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राष्ट्र भत्ति में युग बोध एवं कर्त्तव्यबोध के योग की सफल झलक

डा० जी० भक्त

हम देश के नागरिक कहे जाते है । हमारी अपरिमित संख्या है । देश में ऐसे अनेको राज्य है जहाँ की स्वतंत्र सत्ता है । उनकी सरकारें बनी है । ये राज्य और यह देश कुछ नहीं , एक सत्तात्मक सम्प्रभुत्व सम्पन्न संविधान द्वारा गठित और संचालित है । सरकारें नीति निर्धारक व्यवस्था ( प्रशासन ) कार्यपालक भूमिका निभाने वाली तथा देश का नागरिक ही जनतंत्र में सरकार को विधायी शक्ति का प्रदाता रुप मतदाता है । उस नागरिक को मौलिक अधिकार प्राप्त है । संविधान में सत्ता और जनता दोनों ही एक दूसरे के पोषक के साथ अपने अपने कर्तव्य से जुड़े हैं ।

उपरोक्त आशय का यह भी भाव बनता है कि नागरिक अपने संबंध में भी और अपने परिवार में क्या होते हुए पाता है , समाज में क्या पाता है , जातियों सहित समुदाय में क्या पाता है , संगठनों , संप्रदायों , संस्थानों , प्रतिष्ठानों , व्यापार , प्रशासन , उद्योग , पेशा , शहर और बाजार , सरकारी विभाग उसके संचालन , उपलब्धि , आपूर्ति शान्ति सुरक्षा , न्याय व्यवस्था आदि क्षेत्रों के संबंध में सुस्पष्ट जानकारी अनियमितताओं बाधाओं , अभावों नीति नियमन सहित उनके पालन निस्पादन , जन आकांक्षाओं की प्रति पूर्ति , सत्ता के प्रति जनता का विश्वास और जननेतृत्व में नेताओं के प्रति मतदाताओं का विश्वास का और संतोष से जनतंत्र की शक्ति का सुदृढ़ीकरण और प्रशासकों को अपने क्षेत्र के विकास की उपलब्धियों के संबंध में क्षेत्रीय जनता का विश्वास एवं सराहना का आकलन हर क्षेत्र से पारदर्शिता रखता हो , वह अगले चुनाव के लिए एक आदर्श आधार बन पाये और तदनुकुल वातावरण राजनैतिक क्षेत्र को प्रभावित एवं फलान्वित कर पाये , यही कहलायेगा सचमुच युग धर्म और युगबोध , यही बन पायेगा युगान्तकारी मार्ग का प्रशस्तीकरण ।

उपरोक्त आशय हमारी कल्पना मात्र नहीं एक सकारात्मक विचार धारना के साथ सद्प्रयास है आदर्श राष्ट्र निर्माण कर साथ ही सुदृढ़ जनतंत्र की प्रतिष्ठापना प्रदान करने का जिस जनतंत्र में विपक्ष न्याय का समर्थक और नैतिक शुचिता सम्पन्न आदर्श नागरिकता से परिप्लावित है । जिसे सरकार स्वीकारती हो और सत्ता पक्ष पूर्णतः कर्त्तव्यतः जनआकांक्षाओं का पोषण और अपनी सेवाओं और कार्यकलापों में पूर्ण पारदर्शिता का पालन करता हो , ऐसा राष्ट्र और वैसी राष्ट्र की जनता विश्व में भावनात्मक चक्रवर्तीत्त्व का श्रेय पा सकेगा ।

हम अपने जीवन से स्वार्थों का जितना त्याग और सेवा भाव का सृजनात्मक अधिष्ठान बनेंगे , हमारी राष्ट्र भक्ति उतनी ही प्रतिष्ठा पायेगी । वह राष्ट्र का नेता नही जगतपिता बनने का अधिकारी , पूज्य होगा ।

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