकास मात्रका नहीं , आत्मोत्कर्ष में बाधक बन रहा है । आवश्यक है उन दुर्वृत्तियों के नाश और सद्वृत्तियों की स्थापना की । क्यों नहीं हम महावीर , बुद्ध एवं गाँधी के मार्ग को अपनाएँ । प्रगति , समृद्धि और शान्ति के साथ एकता और समरसत्ता का भाव मानव के हृदय में बसाने के लिए हम सद्भावना के बीज को प्रेम के फुहारों से सीच कर उगाना होगा । सिकन्दर महान और सम्राट अशोक की महत्त्वाकांक्षा को विजय नहीं मिली , लेकिन बुद्धत्त्व कई राष्टों को प्रभावित किया । हम वर्त्तमान को ” रूस युक्रेन संघर्ष की ओर विश्व का ध्यान आकर्षित करना मानवता के हित में अपेक्षित मानते है ।

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